सुमित्रानंदन पंत ने शुरुआती दिनों में आकाशवाणी में बतौर सलाहकार किया था काम

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मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,

सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,

रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी

और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा!

पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा,

बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!

सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये!

मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक

बाल-कल्पना के अपलर पाँवडे बिछाकर

मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,

ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था!

छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत ने सात वर्ष की उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। वे निराला, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा जैसे छायावादी कवि स्तंभों में से एक थे। पंत की कविताएं प्रकृति के प्रति आकर्षण को दर्शाती हैं। अपनी कविताओं से मन मोह लेने वाले इस कवि की 20 मई को 123वीं जयंती है। इस खास अवसर पर जानिए अपने समय के प्रसिद्ध लेखक व कवि सुमित्रानंदन पंत के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तिगत जीवन

उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा स्थित कौसानी में 20 मई, 1900 को जन्मे कवि सुमित्रानंदन पंत के जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था। उनका लालन-पालन दादी ने किया। पंत अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। बड़े होने पर उन्होंने अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया।

अल्मोड़ा, काशी और इलाहाबाद में हुई शिक्षा

पंत की प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। वे वर्ष 1918 में काशी चले गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ाई शुरू कर दी। इस कॉलेज से उन्होंने माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की और वे इलाहाबाद चले गए। इलाहबाद के म्योर कॉलेज में उन्होंने बारहवीं में दाखिला लिया। यह दौर स्वतंत्रता संग्राम का था। आजादी के लिए निरंतर प्रयास चल रहे थे।

वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने सभी अंग्रेजी विद्यालयों और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने को कहा। इस आह्वान पर पंत ने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। पंत ने इलाहाबाद आकाशवाणी के शुरुआती दिनों में सलाहकार के रूप में भी काम किया।

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पंत की विचारधारा और लेखन

सुमित्रानंदन पंत का लेखन इतना सशक्त था कि वर्ष 1918 तक उन्होंने हिंदी के नए कवि के रूप में पहचान बना ली। इस दौर की उनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। वर्ष 1926-27 में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ। इस प्रसिद्धि के बाद वे अल्मोड़ा वापस आ गए। यही वह समय था जब वे मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आए। इसके बाद उन्होंने एक मासिक पत्र निकाला और लेखक मंच के साथ जुड़ गए। पंत की लेखनी में प्रकृति के प्रति प्रेम झलकता है। ‘युगांत’ की रचनाओं तक वे प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रहे। ‘युगांत’ से ‘ग्राम्या’ तक उनकी काव्य यात्रा प्रगतिवाद के प्रखरस्वरों की उद्घोषणा करती है।

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साहित्यिक यात्रा

सुमित्रानंदन पंत के साहित्य को तीन वर्गों में बांट कर देखा जाता है। पहला छायावाद, दूसरा प्रगतिवाद और तीसरे में अरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवाद। पंत की प्रमुख कृतियां हैं- ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘ग्राम्या’, ‘युगांत’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘कला’ और ‘बूढ़ा चांद’, ‘लोकायतन’, ‘चिदंबरा’, ‘सत्यकाम’ आदि। पंत अपनी रचनाओं में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं।

आलोचना से डरे नहीं

पंत परंपरावादी, प्रगतिवादी और प्रयोगवादी आलोचनाओं के सामने कभी झुके नहीं। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्व मान्यताओं को भी नकारा नहीं। उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को ‘नम्र अवज्ञा’ कविता के माध्यम से खारिज किया। वे कहते थे ‘गाकोकिला संदेश सनातन, मानव का परिचय मानवपन’ उनका व्यक्तित्व आकर्षण से भरपूर था।

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पुरस्कार और सम्मान

सुमित्रानंदन पंत को हिंदी साहित्य सेवा के लिए पद्मभूषण (1961), ज्ञानपीठ (1968), साहित्य अकादमी और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे सम्मानों से अलंकृत किया गया। पंत के सम्मान में उनके नाम पर उनके पुराने घर को, जिसमें वे बचपन में रहा करते थे, सुमित्रानंदन पंत वीथिका के नाम से एक संग्रहालय में बदल दिया गया। पंत के नाम पर इलाहाबाद में स्थित हाथी पार्क का नाम सुमित्रानंदन पंत उद्यान कर दिया गया। प्रसिद्ध लेखक व कवि सुमित्रानंदन पंत का निधन 28 दिसम्बर, 1977 को उत्तरप्रदेश के प्रयागरा में हुआ।

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