काफ़ी लोग उर्दू को शेरो-शायरी और नगमों की दुनिया का सबसे खूबसूरत ज़रिया मानते हैं। इतिहास में जब भी शायरी, नगमें, शेरो का जिक्र होता है तो एक नाम ‘गालिब’ सबसे पहले कानों पर पड़ता है। हिंदी व उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब की आज 224वीं जयंती है। उनका जन्म 27 दिसंबर, 1797 को उत्तरप्रदेश के आगरा में हुआ था। गालिब की शेरो-शायरी सदियों बाद आज भी हर उम्र के लोगों के बीच ख़ासी प्रसिद्ध है। शायर मिर्जा गालिब शराब पीने के आदी थे। एक मामले में उन्हें कुछ महीने के लिए जेल भी हुई थी। इस ख़ास मौके जानिए उनके जीवन के बारे में… और साथ ही पढ़िए गालिब के कुछ बेहतरीन शेर…
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां जिन्हें दुनियाभर की आवाम ‘मिर्जा गालिब़’ के नाम से जानती हैं। उर्दू और फारसी में इनके जैसा शायर शायद ही इस दुनिया में आज तक पैदा हुआ हो। फारसी कविताओं को हिन्दुस्तानी भाषा में पेश करने का श्रेय भी गालिब को ही जाता है। गालिब को भारत, पाकिस्तान और बांग्लोदश समेत दुनिया भर में सुना जाता है, पढ़ा जाता है। मुगल काल के आखिरी शासक बहादुर शाह जफ़र के दरबारी कवि के रूप में भी मिर्जा गालिब पहचान रखते हैं।
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
दरबार में रहते हुए उन्हें बहादुर शाह जफ़र द्वितीय द्वारा ‘दबीर-उल-मुल्क’ और ‘नज़्म-उद-दौला’ के खिताब से भी नवाजा गया। तब से अब तक गालिब को हर कोई अपने तरीके से याद करता है। उनकी शायरियां लोगों को बीच आज भी जगह बनाए हुए हैं। थिएटर से लेकर फिल्मों तक और नाटक से लेकर टीवी तक, हर जगह मिर्जा गालिब पर आधारित शोज बनाए जा चुके हैं। शायरियों के उनके नगमों को ‘दीवान’ कहा जाता है।
कर्ज की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फाकामस्ती एक दिन
शायर मिर्जा गालिब को शराब पीने की बुरी आदत थी। ये कहा जाता है कि उनकी शादी महज़ 13 साल की उम्र में ही हो गई थी। इस शादी से उनके सात बच्चे हुए, हालांकि सातों ही जिंदा नहीं रह पाए। शायद अपने इसी अदृश्य ग़म को उन्होंने अपनी शायरियों के जरिए दिखाया।
थी खबर गर्म की ‘गालिब’ के उड़ेंगे पुर्जे
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ
शेर-शायरी की दुनिया के बादशाह मिर्जा गालिब को जुआ खेलने का भी शौक था। इसी वजह से उन्हें छ: महीने की जेल भी हुईं। बहादुर शाह जफर ने कई सिफारिशें की, मगर अंग्रेजी हुकूमत उस वक्त तक भारत में दस्तक दे चुकी थीं। इस दौरान कड़ी मशक्कत के बाद तीन महीने की सज़ा काट चुके गालिब को जेल से निकाला गया। अपने सात बच्चों के दुनिया से चले जाने के बाद शायद गालिब में कुछ नहीं बचता, लेकिन फिर भी वो लिखते रहे।
लिखने के अलावा गालिब साहब को कुछ आता ही नहीं था। उन्हें मुगल शासकों से पेंशन मिलती थी, जिस पर भी अंग्रेजी हुकुमत ने रोक लगा दीं। ऐसे में उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से इस बारे में बात कीं। इसके लिए वे कलकत्ता भी गए लेकिन बात नहीं बनीं। बावजूद उनकी शायरियों में गज़ब जज्बा नज़र आता था।
प्रख्यात शायर मिर्जा गालिब कभी भी किसी बंधन में बंधे नहीं थे। न मज़हब से ना ही जात से। गालिब इन सबसे कहीं ज्यादा ऊपर के इंसान थे। अपने सात बच्चों की मौत के बाद तो वे वैसे ही अपने मज़हब से बागी बन गए थे। न रोज़े रखना और न ही नमाज पढ़ना। शराब तो गालिब की रोज़ाना की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा थीं।
होगा कोई ऐसा जो ‘गालिब’ को ना जाने
शायर तो अच्छा है पर बदनाम बहुत है
15 फरवरी, 1879 को मिर्ज़ा ग़ालिब का इंतकाल हुआ। लेकिन उर्दू का ये अजीम फ़नकार कहां मरने वाला था। आज भी ज़िंदा है अपनी शायरियों में, अपने नगमों में, अपनी कविताओं में…
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