राजनीति

“PM नरेन्द्र मोदी” का ट्रेलर सिनेमा, राजनीति और प्रोपेगेंडा के बारे में बहुत कुछ बताता है!

सिनेमा और राजनीति का पुराना नाता रहा है। नाता जरूरी हो ये जरूरी भी नहीं है। एक और फिल्म रीलीज होने वाली है जो इस रिश्ते या नाते के बारे में हमें बताने वाली है। ट्रेलर देखकर शक होता है कि रानजीति और सिनेमा का ये रिश्ता प्रचार का है।

“पीएम नरेंद्र मोदी” किसी भी दूसरी फिल्म की तरह नहीं हैं जो पहले आई है। ऐसे प्रधानमंत्री पर बायोपिक बनाना जो फिलहाल शासन में है यह पहले कभी नहीं हुआ है। यह फिल्म और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है जब चुनाव से ठीक पहले रीलीज होने जा रही है।

जनवरी के अंत में ओमंग कुमार की फिल्म की घोषणा की गई थी और 11 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले ही फिल्म की शूटिंग वगैरह पूरी कर ली गई और उससे पहले ही रीलीज के लिए भी तैयार कर ली गई। विवेक आनंद ओबेरॉय ने मोदी का रोल किया है और यह फिल्म 5 अप्रैल को हिंदी, तमिल और तेलुगु में रिलीज होने जा रही है।

नरेन्द्र मोदी के पास ऑडियो और वीडियो प्रचार की किसी भी तरह की कमी नहीं है। टेलीविजन उनकी स्पीच से भरा रहता है। वे खुद अपनी आवाज से रेडियो ब्रॉडकास्ट तक करते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया का माहौल तो जग जाहिर है। तरह—तरह के फेन ग्रुप और पेज लगातार आई टी सेल की जानिब से एक्टिव हैं।

ऐसे में मोदी फिल्म उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को आगे बढ़ाने की दिशा में अगला तार्किक कदम है जो दूसरी बार प्रधानमंत्री बनना चाहता है। फिल्म की घोषणा जब हुई थी तो बातचीत थी कि फिल्म एक प्रोपोगेंडा होगी या नहीं लेकिन ट्रेलर ने इस शक को दूर कर ही दिया है। पता चलता है कि प्रोपोगेंडा या प्रचार बड़ी ही चतुराई से किया जाएगा। अंत में एक इमेज सेट की जाएगी कि मोदी एक महान व्यक्ति हैं और भारत के सबसे महान प्रधानमंत्री हैं।

द लीजेंड ग्लोबल स्टूडियोज प्रोडक्शन का मोदी की भारतीय जनता पार्टी के साथ कोई संबंध नहीं है। यही चीज है जो 25 जनवरी को रिलीज हुई ठाकरे से मोदी फिल्म को अलग बनाता है। ठाकरे को शिव सेना नेता संजय राउत ने बनाया था। आश्चर्य की बात नहीं है कि अभिजीत पानसे की स्टोरी ने बाल ठाकरे की विवादास्पद विरासत को धो दिया और 1992 में -93 के सांप्रदायिक दंगों में शिवसेना की भूमिका को खत्म कर दिया।

इसी समस्या के साथ तेलुगु देशम पार्टी के संस्थापक और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के बारे में दो-भाग की फिल्म को जनवरी और फरवरी में रिलीज़ किया गया। राव एक आकर्षक व्यक्तित्व हैं जिन्होंने तेलुगु सिनेमा और राजनीति का पुनरुत्थान किया लेकिन उनके बेटे नंदामुरी बालकृष्ण द्वारा निर्मित फिल्मों को बहस के बजाय भक्ति को भड़काने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

चूंकि ठाकरे और राव दोनों मर चुके हैं इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी वास्तव में डेरा सच्चा सौदा के जेल में बंद नेता गुरमीत राम रहीम सिंह द्वारा मंथन की गई फिल्मों के दायरे के करीब हैं। ‘एमएसजी: मैसेंजर ऑफ गॉड’ के साथ 2015 में शुरू हुई जिस पर तीन फिल्में बनी। सभी फिल्मों में वे खुद का गुणगान करते रहे और नए भक्तों को जोड़ने की फिराक में लगे रहे।

2017 में मोदी का गांव नाम की एक मूवी भी चर्चा में आई थी जिसमें नागेन्द्र मोदी नामक काल्पनिक केरेक्टरको काम में लिया गया था। मोदी का गांव भाजपा के सदस्य सीए सुरेश झा द्वारा प्रोड्यूस की गई थी। और गुजरात इलेक्शन से ठीक पहले 8 दिसंबर को रीलीज होने जा रही थी लेकिन केंद्रीय प्रमाणन बोर्ड ने फिल्म को मुश्किल में डाल दिया और फिर मोदी काका का गांव इस फिल्म का नाम रखा गया और 29 दिसंबर को इसको रीलीज किया गया।

एक साल बाद बोर्ड ने अपनी हेजिटेशन खत्म कर दी। आदित्य धर की ‘उरी: सर्जिकल स्ट्राइक’ ने उरी में हुई मौतों के लिए जवाबी कार्रवाई में 29 सितंबर, 2016 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी प्रशिक्षण कैंपों पर हमला किया। जनवरी में रिलीज़ हुई ब्लॉकबस्टर में मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जैसे कलाकार शामिल थे। फिल्म में हाइपरनेशनलिज्म का सहारा लिया गया था जैसा कि बीजेपी अक्सर करती आई है।

पीएम नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रवादी सांचे में डूबी हुई है। मोदी ट्रेलर में कहते नजर आते हैं कि उनका सबसे बड़ा प्यार अपने देश के लिए है और उन्हें कश्मीर में झंडा लगाने और आतंकवाद के समर्थन के लिए पाकिस्तान को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए दिखाया गया है। मोदी और अन्य भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए सार्वजनिक बयानों जैसा ही ट्रेलर नजर आता है।

राजनीति और सिनेमा के बीच का टैंगो शायद ही नया हो। कांग्रेस पार्टी ने फिल्मी हस्तियों को प्यार और संरक्षण दिया जब वह सत्ता में थी और अभिनेताओं को अपनी पार्टी में उम्मीदवार बनाया। 1980 के दशक में बीजेपी प्रमुखता से उभरी फिल्मी प्रतिभाओं ने शहर में नए खेल की शुरुआत की।

तमिलनाडु में, राज्य के तीन सबसे बड़े राजनेता एमजी रामचंद्रन, जे जयललिता, और एम करुणानिधि – फिल्म इंडस्ट्रा से ही उभरे। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भाजपा के समर्थकों की गिनती खुले तौर पर कम ही हुई है।

निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और अभिनेता परेश रावल, अनुपम खेर, कंगना बॉलीवुड की उन हस्तियों में शामिल हैं जो खुले तौर पर नरेन्द्र मोदी का समर्थन करते नजर आते हैं। बीजेपी के सांसद रावल अपनी खुद की मोदी बायोपिक पर काम कर रहे हैं। अनुपम खेर ने इस साल ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म में मनमोहन सिंह की भूमिका निभाई जो कांग्रेस के लिए अपने आप में एक मुसीबत ही थी। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने फिल्म को खूब प्रमोट किया।

विवेक अग्निहोत्री की बात करें तो 12 अप्रैल को आम चुनाव के पहले चरण के अगले दिन उनकी ‘द ताशकंद फाइल्स’ रिलीज़ होने जा रही है जिसमें सोवियत संघ में कांग्रेस के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध तरीके से हत्या करने का दावा किया गया था।

ताशकंद फाइलें साजिश वाली फिल्म केटेगरी में फिट बैठती हैं। फिल्म में यही बताया गया है कि सरकारी उद्देश्यों के लिए सामान्य ईमानदार व्यक्तियों की बलि दी जाती है। प्रो बीजेपी लॉबी इसको लेकर खास उत्साही नजर आ रही है ताकि तत्कालीन घटना को लेकर अब की पार्टी पर हमला किया जा सके। यह लॉबी स्वतंत्रता के बाद के इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास कर रही है। साथ ही यह दावा किया जाता है कि अब तक हमारे देश ने जो समझा है वो कांग्रेस द्वारा भारतीयों को बेचा गया एक बड़ा झूठ है।

इस बीच फिल्मों में कई जगह पर मोदी का या मोदी की नीतियों का जिक्र आ ही जाता है। हाल ही में जारी की गई कॉमेडी टोटल धमाल में एक लाइन थी जिसमें प्रधानमंत्री की योजना नोटबंदी की तारीफ की गई थी। कंगना रनौत, जिन्होंने ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झांसी’ का सह-निर्देशन किया है, हमेशा से ही मोदी की प्रशंसक रही हैं।

यदि कोई बॉलीवुड सितारा मोदी की नीतियों के खिलाफ अगर कोई मत रखता है तो वे उस चीज के बारे में सार्वजनिक आकर नहीं बोलते हैं। हालही में करण जौहर, आलिया भट्ट, रणवीर सिंह, रणबीर कपूर, विक्की कौशल और एकता कपूर जैसे दिग्गजों की मोदी के साथ तस्वीर वायरल हुई। ऐसा माना नहीं जाना चाहिए लेकिन सोशल मीडिया पर इस तस्वीर का इस्तेमाल इस हिसाब से किया गया जैसे कि बॉलीवुड फिलहाल सत्ता पक्ष की ओर ही है।

कई तरह के गाने और डायलोग फिल्मों में लिए गए जो कि ऐसे या वैसे मोदी सरकार की ओर इशारा कर ही देते हैं। ‘ढिशूम’ फिल्म का गाना है जिसमें कहा जाता है “ जन गन पे जो खड़ा ना हुआ तो ढिशूम”. इसके अलावा ‘बेबी’ फिल्म का डायलॉग है, ‘अक्लमंदी घर में घुसकर मारने में है।’

Neha Chouhan

12 साल का अनुभव, सीखना अब भी जारी, सीधी सोच कोई ​दिखावा नहीं, कथनी नहीं करनी में विश्वास, प्रयोग करने का ज़ज्बा, गलत को गलत कहने की हिम्मत...

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