अस्सी के दशक में एक दस्यु सुंदरी का नाम ख़ासा चर्चा में था। यह वो नाम था जिसके आतंक के किस्से सुनाए जाते थे। हम बात कर रहे हैं ‘बैंडिट क्वीन’ फूलन देवी की। वह महिला जिसने जिंदगी में बहुत दर्द देखे और उस दर्द को अपना हथियार बनाकर एक खुंखार महिला के रूप में सबके सामने आईं। हालांकि, 25 जुलाई 2001 को फूलन की गोली मारकर हत्या कर दी गई और यह फूलन इतिहास का हिस्सा बन गईं। आखिर इस महिला में ऐसा क्या था कि इसने डकैत से सांसद बनने तक का सफ़र तय किया। फिर भी अतीत ने इसका पीछा नहीं छोड़ा व काल बनकर घर के गेट तक आ गया। 10 अगस्त को बैंडिट क्वीन फूलन देवी का 60वां जन्मदिन है। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ दिलचस्प बातें…
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त, 1963 को उत्तर प्रदेश में जालौन के घूरा का पुरवा में हुआ था। गरीब और ‘छोटी जाति’ में जन्मी फूलन के घरवाले जहां खुद को समाज का दबा हिस्सा मानते थे। वहीं, फूलन में बचपन से ही कुछ विरोधी स्वभाव था। उसने एक बार अपनी मां से सुना था कि उसके चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली थी। बस, यह उसके दिमाग में घुस गया था और इसके लिए वे अपने चाचा से लड़ ली थी। हालांकि, इस कारण चाचा के लड़के ने फूलन के सिर पर ईंट मार दी थी।
फूलन का ऐसा स्वभाव देखकर घरवालों ने दस साल की उम्र में ही उसकी शादी 25-30 साल के अधेड़ से कर दी थी। इस अधेड़ ने फूलन देवी का कई बार रेप किया। जब फूलन का स्वास्थ्य खराब होने लगा तो वह पीहर आ गई। लेकिन कुछ दिनों बाद उसके भाई ने फिर उसे ससुराल भेजा, लेकिन देर हो चुकी थी और फूलन के पति ने दूसरी शादी कर ली। बस, यहीं से फूलन ने अलग राह पकड़ ली।
फूलन देवी का उठना बैठना डाकुओं की गैंग के कुछ लोगों के साथ होने लगा। स्वभाव से तल्ख फूलन जल्द ही गैंग का हिस्सा बन गई। गैंग का सरदार बाबू गुज्जर फूलन को पसंद करता था। यह बात विक्रम मल्लाह को पसंद नहीं आई और उसने गुज्जर को मौत के घाट उतार दिया। समय के साथ चल रही फूलन अब विक्रम के साथ रहने लगी। अब उसके पास पॉवर था और इसने इसका फायदा उठाते हुए एक दिन अपने पति और उसकी दूसरी पत्नी की खूब पिटाई की। फूलन धीरे-धीरे गैंग की ताकतवर सदस्य बनती जा रही थी और विभिन्न डकैतियों में अहम रोल निभा रही थी, लेकिन किस्मत में अभी उसके लिए और दुख लिखे थे।
गुज्जर की मौत से श्रीराम ठाकुर व लाला ठाकुर का गैंग नाराज था और उसकी मौत का कारण वे फूलन को मानते थे। एक दिन गैंग की आपसी मुठभेड़ में ठाकुरों ने विक्रम को मौत के घाट उतार दिया और फूलन को किडनैप कर लिया। बताया जाता है कि ठाकुरों ने तीन हफ्ते तक फूलन देवी का रेप किया।
यहां से फूलन किसी तरह बचकर निकली और फिर से डाकुओं की गैंग में शामिल हो गई थी। वर्ष 1981 में फूलन बेहमई गांव लौटी। उसने दो लोगों को पहचान लिया, जिन्होंने उसका रेप किया था। रेप का दर्द झेल रही फूलन का गुस्सा तब शांत हुआ जब उसने गांव से 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया।
इस हत्याकांड के बाद से फूलन देवी एक चर्चित डकैत बन गईं। उनके इस कदम ने सरकार को हिला कर रख दिया और उन पर इनाम भी घोषित हो गया। भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी इस बीच फूलन की गैंग से बात कर रहे थे। उनकी कोशिशों का नतीजा रहा कि दो साल बाद फूलन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्म- समर्पण करने के लिए राजी हो गईं। उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के चार्ज लगे। 11 साल जेल में रहने के बाद मुलायम सिंह की सरकार ने वर्ष 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया। रिहा होने के बाद उम्मेद सिंह से उनकी शादी हो गई।
वर्ष 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गई व मिर्जापुर से सांसद बनीं। यहां से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। लेकिन ठाकुरों को मौत के घाट उतारने के समय से ही उन्हें लेकर कई लोगों के दिल में नाराज़गी थी।
25 जुलाई, 2001 को शेर सिंह राणा नाम के शख्स फूलन से मिलने आया। वह फूलन देवी के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ना चाहता था, वह मिला खीर खाई और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी। राणा ने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है। 14 अगस्त, 2014 को दिल्ली की अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाईं। इस तरह एक ऐसे अध्याय का अंत हुआ, जिसमें दर्द, अपमान, गुस्सा, स्वाभिमान, लड़ाई, परिवर्तन सबकुछ शामिल था।
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