हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की आज 4 मार्च को 102वीं जयंती है। वह मुंशी प्रेमचंद के बाद के युग में आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे सफल और प्रभावशाली लेखकों में से एक माने जाते हैं। इन्होंने प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास ‘मैला आँचल’ लिखा, जो प्रेमचंद के ‘गोदान’ के बाद सबसे सफल हिंदी उपन्यास माना जाता है। फणीश्वर समकालीन ग्रामीण भारत की आवाज़ को ‘आंचलिक उपन्यास’ (क्षेत्रीय कहानी) शैली के जरिए चित्रित कर हिंदी के अग्रणी लेखकों में सम्मिलत हुए। इस खास अवसर पर जानिए कथाकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के अररिया जिले के सिमराहा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटे से गांव औराई हिंगना में हुआ था। वह मंडल समुदाय से आते थे, जो एक विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय था। उनके पिता का नाम शिलानाथ मंडल था, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे। फणीश्वर की शिक्षा भारत और नेपाल में हुईं। उनकी प्राथमिक शिक्षा अररिया और फारबिसगंज में हुई थी। उन्होंने बिराटनगर आदर्श विद्यालय (स्कूल), बिराटनगर, नेपाल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। इंटरमीडिएट करने के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। फणीश्वर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए। बाद में उन्होंने वर्ष 1950 में नेपाली क्रांतिकारी आंदोलन में भी भाग लिया था।
फणीश्वर नाथ रेणु ने अपने जीवनकाल में कुल तीन शादियां की थी। उनकी पहली पत्नी सुलेखा रेणु थी, जिनसे एक बेटी कविता हुई। उन्हें लकवा हो जाने की वजह से फणीश्वर ने दबाव में दूसरा विवाह एक विधवा पद्मा से किया। इनसे उन्हें तीन बेटे हुए। उनकी तीसरी शादी जब उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया तो वहां एक नर्स लतिका ने उनकी सार-संभाल की। इस दौरान रेणु उन पर आसक्त हो गए। बाद में उन्होंने उस नर्स से शादी कर ली।
फणीश्वर नाथ रेणु ने लेखन कार्य की शुरुआत वर्ष 1936 में कर दी थी। हालांकि, इस दौरान प्रकाशित हुई उनकी कहानियां अपरिपक्व कहानियां थी। जब वह वर्ष 1944 में जेल से बाहर आए तो उन्होंने अपनी पहली परिपक्व कहानी ‘बटबाबा’ लिखीं। यह कहानी ‘साप्ताहिक विश्वमित्र’ के 27 अगस्त, 1944 के अंक में प्रकाशित हुई। बाद में उनकी वर्ष 1944 में ‘पहलवान की ढोलक’ प्रकाशित हुई। उनके जीवन की अंतिम कहानी वर्ष 1972 में प्रकाशित ‘भित्तिचित्र की मयूरी’ थी। फणीश्वर को जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उन्हें उनकी कहानियों से भी मिलीं। ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘सम्पूर्ण कहानियां’ आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
फणीश्वरनाथ रेणु के प्रसिद्ध उपन्यास ‘मैला आंचल’ के बाद वर्ष 1970 में उन्हें भारत सरकार द्वारा लेखन में योगदान के लिए चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। फणीश्वर आपातकाल के दौरान सरकारी दमन और शोषण के विरूद्ध ग्रामीण जनता के साथ प्रदर्शन करते हुए जेल गए। उन्होंने आपातकाल का विरोध करते हुए अपना ‘पद्मश्री’ का सम्मान भी लौटा दिया था। इसी समय रेणु ने पटना में ‘लोकतंत्र रक्षी साहित्य मंच’ की स्थापना की।
फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर ‘तीसरी कसम’ नामक फिल्म बनीं। इसके बाद वह काफी लोकप्रिय हो गये थे। आज भी ‘तीसरी कसम’ फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। इस फिल्म को बासु भट्टाचार्य ने डायरेक्ट किया था और इसके निर्माता सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र थे। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने लीड रोल प्ले किया था।
देश के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु को ‘पैप्टिक अल्सर’ नामक बीमारी हो गई थी, जिसके इलाज के दौरान 11 अप्रैल, 1977 को उनका निधन हो गया।
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