देश में बढ़ती आबादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग की गई है। यह याचिका अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती द्वारा दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि देश की आधी समस्याओं के लिए सीधे तौर पर अनियंत्रित गति से बढ़ रही जनसंख्या जिम्मेदार है। याचिका में कहा गया है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकार सभी को रोजगार, भोजन, आवास आदि उपलब्ध नहीं करा पा रही है। देश में लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा करना संभव नहीं हो पा रहा है।
गौरतलब है कि भाजपा नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने पहले ही इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है। उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। लेकिन केंद्र सरकार या कानून मंत्रालय ने अभी तक इस मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है। हालांकि, इस पर 20 अप्रैल को एक बार फिर सुनवाई होनी है। अब संभावना है कि स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की नई याचिका पर भी उसी दिन सुनवाई हो।
इससे पहले केद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनसंख्या नियंत्रण कानून मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस मामले में कोई पक्षकार न होने के कारण इस पक्ष को कोर्ट में स्वीकार नहीं किया गया है। हालांकि, मामले की सुनवाई जारी है।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान के 42वें संशोधन के दौरान वर्ष 1976 में संविधान की समवर्ती सूची की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूचि में ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ शब्द जोड़े गए थे। समवर्ती सूचि में होने के कारण इस विषय पर राज्य और केंद्र दोनों ही कानून बना सकते हैं। लेकिन उच्चतम न्यायालय से याचिकाकर्ता स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने मांग की है कि चूंकि यह किसी एक राज्य की नहीं, अपितु पूरे देश की समस्या है। ऐसे में इस पर केंद्र सरकार को ही कानून बनाना चाहिए जो पूरे देश पर लागू हो सके।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान 11 सदस्यीय वेंकटचेलैया आयोग का गठन कर संविधान समीक्षा का काम किया गया था। तब आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार को संविधान में अनुच्छेद 47A जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। लेकिन आज तक आयोग के इस सुझाव पर किसी भी सरकार ने कोई अमल नहीं किया है।
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