भारत को अंग्रेजों से आजाद हुए अभी 27 साल ही हुए थे कि वह 18 मई, 1974 को दुनिया के परमाणु सम्पन्न देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ। जी हां, 49 साल पहले भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। इसका उद्देश्य शांतिपूर्ण कार्यों के लिए उपयोग करना था। पहला परमाणु परीक्षण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सम्पन्न हुआ। यह परीक्षण राजस्थान के थार मरुस्थल में स्थित जैसलमेर की पोखरण नामक जगह पर किया गया था। इस परीक्षण के बाद देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा। इस ख़ास अवसर पर जानिए भारत के पहले परमाणु परीक्षण के बारे में कुछ रोचक बातें…
भारत ने अपने पहले परमाणु परीक्षण का नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा था। इस ऑपरेशन का यह नाम रखने के पीछे की वजह उस दिन बुद्ध पूर्णिमा का होना था। जिसकी वजह से वैज्ञानिकों की टीम ने परमाणु परीक्षण का नाम ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा रखा। साथ ही जो बम था, उस पर स्माइलिंग बुद्धा की फोटो भी अंकित की गई। इसे पोखरण-1 के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का पहला सफल परमाणु बम परीक्षण था।
पोखरण में परीक्षण के दौरान भारतीय सेना बेस में 75 वैज्ञानिकों की टीम ने स्माइलिंग बुद्धा टेस्ट का सफल परीक्षण किया। सुबह आठ बजकर पांच मिनट पर भारत ने अपने पहले परमाणु बम पोखरण का सफल टेस्ट कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा दिया था। उस बम की गोलाई करीब 1.2 मीटर थी और वजन 1400 किलोग्राम था। इसके इतने बड़े आकार से ही साबित हो जाता है कि यह आखिर कितना घातक रहा होगा। कहते हैं कि जब यह फटा था तो 8 से 10 किलोमीटर दूर तक धरती हिल गई थी।
ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ परमाणु परीक्षण की सफलता के साथ ही भारत दुनिया का छठवां परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना गया था। भारत से पूर्व परमाणु शक्ति संपन्न देशों में अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन आदि शामिल थे। ये देश भारत से पहले सफलतापूर्वक परमाणु बम परीक्षण कर चुके थे।
ऐसा नहीं है कि भारत ने आजादी के बाद ही परमाणु शक्ति बनने का सपना देखा हो, बल्कि भारत को परमाणु शक्ति बनाने का कार्य आजादी से कुछ साल पूर्व वर्ष 1944 से ही शुरू हो गया था। इस कार्यक्रम का नेतृत्व भारत के महान भौतिक वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने किया। डॉ. भाभा के ही निर्देशन में भारत ने अपने इतिहास में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। भाभा ने भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ परमाणु कार्यक्रम पर काम करना शुरू किया। इसके बाद कई और बड़े वैज्ञानिक इस मुहिम से जुड़ते चले गये। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में परमाणु परीक्षण कार्यक्रम ने गति प्राप्त कर ली थी।
परंतु इस कार्यक्रम को अंजाम तक ले जाने के समय देश की कमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में थी। हालांकि, उन्होंने भी देश के परमाणु कार्यक्रम को अपना पूरा समर्थन दिया। भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने अथक परिश्रम से इसे सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जिसका अंत में परिणाम सुखद रहा और वर्ष 1974 के आते-आते भारतीय वैज्ञानिकों का दल भारत को एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनाने में सफल रहे।
भारत के पहले परमाणु परीक्षण की टीम के लीडर भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना थे, जो भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) के निदेशक भी थे। उन्होंने सिस्टम डवलपमेंट के काम में समन्वय के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के तत्कालीन निदेशक और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ.बसंती दुलाल नाग चौधरी के साथ मिलकर काम किया। पी.के. आयंगर ने डवलपमेंट के प्रयास में निर्देशन में अहम भूमिका निभाई और आर. चिदंबरम ने न्यूक्लियर सिस्टम डिजाइन का नेतृत्व किया। डॉ. नगापट्टिनम संबासिवा वेंकटेशन ने चंडीगढ़ स्थित डीआरडीओ टर्मिनल रिसर्च लैबरेट्री का निर्देशन किया जहां सिस्टम को बनाया गया।
जब दुनियाभर में भारत के पहले परमाणु परीक्षण की खबर फैली तो कई देश भारत से नाराज हो गए। इनमें सबसे पहले अमेरिका ने इस परमाणु परीक्षण की शिकायत संयुक्त राष्ट्र संघ में की। अमरीका का कहना था कि भारत ने बगैर यूएन को सूचित किए ही परमाणु बम का टेस्ट कर लिया, जिससे दूसरे देशों में असुरक्षा और भय का माहौल बनेगा। उसने बिना किसी चेतावनी के भारत को परमाणु समुदाय में प्रवेश करने से रोकना शुरू कर दिया। इसके बाद भारत को मिलने वाली सहायता भी रोक दी और कई सारे प्रतिबंध लगा दिए गए थे। भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 11 और 13 मई, 1998 को किया था। इस ऑपरेशन का नेतृत्व देश के महान वैज्ञानिक और बाद में राष्ट्रपति बने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने किया था।
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