कम ही लोग जानते होंगे और इस बात की कम ही चर्चा होती है कि आज यानि 19 नवंबर को विश्व पुरूष दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन को इतना छोटा क्यों रखा जाता है? सभी जानते होंगे कि 8 मार्च को वुमन्स डे मनाया जाता है। लोग इसके बारे में बात करते हैं। अच्छा लिखते हैं। अखबारों से लेकर सोशल मीडिया तक सब जगह इसके बारे में बात होती है। महिलाओं को बराबर लाने की बात की जाती है। पल भर में महिलाओं को सशक्त बनाने की होड़ सी लग जाती है। लेकिन मेन्स डे पर ये भेदभाव क्यों? थोड़ा गौर फरमाइए।
हर साल 8 मार्च को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर पुरुषों का एक वर्ग यह कहता है कि उनको लेकर कोई स्पेशल डे इस तरह सेलिब्रेट क्यों नहीं किया जाता? उनका सवाल होता है कि क्या हम इसके लायक नहीं हैं? लेकिन ध्यान देने वाली बात है सोशल मीडिया पर जो ट्वीट्स की बाढ़ महिला दिवस पर आती है वो पुरूषों के लिए ही होती है।
आखिरकार, वास्तव में कल अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस था। आज अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस है। और कल भी अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस होगा। सच्चाई यह है कि पुरुषों को काम करने के महिलाओं से अधिक पैसे मिलते हैं। काम के अधिकांश क्षेत्रों में ऊपर के लोग पुरूष ही हैं। आधी रात को वो आदमी ही है जो बिना किसी डर के सड़कों पर घूम सकता है।
मुद्दे की बात ये है कि खुद एक पुरूष को पता ही नहीं है कि वो इस दिन को कैसे सेलिब्रेट करे। जब भी किसी आदमी से पूछा जाता है कि वो मेन्स डे कैसे सेलिब्रेट करेंगे तो जवाब यही होता है कि पूरे दिन सोएंगे, मजे करेंगे और क्या?
सच तो ये है कि मर्द को फर्क नहीं पड़ता। मर्द अधिकतर रूढ़ीवादी सोच से घिरे हैं उन्हें लगता है मर्द को दर्द नहीं होता। “आदमी बन आदमी” “क्या औरतों जैसे कर रहा है” ये कुछ स्टीरियोटाइप टिप्पणियां हैं जिन्हें हर रोज बोला जाता है।
सच तो यही है वुमन्स डे पर जो भी पुरूष दहाड़ते हैं वो मेन्स डे के लिए ही होता है। आज समाज में महिलाओं की जो स्थिति है वो मेन डोमिनेंट सोसायटी की वजह से ही है। तो अगर आप वुमन्स डे सेलिब्रेट कर रहे हैं महिलाओं के बारे में लिख रहे हैं उनको एन्पावर करने के बारे में बात कर रहे हैं तो सुधरना आदमी को ही है। तो जिस दिन इस मर्द को दर्द हो गया, इंटरनेशनल मेन्स डे भी सार्थक हो जाएगा।
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