लालू प्रसाद यादव जैसे नेता भारत में बहुत कम हैं। उनकी छवि से कई तरह के इमोशन जुड़े हैं। देहाती, हंसने हंसाने वाला, जमीन से जुड़ा और भ्रष्टाचारी उनमें से ही कुछ हैं। बीस साल पहले वे बिहार के मुख्यमंत्री थे। आज वे भ्रष्टाचार मामले में दोषी हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते। लालू अपने आप में एक क्लास हैं।
राजनीति में उनका उभार काफी दिलचस्प है। लालू यादव की कहानी काफी सिंपल सी है। लालू प्रसाद के जीवन पर कई किताबें आपको मिल जाएंगी। उनसे एक बात का पता चलता है कि लालू खुद की सफलता से ही नफरत करते थे।
लालू यादव का कहना रहा है कि वे जनता के प्रति ईमानदार हैं और पूरी तरह से गरीबों के लिए समर्पित है। लालू ये भी कहते आए हैं कि वे धर्मनिरपेक्षता के प्रति समर्पित हैं। वे भाजपा से नफरत करते हैं और कांग्रेस से प्यार।
लालू प्रसाद जब भी लोगों से मिलने आते थे उनके हाथ में एक नीम की दातून हुआ करती थी। इससे पता चलता है कि लालू अपनी छवि को लेकर काफी सजग रहा करते थे।
लालू प्रसाद को एक फनी और हंसाने वाले नेता के रूप में देखा जाता है लेकिन इस हंसमुख मिजाज के पीछे के बड़े राजनीतिक दिमाग को बहुत कम लोग समझ पाते हैं।
लालू प्रसाद के साथ कई विवाद जुड़े हैं लेकिन इन सब के बावजूद भी लालू प्रसाद के पास एक करिश्मा हुआ करता था जिससे लोग जुड़ते थे। आम लोगों में उनका कनेक्ट जगजाहिर है।
1990 की वो घटना आज भी सभी याद करते हैं। लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा कर रहे थे और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने उनकी यह रथ यात्रा रोक दी और उनको गिरफ्तार भी कर लिया गया।
दुश्मनी तो हम देख ही रहे हैं लेकिन एक जमाने में लालू और नीतिश की दोस्ती के भी चर्चे रहे। वो किस्सा भी हमेशा याद किया जाता रहेगा जब लालू यादव ने रातों रात अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। इसके बाद राबड़ी देवी तीन बार बिहार की मुख्यमंत्री रहीं। इससे लालू का काफी आलोचना का सामना करना पड़ा।
आज चारा घोटाले को लेकर वे अपनी सजा काट रहे हैं। अब तक उन्हें 25 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। संकर्षण ठाकुर ने लालू यादव की जीवनी लिखी थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि वे अक्सर खेतों के बीच अपना हेलीकॉप्टर उतरवा देते थे और गांव के लोगों को उसमें बिठाकर उसकी सैर करवाते थे। कई बार अपने काफिले को रोककर बच्चों को टॉफियां बांटा करते थे। लालू खुद कहा करते थे जब तक समोसे में रहेगा आलू तब तक बिहार में चलेगा लालू।
कभी कभी वे किसानों के घर चले जाते और उनसे खाने की फरमाइश करते थे। बच्चों के साथ गाना गाते थे और वहां के लोगों से पूछते थे “ खईनी है तुम्हारे पास?” लालू को हमेशा पिछड़ों में एक विश्वास उजागर करने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें दबे कुचलों का संरक्षक माना जाता है। ऐसे कई वाकये आपको मिल जाएंगे और उन वाकयों में कुछ भी हो साथ में आपको लालू जरूर मिलेगा।
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