पर्यावरण को लेकर आये दिन कई शोध हमारे सामने आ रहे हैं जिनसे न केवल पर्यावरण का हानि पहुंच रही है बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी खतरे की घंटी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में कोयले को जलाकर बनने वाली विद्युत का उत्पादन मानव व पर्यावरण के लिए विश्व में सबसे ज्यादा हानिकारक है। यह बात वैश्विक उत्सर्जन के सबसे बड़े ठिकानों को लेकर किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।
यूरोप महाद्वीप के देश स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख विज्ञान व तकनीकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर कोयला आधारित विद्युत उत्पादन को हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों और जहरीले वायु तत्वों के उत्सर्जन का प्राथमिक स्रोत कहा जा सकता है।
इस विश्वविद्यालय के पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान की तरफ से इस शोध का नेतृत्व करने वाली स्टेफनी हेलवैग के अनुसार, कोयला आधारित विद्युत प्लांट से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कण, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पारा (मर्करी) जैसी जहरीली गैसें निकलकर पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं, जिससे दुनिया भर के काफी लोगों के स्वास्थ्य नुकसान पहुंचाती हैं।
यह शोध नेचर सस्टेनबिल्टी जनरल में प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया है कि चीन और अमेरिका को कोयले से विद्युत उत्पादन करने वाले सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि इनके और मध्य यूरोप के देशों के पावर प्लांट बेहद आधुनिक हैं, जिनसे ग्लोबल वार्मिंग गैसों व अन्य तत्वों का उत्सर्जन बहुत कम मात्रा में होता है। उनके विपरीत भारत, पूर्वी यूरोप और रूस के कोयला पावर प्लांट अब भी पुरानी तकनीक वाले हैं। जिन्हें जल्द से जल्द अपग्रेड या बंद किया जाना चाहिए। भारत में ऐसे पावर प्लांटों की संख्या सबसे अधिक है।
ओबर्सचेल्प ने कहा है कि यह सबसे अच्छा विकल्प है इसलिए किसी भी नए कोयला बिजली पावर प्लांट का निर्माण नहीं करना चाहिए। जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टिकोण से हमें कोयला से दूर और प्राकृतिक गैस की ओर बढ़ना चाहिए और लम्बे समय में अक्षय ऊर्जा की ओर।
रिपोर्ट में कहा कि घटाए जाएं कोयला पावर प्लांट
इस अध्ययन में विश्व के 7,861 कोयला पावर प्लांट को शामिल किया गया। जिसके आधार पर 10 प्रतिशत सबसे बड़े कोयला पावर प्लांट जल्द से जल्द हटने के लिए कहा है।
अगर शोध को सही तरीके से लागू किया जाता है तो तल्काल ही 16 फीसदी तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन घट जाएगा। शोध की मानें तो इसका मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर 64 फीसदी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
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