NSA Ajit Doval is popularly known as 'James Bond' in India.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानि एनएसए और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व निदेशक अजीत डोभाल आज 20 जनवरी को अपना 77वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्हें भारत के पांचवें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। डोभाल ने ऑपरेशन विंग के प्रमुख के रूप में एक दशक से ज्यादा समय तक काम किया व देश और देश के बाहर कई महत्वपूर्ण ऑपरेशंस को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। वे पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं। डोवाल साहब को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। इस ख़ास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
साल 2019 में सीआरपीएफ जवानों के काफिले पर पुलवामा में आतंकी हमला हुआ था। इस हमले के बाद भारतीय वायुसेना द्वारा एयर स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकी ठिकानोंं को नष्ट करने की रणनीति बनाई गईं। इस सफल रणनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने ही अमलीजामा पहनाया था। अजीत डोभाल को 30 मई, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का पांचवां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था।
वर्ष 1998 में गठित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) का पद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) के मुख्य कार्यकारी एवं भारत के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का प्राथमिक सलाहकार होता है। इस पद पर पहली बार ब्रजेश मिश्रा को नियुक्त किया गया है। एनएसए का कार्यालय नई दिल्ली में है।
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी, 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र विषय में मास्टर डिग्री अर्थशास्त्र प्राप्त की।
वर्ष 1968 में केरल काडर से अखिल भारतीय पुलिस सेवा में चयन हुआ और चार साल बाद वह इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़ गए थे।
वह सात साल तक पाकिस्तान में खुफिया जासूस के तौर पर काम कर चुके हैं।
अजीत डोभाल भारत के एकमात्र ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें कीर्ति चक्र और शांतिकाल में मिलने वाले गैलेंट्री अवॉर्ड से नवाजा गया है।
मिजोरम और पंजाब में उग्रवाद पर काबू पाने में अहम भूमिका निभाई।
1999 में कंधार विमान हाईजैक में सरकार के प्रमुख तीन वार्ताकारों में रहे।
1971 से 1999 के बीच 15 हाईजैक की कोशिशों से निपटने में भूमिका निभाई।
1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर-2 से अहम खुफिया जानकारी जुटाई।
1990 में कश्मीर में उग्रवाद पर काबू के लिए जम्मू एवं कश्मीर भेजा गया।
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