हम कितने गैरजिम्मेदार होते जा रहे हैं अपने माता-पिता की सेवा के प्रति, कि आज उनकी सेवा करने के लिए देश में कानून बनाया जा रहा है। क्या सिर्फ कॅरियर ही बड़ी जिम्मेदारी है, जिसके लिए हम अपने बुजुर्ग माता—पिता की सेवा करने को बोझ समझने लगे हैं। हां, हमारे इन गैर जिम्मेदारी भरे कदमों की वजह से केंद्र सरकार अब इन बुजुर्गों (सीनियर सिटीजन) का ख्याल रखने के लिए ‘मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007’ को ओर मजबूत बनाने तैयारी में है। दरअसल केंद्रीय कैबिनेट की ओर से न केवल खुद के बच्चों, बल्कि दामाद और बहू को भी सीनियर सिटीजन की देखभाल के लिए जिम्मेदारी सुनिश्चित करने का प्रस्ताव है।
सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 में 4 दिसंबर को कैबिनेट की ओर से इसमें संशोधन की अनुमति मिल गई है। इसके तहत बुजुर्गों का ख्याल रखने वालों की परिभाषा में विस्तार किया जाएगा। नए नियम के अनुसार माता—पिता और सास—ससुर की सेवा को भी इस एक्ट में शामिल किया गया है, चाहे वे सीनियर सिटीजन हो या नहीं।
इस बिल को सदन में अगले हफ्ते पेश किया जा सकता है। खबरों के अनुसार इस अधिनियम में 10 हजार रुपए मेंटिनेंस देने की सीमा को भी खत्म किया जा सकता है।
आज के समय में बुजुर्गों की देखभाल को लेकर अनेक शिकायतें आती है। ऐसे में इस नए नियम के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के माता—पिता की देखभाल करने से संबंधी शिकायत पर उसे 6 महीने की कैद की सजा हो सकती है, पूर्व में तीन महीने सजा का प्रावधान था। देखभाल संबंधी परिभाषा में भी बदलाव कर, इसमें घर और सुरक्षा भी शामिल किया गया है। देखभाल के लिए तय की गई राशि का आधार बुजुर्गों, अभिभावकों, बच्चों और रिश्तेदारों के रहन-सहन के आधार पर किया जाएगा। प्रस्ताव पास होने की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि बिल लाने का मकसद सीनियर सिटीजन का सम्मान सुनिश्चित करना है।
इस अधिनियम के अनुसार ऐसे माता—पिता जो अपनी आय या अपनी संपत्ति से अपना खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं वे अपने वयस्क बच्चों से अपनी देखभाल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके तहत उचित भोजन, आवास, कपड़े और चिकित्सा सेवा का खर्च शामिल है।
माता—पिता के तहत जन्म देने वाले, गोद लिए गए और सौतेले माता—पिता शामिल हैं, चाहे वे वरिष्ठ नागरिक हो या नहीं। जिन वरिष्ठ नागरिकों के बच्चे नहीं है, जो 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र के हैं वे भी अपने रिश्तेदारों से रखरखाव का दावा कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति पर कब्जा रखते हैं या बाद में इसकी संभावना है।
सीनियर सिटीजन अपने रखरखाव के लिए यह आवेदन स्वयं के द्वारा अथवा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति या स्वयंसेवी संगठन द्वारा कर सकते हैं। ट्रिब्यूनल द्वारा इस पर अपने आप कार्रवाई की जा सकती है।
ट्रिब्यूनल को जब आवेदन प्राप्त हो जाता है तो वह बच्चों/रिश्तेदारों के खिलाफ छानबीन या आदेश दे सकता है कि वे अपने माता—पिता या सीनियर सिटीजन की देखभाल के लिए एक अंतरिम मासिक भत्ता दें। यदि उसे यह मालूम हो कि बच्चों या रिश्तेदारों ने अपने माता—पिता या सीनियर सिटीजन की देखभाल से इंकार किया है या इसकी उपेक्षा की है तो वे प्रतिमाह अधिकतम 10,000 रुपए की राशि का मासिक रखरखाव भत्ता देने का आदेश देंगे।
बुजुर्गों को सम्मान दिलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक उप संभाग में ऐसे एक या एक से अधिक ट्रिब्यूनल की स्थापना की आवश्यकता होती है। यह प्रत्येक जिले में अपीलीय ट्रिब्यूनल गठित करेगा जो ट्रिब्यूनल के निर्णय के विरुद्ध वरिष्ठ नागरिकों की अपील की सुनवाई करेगा।
इस प्रक्रिया के लिए किसी पेशेवर कानूनी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होगी। यदि व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे 3 माह की कैद या 5000 रुपए का जुर्माना अथवा दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।
नए प्रस्तावित नियमों में देखभाल करने वालों में गोद लिए गए बच्चे, सौतेले बेटे और बेटियों को भी शामिल किया गया है। इस संशोधन में ‘सीनियर सिटीजन केयर होम्स’ के लिए पंजीकरण का प्रावधान है और केंद्र सरकार स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करेगी। इसमें ‘होम केयर सर्विसेज’ उपलब्ध कराने वाली एजेेंसियों को रजिस्टर करने का प्रस्ताव है। सीनियर सिटीजन तक पहुंच बनाने के लिए प्रत्येक पुलिस ऑफिसर को एक नोडल ऑफिसर नियुक्त करना होगा। इस नए एक्ट से बुजुर्गों का शारीरिक और मानसिक कष्ट में कमी आएगी। इसके अलावा इस नए बिल से देखभाल करने वाले भी बुजुर्गों के प्रति ज्यादा संवेदनशील और जिम्मेदार बनेंगे।
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