बदनामी फैला दूं क्या पारो?
उस वक्त बदनाम हो जाते तो शायद हमारा नाम एक हो जाता देव!
इन दो लाइनों ने ना जाने कितनी ही इश्क की कहानियों को रूहानी अंदाज दिया और कितने ही प्रेमियों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई। जी हां, देव और पारो की मोहब्बत की दासतां कौन नहीं जानता है! शायद ही कोई आशिक इससे अंजान रहा हो। इस शानदार उपन्यास को लिखने वाले महान रचनाकार शरत चंद्र चटोपाध्याय ने भी ऐसी लोकप्रियता की कभी कल्पना नहीं की थी।
महज 17 साल की उम्र में लिखे गए इस उपन्यास पर अब तक फिल्मकारों ने करीब 17 फिल्में बना दी हैं। सिर्फ ‘देवदास’ जैसी शानदार फिल्म ही नहीं, शरत के उपन्यासों पर अब तक 50 से भी ज्यादा फिल्में बन चुकी है। इस महान बंगाली साहित्यकार की आज पुण्यतिथि है ऐसे में आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ खास बातें-
आर्थिक तंगी के चलते छोड़नी पड़ी पढ़ाई
बंगाल के हुगली जिले के छोटे से गांव देवानंदपुर में 15 सितंबर 1876 को जन्मे शरत परिवार में कुल 9 भाई-बहन थे। घर में शुरू से ही आर्थिक तंगी का माहौल रहा जिसके चलते बचपन में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पढ़ाई नहीं कर सकें तो रोजगार की तलाश में निकल पड़े। कुछ समय लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के पद पर काम किया। लेखन में शुरू से ही मन लगता था तो कलकत्ता लौटकर गंभीरता से लेखन शुरू किया।
लेखन के क्षेत्र में शरतचंद्र ने कई उपन्यास लिखे जिनमें ‘पंडित मोशाय’, ‘बैकुंठेर बिल’, ‘मेज दीदी’, ‘दर्पचूर्ण’, ‘श्रीकांत’, ‘अरक्षणीया’, ‘निष्कृति’, ‘मामलार फल’, ‘गृहदाह’, ‘शेष प्रश्न’, ‘दत्ता’, ‘देवदास’, ‘बाम्हन की लड़की’, ‘विप्रदास’, ‘देना पावना’ आदि कुछ प्रमुख हैं। शरतचंद्र ने अपने जीवन में उपन्यासों के अलावा कई नाटक और निबन्ध भी लिखे।
देवदास के जरिए बताई थी नाकाम प्रेमी की कहानी
शरत चंद्र के उपन्यास ‘देवदास’ पर पहली फिल्म साल 1928 में आई। फिर 1935 में पीसी बरुआ ने बंगाली भाषा में देवदास बनाई। इसके बाद बॉलीवुड में साल 1955 में बिमल रॉय ने दिलीप कुमार को लेकर ‘देवदास’ बनाई जिसे खूब तारीफ मिली।
साल 2002 में बॉलीवुड निर्देशक संजय लीला भंसाली ने देवदास को एक और नाम दिया और शाहरुख खान को लेकर देवदास बनाई जिसमें ऐश्वर्या राय पारो बनी तो माधुरी दीक्षित ने चंद्रमुखी का किरदार निभाया।
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