भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना की आज 9 जनवरी को 101वीं जयंती है। उन्होंने वर्ष 1968 में चिकित्सा (फिजियोलॉजी) के क्षेत्र में प्रतिष्ठित ‘नोबेल पुरस्कार’ जीता था। डॉ. खुराना को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार संयुक्त रूप से प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन करने के लिए दिया गया था। हरगोविंद खुराना बचपन से प्रतिभावान छात्र रहे थे। उन्हें भारत सरकार ने तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया था। इस खास मौके पर जानिए डॉ. खुराना के जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें…
भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को ब्रिटिश भारत के रायपुर, मुल्तान (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता गणपत राय एक पटवारी थे। वह अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बाद भी उनके पिता ने सभी शिक्षा का पूरा ध्यान रखा।
जब वह 12 साल के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया। परिवार का सारा जिम्मा बड़े भाई नंदलाल के ऊपर आ गया। उन्हें उनके बड़े भाई ने ही पढ़ाया। हरगोविंद की आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में हुईं। बाद में उनका दाखिला मुल्तान के डी.ए.वी. हाई स्कूल में करवाया गया। वे बचपन से प्रतिभावान छात्र रहा था। उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें कई बार छात्रवृत्तियां मिली, जिससे वह आगे की पढ़ाई कर सके।
डॉ. खुराना ने वर्ष 1943 में पंजाब विश्वविद्यालय से बीएससी (ऑनर्स) और वर्ष 1945 में एमएससी (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। बाद में भारत सरकार द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति से उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड गए। वहां पर यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में जैविक रसायन का अध्ययन में प्रोफेसर रॉजर जे एस बियर की देखरेख में रिसर्च किया।
यहां उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। बाद में उन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं। उन्होंने स्विट्ज़रलैंड में ETH ज्यूरिख में प्रोफेसर व्लादिमीर प्रोलॉग के साथ पोस्टडॉक्टरल अध्ययन किया। डॉ. हरगोविंद खुराना ने वर्ष 1952 में स्विट्जरलैंड के एक सांसद की बेटी से शादी की, जोकि खुद भी एक वैज्ञानिक थीं।
डॉ. हरगोविंद खुराना को ‘प्रोफेसर इंस्टीट्युट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। उन्हें ‘मर्क अवॉर्ड’ से भी नवाजा गया। डॉ. खुराना ने वर्ष 1960 में संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर एंजाइम रिसर्च में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। बाद में उन्होंने वर्ष 1966 में अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर ली। डॉ. खुराना ने जीवकोशिकाओं (डीएनए) के नाभिकों की रासायनिक संरचना का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जीन्स का निर्माण डीएनए और आरएनए के संयोग से बनता है।
वर्ष 1970 में डॉ. खुराना मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में रसायन और जीव विज्ञान के अल्फ्रेड स्लोअन प्रोफेसर नियुक्त हुए। वह वर्ष 2007 तक इस संस्थान से जुड़े रहे और बहुत ख्याति अर्जित की। वर्ष 1967 में उन्हेें ‘डैनी हैनमैन’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1968 में खुराना को चिकित्सा विज्ञान का ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया गया। इसी वर्ष उन्हें ‘लॉस्कर फेडरेशन पुरस्कार’ और ‘लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1969 में हरगोविंद खुराना को ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया।
ख्यातनाम भारतीय अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना का निधन 9 नवंबर, 2011 को हो गया। डॉ. खुराना द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2018 में उनकी याद में गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया।
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