महान भारतीय वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन की आज 135वीं जयंती है। डॉ. सीवी रमन को वर्ष 1930 में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिष्ठित ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। वे विज्ञान के क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे। डॉ. रमन को वर्ष 1954 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इस खास अवसर पर जानिए मशहूर भारतीय वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमन के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रशेखरन रामनाथन अय्यर और माता पार्वती अम्मल थीं। उनके पिता गणित और भौतिक विज्ञान के शिक्षक थे, जो बाद में वर्ष 1892 में विशाखापत्तनम के श्रीमती ए वी एन कॉलेज में लेक्चरर नियुक्त हुए थे।
रमन की आरंभिक शिक्षा विशाखापत्तनम के सेंट अलॉयसियस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल में हुईं। उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में मैट्रिक व 13 साल की उम्र में इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उन्होंने वर्ष 1902 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। यही पर उनके पिता गणित और भौतिकी के प्रोफेसर थे। वर्ष 1904 में सीवी रमन ने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। वह पहले स्थान पर रहे और भौतिकी में स्वर्ण पदक भी जीता। वर्ष 1907 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में सर्वाधिक अंकों के साथ एम.एससी डिग्री हासिल कीं।
सीवी रमन उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश नहीं जा सकते थे, इसलिए उन्होंने अखिल भारतीय एकाउंट्स सर्विस प्रतियोगी परीक्षा दी व पहले स्थान पर रहे। वह मात्र 19 वर्ष की आयु में वित्त विभाग, कलकत्ता के सहायक एकाउंटेंट जनरल के पद पर नियुक्त किए गए। उन्होंने नौकरी लगने से पहले लोकसुंदरी अम्मल से शादी कर ली।
डॉ. सी वी रमन अपनी सहायक एकाउंटेंट जनरल की नौकरी से संतुष्ट नहीं थे। एक दिन घर लौटते समय उनकी निगाह ‘द इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ (IACS) पर पड़ी और वह उस संस्थान में गए। यहां पर उनकी मुलाकात अमृत लाल से हुई। उन्होंने रमन की प्रतिभा को जान लिया और उन्होंने भारतीय विज्ञान को प्रोत्साहित करने वाली इस संस्था में उनका स्वागत किया। इसके बाद डॉ. रमन ने इस प्रयोगशाला में कार्य करना शुरू कर दिया था। उन्होंने भौतिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शोध-कार्य किए।
रमन की भौतिकी के क्षेत्र में लगन को देखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन उप-कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने वित्त विभाग में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 1921 में चंद्रशेखर वेंकट रमन को ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड से विश्वविद्यालयीन कांग्रेस में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहां पर उनकी मुलाकात अर्नेस्ट रदरफोर्ड, जे.जे. थामसन, लैंडस्टीनर जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से हुईं। जब वह इंग्लैंड से भारत लौट रहे थे, तब एक अनपेक्षित घटना के कारण ‘रमन प्रभाव’ की खोज के लिए उन्हें प्रेरणा मिलीं। बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुंच कर उन्होंने अपने सहयोगी डॉ. के.एस. कृष्णन के साथ मिलकर जल व बर्फ के पारदर्शी प्रखंडों (ब्लॉक्स) एवं अन्य पार्थिव वस्तुओं के ऊपर प्रकाश के प्रकीर्णन पर अनेक प्रयोग किए।
इन प्रयोगों के परिणामस्वरूप वह अपनी उस खोज पर पहुंचे, जो दुनियाभर में ‘रमन प्रभाव’ नाम से प्रसिद्ध है। इसकी घोषणा 28 फरवरी, 1928 को की गई थी। उनकी इस महत्वपूर्ण खोज की याद में प्रतिवर्ष भारत में ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है।
वर्ष 1929 में ब्रिटिश सरकार ने डॉ. सीवी रमन को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। वेंकटरमन को इस खोज के लिए वर्ष 1930 में भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। वह पहले एशियाई और अश्वेत थे, जिन्हें भौतिकी का नोबेल मिला था।
वर्ष 1954 में सीवी रमन को भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि वह पहले ऐसे भारतीय वैज्ञानिक बने, जिन्हें प्रतिष्ठित ‘भारत रत्न’ पुरस्कार से नवाज़ा गया।
भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित करने वाले महान वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमन का निधन 21 नवंबर, 1970 को 82 वर्ष की आयु में हो गया।
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