सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि देश के किसी भी व्यक्ति को वैक्सीनेशन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि आर्टिकल-21 के तहत व्यक्ति की शारीरिक अखंडता को बिना अनुमति भंग नहीं की जा सकती है। ऐसे में देश में कोरोना वैक्सीनेशन को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत का कहना है कि कुछ राज्य सरकारों ने जो शर्तें लगाईं, सार्वजनिक स्थानों पर नॉन वैक्सीनेटेड लोगों को बैन करना सही नहीं है। इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को कोविड-19 टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों का डेटा सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह संतुष्ट है कि मौजूदा वैक्सीन नीति को अनुचित और स्पष्ट रूप से मनमाना नहीं कहा जा सकता है। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि सरकार सिर्फ नीति बना सकती है और जनता की भलाई के लिए कुछ शर्तें लगा सकती है।
कोरोना वैक्सीनेशन पर 17 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र ने अपने हलफनामा में कहा था कि देश भर में कोरोना वैक्सीनेशन अनिवार्य नहीं है, न किसी पर वैक्सीन लगवाने का कोई दबाव है।
देश में अब तक कोरोना वायरस से कुल 4.3 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 5.2 लाख लोग इसके संक्रमण की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में कोरोना से 4.2 करोड़ लोग स्वस्थ्य होकर अपने घर लौटे या कोरोना मुक्त हुए हैं। आपको बता दें कि देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 3,157 नए केस सामने आए हैं।
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