Supreme Court collegium approves permanent appointment of 9 judges in High Court.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आरक्षण संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। अदालत ने यह टिप्पणी तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) उम्मीदवारों के लिए कोटा को लेकर दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की।न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोई भी आरक्षण के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं कह सकता है। इसलिए कोटा का लाभ नहीं देना किसी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने कहा, ‘आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। यह आज का कानून है।’ पीठ ने ओबीसी छात्रों के लिए तमिलनाडु मेडिकल कॉलेजों में सीटें आरक्षित न रखकर मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। आपको बता दें, सीपीआई, डीएमके और अन्य पार्टी के नेताओं द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि तमिलनाडु में 50 प्रतिशत सीटों को स्नातक, स्नातकोत्तर चिकित्सा और दंत चिकित्सा 2020-21 के पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटा में तमिलनाडु में आरक्षित रखी जानी चाहिए।
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ओबीसी कोटा संबंधित इन याचिकाओं में कहा गया है कि केंद्र सरकार के संस्थानों को छोड़कर अन्य सभी ओबीसी उम्मीदवारों को ऑल इंडिया कोटा के तहत दी गई सीटों से बाहर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिलना चाहिए। ओबीसी उम्मीदवारों को प्रवेश से इनकार करना उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसमें कहा गया कि आरक्षण दिए जाने तक नीट के तहत काउंसलिंग पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं का निपटारा करते हुए आरक्षण को मौलिक अधिकारों से बाहर बताया है। जब सुप्रीम कोर्ट को यह बताया गया कि मामलों का आधार तमिलनाडु सरकार द्वारा आरक्षण पर कानून का उल्लंघन है, तो पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को मद्रास उच्च न्यायालय जाना चाहिए।
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