क्रिसमस फेस्टिवल आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं और दुनियाभर में इसे लेकर जोर शोर से तैयारियां चल रही हैैं। छोटे बच्चों में खास तौर पर इस फेस्टिवल को लेकर क्रेज देखने को मिलता है क्योंकि उन्हें लगता है कि संता उनके लिए कोई ना कोई गिफ्ट जरूर लाएगा। लेकिन टाइम के साथ सांता पर यकीन कम होता जा रहा है। हाल ही हुए एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे में यह बात सामने आयी कि 8 साल की उम्र के दुनियाभर के बच्चे संता में यकीन करना बंद कर देते हैं।
इसके अलावा इस सर्वे में यह बात भी सामने आयी है कि 34 फीसदी वयस्क ऐसे हैं जिनकी दिली ख्वाहिश यही है कि वे फादर क्रिसमस संता क्लॉज में यकीन करें। यह जानते हुए भी कि संता हकीकत में नहीं होता। बहुत से यंगस्टर्स ऐसे हैं जो अब भी संता में यकीन करते हैं। इस सर्वे में यह बात भी सामने आयी है कि बच्चों को यह कहकर डराना- कि अगर वे बदमाशी करेंगे तो संता की बदमाश बच्चों वाली लिस्ट में शामिल हो जाएंगे और फिर उन्हें कोई गिफ्ट नहीं मिलेगा वाली बात भी ज्यादातर बच्चे यकीन नहीं करते। लोगों का कहना है कि संता में यकीन करने की वजह से बचपन में उनका व्यवहार और बेहतर हुआ जबकि 47 प्रतिशत का कहना था कि संता के होने या न होने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। स्टडी के मुताबिक संता में यकीन करना बंद कर देने की औसत उम्र 8 साल है। करीब 72 प्रतिशत पैरंट्स ऐसे हैं जो यह जानते हुए भी कि संता क्लॉज एक मिथक है खुशी-खुशी अपने बच्चों को उनके बारे में बताते हैं।
1. ऐसी मान्यता है कि सैंटा का घर उत्तरी ध्रुव पर है और वह उडऩे वाले रेनडियर की गाड़ी पर चलते हैं। हालांकि संता का यह आधुनिक रूप 19वीं सदी से अस्तित्व में आया। उससे पहले वे ऐसे नहीं थे।
2. करीब डेढ़ हजार साल पहले जन्मे संत निकोलस को असली संता माना जाता है। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ। बचपन में ही माता-पिता को खो देने की वजह से उनकी प्रभु यीशु में बहुत आस्था थी।
3. वे बड़े होकर ईसाई धर्म के पादरी और बाद में बिशप बने। उन्हें जरूरतमंदों और बच्चों को गिफ्ट्स देना बहुत अच्छा लगता था। अपने दयालु स्वभाव के कारण संत निकोलस बहुत लोकप्रिय हुए।
4. बच्चों के प्रति संत निकोलस का प्यार और उनके स्नेह की कथाएं विशेष रूप से दुनियाभर में प्रचलित होने लगीं और माना जाता है कि धीरे-धीरे संत निकोलस का नाम ही संता क्लॉज हो गया।
5. संत निकोलस को एक गोलमटोल, हंसमुख बुजुर्ग के रूप में बताया गया है जो अपने उपहार आधी रात को ही देते थे क्योंकि उन्हें उपहार देते हुए नजर आना पसंद नहीं था। वे अपनी पहचान लोगों के सामने नहीं लाना चाहते थे।
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