Napoleon Bonaparte had subjugated many countries of Europe on strength of his courage.
फ्रांस की क्रांति ने दुनिया के सामने नेपोलियन बोनापार्ट जैसे योद्धा को उभारने का मौका दिया। नेपोलियन का एक आम आदमी से फ्रांस के सम्राट बनने तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। उसने अपने साहस के बूते पर यूरोप के कई देशों को अधीन किया था। नेपोलियन को उनके द्वारा फ्रांस में बनाई एक नई विधि संहिता ‘नेपोलियन कोड’ के लिए भी जाना जाता है। 5 अप्रैल को नेपोलियन बोनापार्ट की 202वीं डेथ एनिवर्सरी है। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त, 1769 को कोर्सिका द्वीप के अजासियो नामक स्थान पर हुआ था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से था। फ्रांस ने कोर्सिका द्वीप को अपने राज्य में मिला लिया था। वहां के स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। नेपोलियन नौ वर्ष की उम्र में पढ़ाई करने फ्रांस चला गया था। वह फ्रांस के रीति-रिवाजों से परिचित नहीं था। उसकी आरंभिक शिक्षा ऑटुन में हुई। इसके बाद उन्हें पेरिस की मिलिट्री एकेडमी में सैनिक प्रशिक्षण के लिए भर्ती करवा दिया गया। नेपोलियन ने वर्ष 1785 में ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की।
इस दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई और परिवार को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। बाद में उन्हें फ्रांस की सेना में तोपखाना रेजिमेंट में सब-लेफ्टिनेंट की नौकरी मिल गई थी। इससे मिलने वाले वेतन से वह परिवार का पालन-पोषण करता था। नेपोलियन सेना की रणनीति और युद्धों से जुड़ी पुस्तकें खूब पढ़ा करता था।
वर्ष 1793 में 24 साल की उम्र में नेपोलियन ने अंग्रेजों के खिलाफ तूलों के युद्ध में जीत हासिल की। उसके परिणाम स्वरूप उसे ब्रिगेडियर जनरल के पद पर तैनात कर दिया गया। फ्रांस की क्रांति के दौरान जब शाही परिवार के समर्थकों ने लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ बगावत कर दी तो सरकार की सुरक्षा का जिम्मा नेपोलियन पर आ गया। 5 अक्टूबर, 1795 को शाही परिवार के समर्थकों ने पेरिस नेशनल कन्वेंशन को घेर लिया। तब नेपोलियन ने ही उनका सामना किया और अपनी बहादुरी से विरोधियों को पीछे हटने पर मजबूर किया। नेपोलियन ने नए गणतंत्र की तो रक्षा की, साथ ही खुद के लिए कामयाबी का रास्ता खोल दिया।
जोसेफिन नामक एक महिला से नेपोलियन बेहद प्यार करता था। उसके पति को फ्रांसीसी क्रांति के दौरान मरवा दिया गया था। नेपोलियन ने उससे 9 मार्च, 1796 को शादी कर ली। लेकिन जोसेफिन से संतान न होने के बाद उसने ऑस्ट्रिया के सम्राट की पुत्री ‘मैरी लुईस’ से दूसरा विवाह किया, जिससे वह पिता बन सका।
वर्ष 1796 में फ्रांस की डायरेक्टरी (पांच सदस्यों का समूह जो फ्रांस की सुरक्षा का ज़िम्मेदार था) ने उसे इटली की सेना का कमांडर बना दिया। उसने सेना की कमजोर हालत के बावजूद कई युद्धों में जीत हासिल की। इस दौरान उसके रणनीतिक कौशल से पूरा यूरोप चौंक गया। उसके नेतृत्व में मिस्र पर वर्ष 1798 में हमला कर दिया गया।
इमैनुअल के साथ मिलकर नेपोलियन ने सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता अपने हाथों में ले ली। उसके इस कदम ने उसे यूरोप के सबसे ताकतवर देश का शासक बना दिया। सम्राट बनने के बाद नेपोलियन ने फ्रांस को ज्यादा
मजबूत करने के लिए प्रशासनिक सुधार के साथ ही लोगों को निजी जीवन की आजादी का अधिकार दिया। उन्हें अपना धर्म अपनाने का अधिकार दिया गया। फ्रांस की शिक्षा में सुधार किए। उसने ही कानून के सामने सबको बराबरी का दर्जा प्रदान किया। नेपोलियन ने फ्रांस में सबसे ताकतवर सेना का निर्माण किया।
इन सफलताओं के कारण नेपोलियन को आजीवन फ्रांस के कौंसल यानि सत्ता का सबसे बड़े अधिकारी की पदवी दी गई। फ्रांसीसी क्रांति के नेता नेपोलियन ने वर्ष 1804 में पोप की उपस्थिति में खुद को ‘फ्रांस का सम्राट’ घोषित कर दिया। इस वर्ष उसने ‘कोड नेपोलियन’ लागू करवाया, जो फ्रांस की क्रांति की मूलभूत बातों का सार था। इसमें महिलाओं को सामान अधिकार दिए गए थे।
फ्रांस का शासक बनने के बाद नेपोलियन की महत्त्वाकांंक्षा और अधिक युद्ध जीतने की रहीं। वर्ष 1805 में उसने चेक रिपब्लिक में हुए ‘ऑस्टरलित्ज़ के युद्ध’ में ऑस्ट्रिया और रूस की संयुक्त सेनाओं को हराया। ट्रैफलगर के युद्ध में नेपोलियन को भारी क्षति उठानी पड़ी। इसके बाद उसने ब्रिटेन पर हमले की हिम्मत नहीं की। नेपोलियन ने ब्रिटेन को बर्बाद करने के लिए हर तरह से व्यापार पर रोक लगा दी थी। उसने ब्रिटेन आने-जाने वाले प्रत्येक जहाज को लूटने की पूरी आजादी दे दी। ज्यों-ज्यों नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा बढ़ी, वैसे-वैसे उसके खिलाफ कई देश उठ खड़े हुए। इस दौरान स्पेन और पुर्तगाल में उसे हार का सामना करना पड़ा।
वर्ष 1812 में नेपोलियन बोनापार्ट ने रूस की राजधानी मास्को पर कब्जा कर लिया। लेकिन उसके सैनिक वहां की ठंड को सह नहीं सके और मजबूरी में उन्हें पीछे हटना पड़ा। जब वह फ्रांस वापस लौटा तो उसके महज दस हज़ार सैनिक ही युद्ध के लायक़ बचे। रूस में असफलता के बाद और स्पेन में हार के बाद ऑस्ट्रिया और प्रशा उसे हराने की फिराक में थे। वर्ष 1814 में उसकी राजधानी पेरिस को शत्रुओं ने घेर लिया।
इसके साथ ही नेपोलियन को गद्दी छोड़नी पड़ी। उसे एल्बा नामक द्वीप पर कैद रखा गया था। फ्रांस की गद्दी पर लुई 16वें को बैठा दिया गया। वर्ष 1815 में वह कैद से भाग निकलने में सफल रहा और पेरिस पहुंच गया। पेरिस पहुंचने के बाद नेपोलियन ने संविधान में तेज़ी से बदलाव किए। लेकिन यूरोप के कई देशों ने मिलकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
जब नेपोलियन ने बेल्जियम पर हमला कर दिया, तो 18 जून को ‘वाटरलू के युद्ध’ में ड्यूक ऑफ़ वेलिंगटन के नेतृत्व में उसे हार का सामना करना पड़ा और नेपोलियन को वापस कैद कर लिया गया। ब्रिटेन ने नेपोलियन बोनापार्ट को इस बार दक्षिणी अटलांटिक महासागर स्थित सेंट हेलेना नाम के द्वीप पर रखा। यहीं पर 5 मई, 1821 में उसकी मृत्यु पेट के कैंसर से हो गई।
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