हमारे पुरूष प्रधान समाज का तानाबाना कुछ ऐसा है कि हम महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की बात करने में आज भी कतराते हैं। यहां तक कि हम उन महिलाओं को याद तक करना भूल जाते हैं जिन्होंने अपने दम पर इस समाज को आंखें चियारकर चुनौती दी। जिस समय महिला अधिकारों और बराबरी का सोचना तक गुनाह था उस समय भी कुछ महिलाएं ऐसी हुई जिन्होंने हर तरह के सामाजिक बंधन को अनदेखा कर कुलीन मर्दों से भरे इस समाज से आखिरी सांस तक एक जंग लड़ी।
ऐसी ही एक महिला थी नंगेली, जिसको शायद केरल के बाहर शायद आज भी कोई नहीं जानता होगा और ना ही हमारी किताबों और इतिहास के जरिए इसकी कहानी हम तक पहुंचाई गई। लेकिन नंगेली ने अपनी जिंदगी में जिस साहस के साथ जंग लड़ी वो एक ऐसी मिसाल है जिसको जानने के बाद फिर भूलना मुश्किल होगा। जी हां, नंगेली ही वो महिला है जिसने अपने अधिकारों को पाने के लिए स्तन ढकने के अधिकार का विरोध किया और अपने ही स्तन काट दिए थे।
पूरी कहानी जानने के लिए हमें केरल के इतिहास में लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पीछे चलना होगा, जब केरल में त्रावणकोर के राजा राज किया करते थे। जातिवाद की जड़ें उस समय से हमारे समाज में है जो आज बरगद के पेड़ समान हमारे बीच खड़ी है। राजा के शासन में यह फरमान था कि निचली जातियों की महिलाओं अपने स्तन नहीं ढक सकती है। इस फरमान को ना मानने पर ‘ब्रेस्ट टैक्स’ यानि ‘स्तन कर’ चुकाना होता था।
यह एक ऐसा दौर था जब किसी महिला या पुरूष के पहनावे को देखकर उसकी जाति का पता लगाया जा सकता था।
क्या होता था ये ब्रेस्ट टैक्स ?
इतिहास के जानकार कहते हैं ब्रेस्ट टैक्स देने का मतलब एक औरत के निचली जाति होने का सबूत देना था। इससे ऊंची जाति के लोग जातिवाद के ढांचे को ठीक वैसा ही बनाए रखते थे। उस समय के जातिगत ढ़ांचे में एड़वा और फिर दलित समुदायों की महिलाओं को निचली जाति की महिलाएं माना जाता था। इन समुदायों में अधिकांश लोग खेतीबाड़ी और मजदूरी कर अपना गुजारा करते थे। इसलिए निचली जाति की महिलाओं के पास कहीं भी स्तन ढकने का विकल्प मौजूद नहीं था।
केरल के चेरथला में रहने वाली नंगेली ने दिखाया साहस
चेरथला गांव की रहने वाली एड़वा जाति की महिला नंगेली ने इस सिस्टम को चुनौती दी, नंगेली ने अपने स्तन ढकने का फ़ैसला किया और इसके एवज में किसी भी प्रकार का टैक्स देने से मना कर दिया।
जब राजा के अधिकारियों को यह बात पता चली तो वो टैक्स मांगने उसके घर आए। नंगेली ने उनकी बात नहीं मानी और टैक्स मांगने पर अपने स्तन ख़ुद काटकर केले के पत्ते पर उनके सामने रख दिए। नंगेली के साहस को शब्दों में नहीं लिखा जा सकता है पर ज्यादा ख़ून बहने से उसी समय उसकी मौत हो गई। इसके बाद बताया जाता है कि उसके अंतिम संस्कार में उसकी जलती चिता में कूदकर उसके पति ने भी जान दे दी। बाद में नंगेली की याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम माने ‘स्तन का स्थान’ रखा गया।
नंगेली का यह कदम जो समाज की सभी औरतों के लिए उठाया गया था, बताया जाता है कि इसके बाद राजा ने ब्रेस्ट टैक्स लेना बंद कर दिया।
हमारे इतिहास से एक शिकायत मुझे हमेशा रही है कि इसके ज्यादातर पन्ने पुरुषों की नजरों, विचारों से लिखे गए हैं, हां हाल के कुछ सालों में बदलाव की थोड़ी बहुत कोशिशें देखने को मिली है। इन्हीं कोशिशों में एक उम्मीद यह भी है कि इतिहास शायद कभी नंगेली को भी याद करें और हमारे समाज को इस महिला के साहसी कदम के बारे में पता चले।
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