बॉलीवुड में पचास-साठ के दशक के कुछ ऐसे गाने बने, जो आज की यंग जनरेशन की जुबान पर हैं। हालांकि, सच तो ये है के आज कोई भी उस दौर के संगीतकारों का मुकाबला नहीं कर सकता। उन्हीं में से एक थे ओपी नैय्यर साहब, जो उस दौर में मात्र 25-26 साल की उम्र में बतौर फिल्म संगीतकार मुंबई में अपनी किस्मत आजमा रहे थे। मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि वो यहां एक्टर बनने का सपना लिए आए थे। अपने उसूलों और जिद के पक्के संगीतकार ओपी नैय्यर की आज 28 जनवरी को डेथ एनिवर्सरी है। इस मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
दिग्गज संगीतकार ओपी नैय्यर का पूरा नाम ओमकार प्रसाद नैय्यर हैं। नैय्यर साहब का जन्म 16 जनवरी, 1926 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था। उस दौर के मशहूर फिल्मकार शशाधर मुखर्जी ने ओपी नैय्यर का स्क्रीन टेस्ट भी लिया था, मगर वो इसे पास नहीं कर पाए थे। इसके बाद शुरू हुआ उनके संगीतकार बनने का सफर। जब वो एक्टिंग में कुुछ नहीं कर पाए तो उन्हें फिल्म निर्माता दलसुख एम पंचोली ने अपनी फिल्म के लिए संगीत बनाने की जिम्मेदारी दी। कराची से आए दलसुख एम पंचोली के नाम ही पहली पंजाबी फिल्म बनाने का खिताब दर्ज है।
दलसुख की उस फिल्म का नाम ‘आसमान’ था। उन दिनों इंडस्ट्री में हर कहीं सिर्फ गायिका लता मंगेशकर के ही चर्चे थे। हर संगीतकार उनके साथ काम करना चाहता था। ऐसे में ओपी नैय्यर भी चाहते थे कि लता मंगेशकर ही उनकी फिल्म के लिए गाना गाएं। इसके लिए दोनों के बीच बातचीत हो चुकी थी, यहां तक कि करार भी हो गया था, मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि ओपी नैय्यर ने पूरी जिंदगी लता मंगेशकर से एक भी गाना नहीं गवाया।
दरअसल, हुआ यूं कि उन दिनों लता मंगेशकर की तबियत ठीक नहीं थी। उन्हें साइनस की तकलीफ थी। लता मंगेशकर ने ओपी नैय्यर के साथ रिकॉर्डिंग का जो समय तय किया था उसी समय उनकी तकलीफ और बढ़ गई, जिसके चलते वो तय समय पर गाना रिकॉर्ड नहीं कर पाईं। उन्होंने ओपी नैय्यर से रिकॉर्डिंग की तारीख को आगे बढ़ाने के लिए कहा। मगर ओपी नैय्यर ने डेट आगे बढ़ाने की बजाए उस रिकॉर्डिंग को कैंसिल ही करा दिया।
लता मंगेशकर को ये बात अच्छी नहीं लगी। उन्हें लगा कि अगर एक संगीतकार अपने गायक की तकलीफ को नहीं समझ रहा है तो उसके साथ काम करने का क्या फायदा। इसके बाद दोनों ने कभी साथ काम नहीं किया। बावजूद इसके इन दोनों फनकारों ने कामयाबी की बुलंदी तक का सफर तय किया। इस तुनकमिजाजी के पीछे ओपी नैय्यर के स्वभाव को दोषी माना जा सकता है।
लता मंगेशकर के साथ काम ना करने के फैसले के बाद ओपी नैय्यर ने अपनी फिल्मों में गीता दत्त, शमशाद बेगम और आशा भोंसले से प्लेबैक सिंगिंग कराई। शुरूआती नाकामी के बाद ओपी नैय्यर के गानों की वजह से ही आशा भोंसले को इंडस्ट्री में वो पहचान मिल पाई। इसमें खास है फिल्म नया दौर, जिसमें ‘मांग के साथ तुम्हारा’, ‘रेशमी सलवार कुर्ता’, ‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’ जैसे हिट गानों ने आशा भोंसले को एक नया रास्ता दिखाया।
वे अपनी तरह के अकेले संगीतकार थे। उन्होंने अपनी मर्जी का रास्ता चुना और उसी पर चलकर कामयाबी हासिल की। नौशाद साहब भी ये बात मानते थे कि जिस दौर में ओपी नैय्यर ने बगैर लता मंगेशकर के कामयाबी हासिल की वो बहुत मुश्किल काम था। ये भी कहा जाता है कि जब हिंदी फिल्मों में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का दौर आया तो ओपी नैय्यर उनकी फिल्मों के लिए संगीत बनाने से परहेज करते थे।
उन्होंने तकरीबन 80 हिंदी फिल्मों का संगीत दिया था। उन्हें दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, गुरूदत्त जैसे कलाकारों वाली फिल्मों के लिए संगीत बनाना पसंद था। 90 के दशक में भी ओपी नैय्यर ने कुछ फिल्मों का संगीत तैयार किया लेकिन उन्हें उतनी कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उन्हें रिएलिटी शो ‘सारेगामापा’ में जज के तौर पर भी करोड़ों लोगों ने देखा। साल 2007 में ओपी नैय्यर ने दुनिया को अलविदा कहा।
‘बाबू जी धीरे चलना’, ‘ये लो मैं हारी पिया’, ‘कभी आर कभी पार’, ‘आइए मेहरबां’, ‘मेरा नाम चिन-चिन चू’, ‘बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी’, ‘आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे’, ‘रेशमी सलवार कुर्ता’, ‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’, ‘लाखों हैं निगाह में जिंदगी की राह में’, ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया’, ‘इशारों इशारों में दिल लेने वाले’, ‘दीवाना हुआ बादल’, ‘पुकारता चला हूं मैं’, ‘जाइए आप कहां जाएंगे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला’, ‘आओ हुजूर तुमको’, ‘लाखों हैं यहां दिलवाले’ जैसे गाने ओपी नैय्यर की याद दिलाते हैं। फ़ीस के तौर पर एक लाख रुपए चार्ज करने वाले पहले भारतीय संगीतकार ओपी नैय्यर ने 81 साल की उम्र में 28 जनवरी, 2007 को दुनिया को अलविदा कर दिया था।
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