Mukund Ramrao Jaikar left the job for self-respect in the British Raj.
भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाशास्त्री, समाजसेवी, राजनेता, न्यायाधीश और संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य मुकुंद रामराव जयकर की आज 13 नवंबर को 147वीं जयंती है। वे पूना विश्वविद्यालय, पुणे के पहले कुलपति बने थे। एम.आर. जयकर बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के मेंबर भी रहे। वर्ष 1917 के बाद से हिंदुस्तान का ऐसा कोई आंदोलन नहीं था, जिसका मुकुंद रामराव जयकर से संबंध ना हो। ऐसे में इस मौके पर आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें..
मुकुंद रामराव जयकर का जन्म 13 नवंबर, 1873 को नासिक में एक मराठी पाथरे प्रभु परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा बंबई के एलफिंस्टन हाई स्कूल में हुई। बाद में सरकारी लॉ स्कूल में आगे की पढ़ाई की। वर्ष 1902 में बॉम्बे से और वर्ष 1905 में लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की। उन्होंने वर्ष 1905 में बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। वह जिन्ना के साथ बॉम्बे क्रॉनिकल के निदेशक भी रहे थे। वर्ष 1907 से 1912 तक उन्होंने लॉ स्कूल में कानून पढ़ाने लगे। जब स्कूल में उनसे भी कम अनुभवी यूरोपीय अध्यापक को उनसे उच्च पद पर नियुक्त कर दिया गया तो उन्होंने इसका विरोध करते हुए त्यागपत्र दे दिया।
एम.आर. जयकर वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड पर बनी कांग्रेस की ओर से जांच समिति के सदस्य थे। वे वर्ष 1923 से 1925 के मध्य बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य थे और स्वराज पार्टी के प्रमुख नेताओं में थे। मुकुंद रामराव जयकर केंद्रीय विधान सभा के सदस्य भी बने। वर्ष 1937 में उन्हें दिल्ली में भारत के संघीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए। उन्हें वर्ष 1927 में गठित भारतीय सड़क विकास समिति के अध्यक्ष बनाया गया था, जिन्होंने राजमार्ग विकास में कुछ सिफारिशों की रिपोर्ट भी प्रस्तुत की। वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के सदस्य थे।
वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के अन्य सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए थे, तो मुकुंद रामराव जयकर और तेज बहादुर सप्रू ने कांग्रेस और सरकार के बीच बातचीत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनकी वजह से मार्च, 1931 में गांधी-इरविन के बीच समझौता हो पाया था, जिसके अंतर्गत ही कांग्रेस सदस्यों को सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गिरफ्तार लोगों को रिहा किया गया और नमक कर हटा लिया गया। साथ ही कांग्रेस ने अगले गोलमेज सम्मेलन में अपने प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी को भेजा। जयकर लंदन में न्यायिक प्रिवी काउंसिल के सदस्य थे और 1931 में लंदन गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था।
एम.आर. जयकर को उनके शिक्षा और परोपकारी कार्य के लिए भी जाना जाता था। उन्हें वर्ष 1938 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ने मानद उपाधि डीसीएल से सम्मानित किया था। जयकर को बंबई से कांग्रेस के टिकट पर संविधान सभा के लिए चुना गया था। दिसंबर 1946 में वह भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए थे, लेकिन वर्ष 1947 में उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। प्रीवी काउन्सिल की ज्युडीशियल कमिटी के भी मुकुन्द रामाराव जयकर सदस्य थे, पर 1942 में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वह वर्ष 1948 से 1955 तक पूना विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर रहे थे।
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मुकुंद रामराव जयकर का 10 मार्च, 1959 को 86 वर्ष की उम्र में बॉम्बे में निधन हो गया था।
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