उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के उपवेशन में शीर्ष संतों के मार्ग दर्शक मंडल ने एक प्रस्ताव पास कर कहा है कि हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण स्वीकार्य नहीं है। हिन्दू मंदिरों पर हिन्दू संतों और हिन्दू समाज का अधिकार होना चाहिए। विहिप ने सरकार से यह आग्रह भी किया है कि मंदिरों पर से सरकारी नियंत्रण हटाने के लिए कानूनों में उचित बदलाव भी किया जाना चाहिए। संतों की बैठक में अखिलेश्वरानंद महाराज द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव में कहा गया है कि हिन्दू मंदिर हिन्दू समाज के लिए केवल आस्था का केंद्र ही नहीं रहे हैं, बल्कि ये समाज जागरण, धर्म जागरण के साथ-साथ राष्ट्र जागरण में भी अपनी भूमिका निभाते रहे हैं। बदलते कालखंड में मंदिरों की इस भूमिका में कुछ बदलाव आ गया है। लेकिन अब इस गौरवशाली भूमिका की दोबारा वापस लाने के लिए विशेष प्रयास किये जायेंगे।
विश्व हिन्दू परिषद ने उपवेशन में कहा है कि पिछले डेढ़ हजार वर्षों में भारत पर अनेकों बार आक्रमण हुए। इन हमलों के दौरान हिन्दू मंदिर, हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म-संस्कृति आक्रमणकारियों के निशाने पर रहे और इन्हें भारी नुकसान पहुंचाया गया। मंदिरों में मौजूद धन-संपदा को खूब जमकर लूटा गया। बाद में ब्रिटिश कालखंड और उसके बाद भी विभिन्न कानून लाकर मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया गया। यह कब्जे की गलत परंपरा मंदिरों के अधिग्रहण के रूप में विविध राज्य सरकारों द्वारा अनवरत अभी भी चल रही है।
विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल ने एक प्रस्ताव पास कर कहा है कि हिन्दू मंदिरों के ऊपर केवल हिन्दू समाज का ही स्वामित्व रहना चाहिए। इसलिए अब भारत के संविधान में आवश्यक परिवर्तन करते हुए मंदिरों के प्रबंधन में, उनकी सम्पत्ति में, विविध धार्मिक व्यवस्थाओं में सरकारों की किसी भी प्रकार से स्वामित्व या सहभागिता नहीं होनी चाहिये। प्रस्ताव में कहा गया है कि हिन्दू मंदिरों का अधिकार और उसका संचालन पूरी तरह हिन्दू संतों और उसके प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा होना चाहिए। इसके लिए सरकार को कानून में उचित परिवर्तन करना चाहिए। विहिप ने कहा है कि मंदिरों का संचालन सरकारों का विषय नहीं होना चाहिए।
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