मोरारजी देसाई को हमारे देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर जाना जाता है। देसाई देश के छठे प्रधानमंत्री बने थे। उनका कार्यकाल वर्ष 1977 से 1979 तक रहा। कांग्रेस में रहते हुए देसाई का नाम कई बार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर चला, लेकिन वे इस रेस में अपने साथियों से हमेशा पिछड़ जाते थे। आख़िरकार उन्हें प्रधानमंत्री पद मिला जरूर, लेकिन कांग्रेस से अलग होने के बाद। वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार गिरने के बाद वे देश के प्रधानमंत्री बने।
मोरारजी को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा गया। वे एकमात्र प्रधानमंत्री है जिन्हें दोनों देशों द्वारा अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया था। पूर्व पीएम मोरारजी देसाई की आज 10 अप्रैल को 28वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…
मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी, 1896 को गुजरात के भदेली में हुआ था। एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में जन्मे मोरारजी के पिता रणछोड़जी देसाई सौराष्ट्र क्षेत्र के भावनगर में एक स्कूल अध्यापक थे। मोरारजी जब युवा अवस्था में थे, तब उनके पिता ने किसी कारणवश आत्महत्या कर ली थी। अपने पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हो गई थी। देसाई ने अपनी शिक्षा मुंबई में पूरी की। वे अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना करते थे। यहीं से उन्हें राजनीति का चस्का लग गया था, लेकिन वे राजनीति में जाने से पहले सिविल सर्विस में जाना चाहते थे।
इसके लिए देसाई ने जुलाई 1917 में यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में जगह बनाई। देसाई यहां तैयारी करते हुए ही अधिकारी बने और मई 1918 में वे अहमदाबाद के उप जिलाधीश भी बने। लेकिन नौकरी वाली यह जीवन शैली उन्हें ज्यादा रास नहीं आयी। इसलिए उन्होंने वर्ष 1930 में ब्रिटिश शासित सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
ब्रिटिश सरकार के अधीन सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद मोरारजी देसाई ने आज़ादी के संघर्ष के बीच कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। वर्ष 1931 में देसाई को गुजरात कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल के निर्देश पर देसाई ने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और उसके पहले अध्यक्ष भी बने। देसाई साल 1937 तक गुजरात कांग्रेस कमेटी के सचिव पद पर रहे। इसके बाद वे बंबई कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए। इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन के चलते वे कई वर्षों तक जेल में रहे। तब तक देसाई एक बड़ा नाम बन चुके थे। वर्ष 1952 में मोरारजी देसाई बंबई के मुख्यमंत्री बने थे।
इस दौरान वे राजनीति में तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे। वर्ष 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी देसाई को देश का उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया था। साल 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए। सरदार पटेल के निर्देश पर उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और उसके अध्यक्ष भी बने। मोरारजी 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वह बंबई कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए। इस आंदोलन के चलते वह कई वर्षों तक जेल में रहे। उस दौर में वह बड़ा नाम हुआ करते थे। वर्ष 1952 में वह बंबई के मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता मोरारजी देसाई को पंडित जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। देसाई को दरकिनार करने का सिलसिला यहीं नहीं रूका, यहां तक कि ताशकंद में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद भी उनको इस पद के लिए वरीयता नहीं दी गई।
इस दौरान देश की कमान इंदिरा गांधी के हाथों में सौंप दी गई। यह बात देसाई को चुभ रही थी। हालांकि देसाई की नाराजगी को भांपते हुए कांग्रेस ने उन्हें उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद दिया। लेकिन वे अपनी नाराजगी और फिर कांग्रेस से लगातार बढ़ते मनमुटाव को लंबे समय तक झेल नहीं सके और साल 1969 में पार्टी छोड़ दी।
कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद मोरारजी देसाई कांग्रेस के घोर विरोधियों में प्रमुख चेहरा बन गए थे। साल 1975 में आपातकाल के खिलाफ जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन का बिगुल फूंका गया तो उसमें देसाई भी शामिल थे। इस आंदोलन की आग पूरे देश में फैली और नतीजा ये रहा कि वर्ष 1977 के आम चुनावों में कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
इसके साथ ही मोरारजी का प्रधानमंत्री बनने का भी सपना पूरा हो गया। उन्होंने देश के जिन नौ राज्यों में कांग्रेस का शासन था, वहां की सरकारों को भंग करते हुए इन राज्यों में नए चुनाव कराए जाने की घोषणा भी कर दी। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में देसाई का पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका। देसाई को चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते पीएम पद छोड़ना पड़ा था।
मोरारजी देसाई की राजनीति में लोकप्रियता और लोकतंत्र में उनकी सहभागिता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्हें भारत और पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा, वहीं पाकिस्तान सरकार ने देसाई को ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से सम्मानित किया।
वे भारत के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्हें दोनों देशों से सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देसाई महात्मा गांधी के साथ कई अहम कार्यों में शामिल रहे थे। वर्ष 1930 से 1940 के बीच उन्होंने करीब 10 साल ब्रिटेन जेल में कैद रखा गया। राजनीति से रिटायर होने के बाद मोरारजी देसाई ने मुंबई को अपना घर बनवाया। 10 अप्रैल, 1995 को 99 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
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