हिंदी साहित्य की नई कहानी के अग्रदूतों में से एक साहित्यकार मोहन राकेश की 8 जनवरी को 95वीं बर्थ एनिवर्सरी हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य की उपन्यास, लघु कहानी, यात्रा वृत्तांत, आलोचना, संस्मरण और नाटक आदि विधाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया था। उन्होंने आधुनिक हिंदी का पहला नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ वर्ष 1958 में लिखा, जिसने संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ नाटक का खिताब जीता। उन्हें वर्ष 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, 1925 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनका मूल नाम मदन मोहन गुगलानी था। इनके पिता करमचन्द गुगलानी वकील थे लेकिन उनकी साहित्य और संगीत में रुचि थी, जिसका प्रभाव मोहन राकेश के व्यक्तित्व पर पड़ा। जब वह 16 साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के देहांत के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से हिंदी और अंग्रेजी मास्टर डिग्री हासिल की।
मोहन राकेश ने अपने कॅरियर की शुरुआत एक पोस्टमैन के रूप में देहरादून से की। बाद में वह वर्ष 1947 से 1949 तक बॉम्बे और उसके बाद दिल्ली में रहे। बाद में पंजाब के जालंधर में कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। यहां पर दो साल तक डीएवी कॉलेज, जालंधर (गुरु नानक देव विश्वविद्यालय) और शिमला में एक स्कूल में हिंदी विभाग के प्रमुख बने रहे।
बाद में उन्होंने पूर्णकालिक लेखन कार्य के लिए वर्ष 1957 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने 1962-63 से हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘सारिका’ में संपादक के रूप में कार्य किया।
हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा के धनी मोहन राकेश प्रसिद्ध नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं। उनकी लिखी कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के उस्ताद थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है।
कहानी से लेकर उपन्यास तक में उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। कहानी के बाद राकेश को सफलता नाट्य-लेखन के क्षेत्र में मिली है।
उनके नाटकों पर बॉलीवुड में नाटक और फिल्म बनी थी। जिनमें ‘लहरों के राजहंस’ नाटक का निर्देशन रामगोपाल बजाज और अरविंद गौड़ जैसे निर्माताओं ने किया। राकेश ने ‘उसकी रोटी’ नामक कहानी लिखी, जिस पर 1970 के दशक में फिल्मकार मणि कौल ने इसी शीर्षक से एक फिल्म बनाई। फिल्म की पटकथा खुद राकेश ने लिखी थी।
उपन्यास : अंधेरे बंद कमरे, ना आने वाला कल, अंतराल।
कहानी संग्रह : क्वार्टर तथा अन्य कहानियां, पहचान तथा अन्य कहानियाँ, वारिस तथा अन्य कहानियां।
नाटक : आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे, पैर तले की ज़मीन, रात बीतने तक। एकांकी: अंडे के छिलके।
निबंध संग्रह : परिवेश, बकलम खुद।
अनुवाद : मृच्छकटिक, शाकुंतल।
उनको ‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘आधे अधूरे’ नाटक के लिए ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने अवॉर्ड देकर सम्मानित किया।
मोहन राकेश का नई दिल्ली में 3 जनवरी, 1972 को निधन हो गया।
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