भारतीय सेना देश के सबसे सम्मानित और विश्वसनीय संस्थानों में से एक है। बलिदान, वीरता और भाईचारे की भावना के बदौलत भारतीय जवानों को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। जिन मूल्यों के लिए भारतीय सेना खड़ी है, वे हर व्यक्ति के लिए आदर्श हैं।
इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं भारतीय सेना के प्रतिष्ठित अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप अहलावत जो कई स्कूलों और कॉलेजों में जाकर न केवल छात्रों को भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं बल्कि छात्रों को धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा और एकता के मूल्यों को सीखा रहे हैं।
“स्टूडेंट आउटरीच अभियान”
भारतीय सेना “स्वयं से पहले सेवा” इस उद्देश्य का सख्ती से पालन करती है। जिसका मतलब है देश और उसके देशवासियों की सुरक्षा, भलाई और समृद्धि सेना के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। जैसा कि लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप अहलावत ने ठीक ही कहा है कि भले ही 1947 में स्वतंत्रता हासिल की गई थी, लेकिन आज तक कुछ लोग बाहर हैं और इस स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। इसलिए, हम सभी के लिए यह समझना जरूरी है और हमें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि यह स्वतंत्रता पूरी तरह से मुक्त नहीं है और हमें स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में हमेशा प्रयास करने होंगे।
इस विचार को फैलाने के लिए, लेफ्टिनेंट कर्नल अहलावत अब तक 30 शिक्षण संस्थानों का दौरा कर चुके हैं, जिनमें आईआईटी दिल्ली, दिल्ली पब्लिक स्कूल और विभिन्न सरकारी स्कूल और यूनिवर्सिटीज शामिल हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल अहलावत ने अब तक लगभग 30,000 छात्रों को संबोधित किया है।
कर्नल अहलावत का मानना है कि “सभी की महत्वाकांक्षाएँ अलग-अलग होती हैं। हर कोई सेना में शामिल नहीं होना चाहता है और अन्य करियर के लिए रस्ते चुनना चाह सकता है। लेकिन मैं छात्रों को सिर्फ एक सैनिक के मूल्यों को ग्रहण करने के लिए कहता हूं”।
सेना में, हमारा मकसद पहले राष्ट्र है, उसके बाद मेरे सैनिक और अंत में मैं यानी कोई व्यक्ति खुद आता है।
लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप अहलावत के बारे में
लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप अहलावत का दृढ़ विश्वास है कि सेना संविधान के प्रति अपनी गहरी निष्ठा रखती है।
इसके अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल संदीप अहलावत वही सेना के जवान हैं, जिन्होंने फिल्म “रुस्तम” में इस्तेमाल की गई नौसेना की वर्दी को नीलाम करने के लिए अभिनेता अक्षय कुमार के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्होंने पत्र लिखकर अपना विरोध जताया था। इस पत्र के बाद, अभिनेता और निर्माताओं ने आखिरकार इसे नीलाम करने के फैसले को वापस ले लिया। इसके अलावा अहलावत सैनिकों की वीरता, भावना और बलिदान की कहानियों को सामने लाने के लिए सोशल मीडिया का भी समय-समय पर उपयोग करते रहते हैं।
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