भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता व ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन की प्रर्वतक मेधा पाटकर आज अपना 69वां जन्मदिन मना रही हैं। वह भारत में अपने अधिकारों से वंचित आदिवासी, दलित, किसान, मजदूर और महिलाओं से संबंधित महत्वपूर्ण राजनीतिक व आर्थिक मुद्दों पर काम करती हैं। मेधा पाटकर बांधों के निर्माण से प्रभावित होने वाले पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों पर शोध करने वाली विश्वस्तरीय संस्था की सदस्य एवं प्रतिनिधि रह चुकी हैं। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
मेधा पाटकर का जन्म 1 दिसंबर, 1954 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी श्री वसंत खानोलकर और माता एक सामाजिक कार्यकर्ता इंदु खानोलकर थे। उनकी परवरिश सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में हुई थी। माता-पिता का उन पर काफी प्रभाव पड़ा और वह भी आज के समय में उपेक्षितों की आवाज बन गई हैं।
बचपन से ही समाज सेवा के प्रति रुचि होने के कारण मेधा ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई से वर्ष 1976 में सोशल वर्क में मास्टर डिग्री प्राप्त कीं। वह बाद में मुंबई में बसी झुग्गियों में बसे लोगों की सेवा करने वाली संस्थाओं से जुड़ गईं। मेधा ने तीन साल वर्ष 1977-1979 तक इस संस्थान में अध्यापन का कार्य भी किया था।
मेधा पाटकर ने शहरी और ग्रामीण सामुदायिक विकास में पीएचडी करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया। इस दौरान उसने शादी कर लीं, लेकिन यह रिश्ता लंबे समय तक नहीं चल सका। सात साल बाद दोनों आपसी सहमति से अलग हो गए। वह पीएचडी की पढ़ाई समाजिक कार्यों की वजह से पूरी नहीं कर पाईं।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर गांधीवादी विचारधारा से काफी प्रभावित हैं। वह गुजरात में सरदार सरोवर परियोजना के बनने से प्रभावित करीब 37 हज़ार गांवों के लोगों को अधिकार दिलाने के लिए उनकी आवाज बनीं। उन्होंने महेश्वर बांध के विस्थापितों के आंदोलन का नेतृत्व भी किया। वर्ष 1985 से वह नर्मदा से जुड़े हर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेती रहीं। इस वजह से उन्हें चुनावी राजनीति से दूर रहना पड़ा।
मेधा ने नर्मदा नदी के बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के विरोध में 28 मार्च, 2006 को भूख हड़ताल पर बैठने का निर्णय किया। 17 अप्रैल, 2006 को सुप्रीम कोर्ट से नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत बांध पर निर्माण कार्य रोक देने की अपील को खारिज कर दिया। नर्मदा बचाओ आंदोलन के अलावा मेधा कई सामाजिक व पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर भी आवाज उठा चुकी हैं। मेधा पाटकर ने भ्रष्टाचाररोधी आंदोलन में अन्ना हजारे का समर्थन किया था।
मेधा पाटकर ने 13 जनवरी, 2014 को अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी ‘आम आदमी पार्टी’ में शामिल होने की घोषणा कीं। इस साल वह लोकसभा चुनाव में उत्तर-पूर्व मुंबई से आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरीं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को उनके सामाजिक कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें शामिल हैं-
राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड, 1991
गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार, 1992
दीना नाथ मंगेशकर पुरस्कार
शांति के लिए कुंडल लाल पुरस्कार
मातोश्री भीमाबाई अंबेडकर पुरस्कार
मदर टेरेसा अवॉर्ड फॉर सोशल जस्टिस
बीबीसी, इंग्लैंड द्वारा सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक प्रचारक के लिए ग्रीन रिबन अवॉर्ड, 1995
एमीनेस्टी इंटरनेशनल, जर्मनी की ओर से ह्यूमन राइट्स डिफेन्डर अवॉर्ड, द इयर ऑफ द ईयर बीबीसी।
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