Many philanthropic works were done by Rani Durgavati who beat the Mughals.
भारत की भूमि सदैव ही वीरों की जननी रही है। यहां एक से बढ़कर एक योद्धा हुए हैं। वहीं, वीरता के मामले में यहां की वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रहीं। ऐसे ही नामों में वीरांगना रानी दुर्गावती का नाम भी शामिल हैं। दुर्गावती रानी गोंडवाना साम्राज्य की शासिका हुआ करती थी। वह न केवल वीरांगना थीं, बल्कि साथ ही एक पत्नी, मां और कुशल प्रशासक भी थीं। उनके शौर्य और युद्धकला के आगे मुगल भी नतमस्तक थे। रानी दुर्गावती की आज 499वीं जयंती है। इस खास अवसर पर जानिए उनके वीरता, शौर्यपूर्ण व प्रेरणादायक जीवन के बारे में अनसुनी कहानी…
गोंडवाना की शासिका रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को कालिंजर दुर्ग (उत्तर प्रदेश के बांदा जिले) में हुआ था। उनके जन्म वाले दिन दुर्गा अष्टमी थी, अत: उनका नाम भी दुर्गा माता के नाम पर दुर्गावती रखा गया। उनके पिता चंदेल राजा कीरत राय थे। दुर्गावती एक सुंदर, सुशील और साहसी लड़की थी। उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ ही घुड़सवारी, निशानेबाजी और तलवारबाजी करना भी सीख लिया था। उनका विवाह वर्ष 1542 में गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी के बेटे दलपत शाह के साथ हुआ था।
रानी दुर्गावती ने दलपत शाह से शादी के बाद उनके एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम वीर नारायण रखा गया। लेकिन उनके पति की मृत्यु वर्ष 1550 को हो गई। इसके कारण उन्हें बहुत जल्द ही अपने बेटे की संरक्षिका बनना पड़ा, क्योंकि उस समय वीर नारायण की उम्र बहुत कम थी। दीवान बेहर अदहर सिम्हा और मंत्री मान ठाकुर ने प्रशासन की सफलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से देखभाल करने में रानी की मदद की। इस दौरान रानी दुर्गावती ने अपनी राजधानी को सिंगारगढ़ के स्थान पर चौरागढ़ में स्थानांतरित किया। रानी ने अपने राज्य में कई लोकोपकारी कार्य करवाए। उन्होंने कई कुएं, बावड़ी और तालाबों का निर्माण करवाया था।
गोंडवाना रियासत पर रानी दुर्गावती के शासन के दौरान मालवा के मुस्लिम शासक बाजबहादुर ने कई बार आक्रमण किए, लेकिन उसे हर बार पराजय का मुंह देखना पड़ा। धन-संपदा के मामले में संपन्न रहे गोंडवाना साम्राज्य पर मुगल शासक अकबर की भी नजर पड़ी तो उसने आसफ खां के नेतृत्व में अपनी सेना को गोंडवाना पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस आक्रमण के विरोध में रानी दुर्गावती स्वयं पुरुष वेश में युद्ध करने निकल गईं। युद्ध में पहले दिन दोनों पक्षों को काफी नुकसान हुआ। रानी की सेना के कई सैनिक शहीद हुए, वहीं दूसरी तरफ अकबर की मुगल सेना के भी कई सैनिक मारे गए।
अगले दिन यानि 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने एक बार फिर गोंडवाना पर धावा बोल दिया। इस बार रानी का पक्ष थोड़ा कमजोर पड़ गया तो रानी ने अपने बेटे को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और वह खुद युद्ध के मैदान में उतर गईं। युद्ध के दौरान मुगल सेना ने उन पर तीरों की बारिश कर दी, जिससे तीर रानी दुर्गावती के शरीर को भेद गए। अंत समय आता देख रानी ने अपने वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह उनकी गर्दन काट दे।
आधार सिंह ने इस पर असमर्थता प्रकट कर दी। रानी ने खुद कटार निकाली और अपने सीने में घोंप ली। इस तरह निर्भीक, साहसी रानी दुर्गावती मुगलों से अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। इस तरह दुर्गावती देश के लाखों-करोड़ों लोगों की प्रेरणा बनीं।
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