इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में फिर से साफ किया कि लिव-इन रिलेशन में रहने वाले जोड़े की ज़िंदगी में किसी को भी दखल देने का अधिकार नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशन में रह रहे एक जोड़े को राहत देते हुए कहा है लिव-इन रिलेशनशिप को देश में वैधानिक मान्यता प्राप्त है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को चाहे वह अभिभावक ही क्यों न हो, दो वयस्क लोगों के बिना शादी किए शांतिपूर्वक साथ जीवन व्यतीत करने में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो उसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के तहत प्राप्त है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन में रह रहे फर्रुखाबाद के एक जोड़े को संरक्षण देने और उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं करने का आदेश दिया है। फर्रुखाबाद की कामिनी देवी और अजय कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायधीश अंजनी कुमार मिश्र और प्रकाश पाडिया की पीठ ने कहा कि लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और कई अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशन की विस्तृत व्याख्या की है। पीठ ने कहा कि दुनिया के कई दूसरे देशों की तरह भारत में भी लिव-इन रिश्ते को सामाजिक मान्यता नहीं है, मगर दो लोगों के बिना शादी किए साथ रहने से कोई अपराध नहीं बनता है। भले ही इसे अनैतिक माना जाए।
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पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसी स्थिति से महिलाओं को संरक्षण देने के लिए घरेलू हिंसा कानून बनाया गया है, जिसका सहारा वह महिलाएं भी ले सकती हैं जो बिना विवाह किए विवाह जैसी स्थिति में रह रही हैं। पीठ ने कहा कि इंदिरा शर्मा बनाम वीकेवी शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित विस्तृत निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं को हिंसा से संरक्षण देने के लिए कानून बनाए हैं। कोर्ट ने याची के शांति पूर्वक साथ रहने में किसी के हस्तक्षेप पर रोक लगाते हुए एसएसपी फर्रुखाबाद को निर्देश दिया है कि याची के मांगने पर उनको पुलिस संरक्षण भी उपलब्ध कराया जाए।
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