स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गर्वनर जनरल रहे चक्रवर्ती राजगोपालचारी शब्दों के जादूगर और ज्ञान का भंडार थे। उन्हें सब राजाजी कहकर बुलाया करते थे। राजगोपालचारी कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और महात्मा गांधी के काफी करीबी माने जाते थे। 10 दिसंबर 1878 को मद्रास के थोरपल्ली गांव में जन्मे राजगोपालचारी ने मद्रास कॉलेज से लॉ की डिग्री हासिल की। उनका मज़ाकिया अंदाज़ भी इतना कमाल था कि उनकी बातें और जवाब देने का तरीका सभी को काफी आकर्षित करता था।
उन दिनों जब देश में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने की मुहिम चल रही थी, तब राजाजी इसके ख़िलाफ़ थे। ऐसे में एक पत्रकार ने ‘नार्थ-साउथ डिवाइड’ यानी उत्तर-दक्षिण विवाद पर उनकी राय जाननी चाही, तब राजाजी ने कहा कि ‘ये सारी ग़लती भूगोल विज्ञानियों की है। उन्होंने नार्थ को साउथ के ऊपर रख छोड़ा है!’ ऐसे ही एक बार ट्रेन में किसी अंग्रेज़ ने उनसे शिकायत भरे लहजे में कहा कि बड़ी गर्मी है। तब राजाजी तपाक से बोले ‘इतनी नहीं कि तुम्हें इस देश (भारत) से बाहर रख सके!’
वहीं एक बार किसी ने राजाजी से पूछा कि उत्तर में मान्यता है कि गणेश की दो पत्नियां– रिद्धि और सिद्धि हैं, लेकिन दक्षिण में वे कुंवारे क्यों समझे जाते हैं? इस पर उनका जवाब था, ‘भाई, इतने मोटे और हाथी का मुंह लिए हुए व्यक्ति से कोई दक्षिण भारतीय लड़की प्रेम नहीं कर सकती। हां, उत्तर में घूंघट प्रथा है, लड़कियों को दिखा नहीं होगा!’ राजनीति के साथ ही उन्होंने भारतीय जात-पात के आडंबर पर भी प्रहार किया। मंदिरों में दलित समुदाय के प्रवेश पर रोक का उन्होंने डटकर विरोध किया था।
राजगोपालचारी को कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी के रूप में भी चुना गया था। अंतिम ब्रिटिश गर्नवर माउंटबेटन के बाद वो भारत के पहले गवर्नर बने। इसके बाद 1950 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में वो गृहमंत्री बने और 1952 में उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री चुना गया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभा कर देश की सेवा करने के लिए उन्हें साल 1954 में भारत रत्न से भी नवाजा गया था। हालांकि बाद में नेहरू से वैचारिक मतभेद के कारण वो कांग्रेस से अलग हो गए थे।
कांग्रेस से अलग होकर इन्होंने अपनी एक अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी’ रखा गया। हालांकि उनकी ये पार्टी ज्यादा लम्बे समय तक नहीं टिक सकी थी। राजनीतिक कामों के अलावा इन्होंने संस्कृत ग्रंथ ‘रामायण’ का तमिल में अनुवाद किया। राजगोपालचारी तमिल के साथ-साथ अंग्रेजी के भी बेहतरीन लेखक थे। इन्होंने सलेम लिटरेरी सोसाइटी की स्थापना की। वहीं अपने कारावास के समय के बारे में उन्होंने ‘मेडिटेशन इन जेल’ के नाम से किताब भी लिखी थी।
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