2016 की शुरुआत में ही भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के खिलाफ कार्रवाई करने के अपने इरादे को स्पष्ट कर दिया था। कार्यवाही इसलिए की गई क्योंकि उन्हें लगता था कि वे गलत तरीके से काम कर रहे हैं।
भाजपा के बड़े नेताओं ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों(NGO) पर भारत के हितों के खिलाफ काम करने और विदेशी धन का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए बयान दिए। फिर जैसा कि होना ही था लगभग 10,000 गैर-सरकारी संगठनों के रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिए गए ताकि उन्हें विदेशों से धन प्राप्त करने से रोका जा सके। उनमें से कई NGO पर्यावरण, गांवों के विकास और मानव अधिकारों जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे थे और कुछ ने महत्वपूर्ण मामलों में सरकार के पदों को चुनौती दी।
तीन साल बाद वकीलों द्वारा शुरू किया गया एक मानवाधिकार एनजीओ द कलेक्टिव जो अनुभवी वकीलों इंदिरा जयसिंग और आनंद ग्रोवर के नेतृत्व में चल रहा था इस एनजीओ पर कानूनी कार्यवाही सामने आई है।
इसी हफ्ते बुधवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने धन शोधन निवारण अधिनियम( मनी लॉन्ड्रिंग) के उल्लंघन के लिए इस एनजीओ के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट दायर की है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दावा किया है कि एनजीओ ने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया है, विदेशी योगदान का दुरूपयोग किया और हवाई यात्रा, मसौदा कानून की बैठकों और धरनों पर उस पैसे का इस्तेमाल किया। कलेक्टिव एनजीओ ने उन पर लगे सभी आरोपों को खारिज किया है।
यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब इंदिरा जयसिंग एक बड़े मामले से जुड़ी हैं जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत शामिल है। दशकों से इस कलेक्टिव एनजीओ ने कई संवेदनशील मामलों के साथ डील किया है जिसमें गुजरात में सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामला भी शामिल है। इस मामले में 2014 में बरी होने से पहले तक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुख्य आरोपी थे।
जयसिंह ने केंद्र पर प्रतिशोध का आरोप लगाया है और कहा है कि कलेक्टिव एनजीओ अदालत में आरोपों को चुनौती देगा।
ऐसा तर्क शायद कोई भी नहीं देगा कि जिन्होनें कानून तोड़ा है वे बचे हुए रहें। यदि वकीलों के कलेक्टिव एनजीओ ने वास्तव में नियमों का उल्लंघन किया है तो इसके खिलाफ कार्रवाई करना राज्य का कर्तव्य है। हालांकि चिंता तब बढ़ जाती है जब कार्यवाही सेलेक्टिव हो।
न तो केंद्र और न ही केंद्रीय जांच ब्यूरो ने खुलासा किया है कि उन हजारों अन्य गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है जिनके लाइसेंस हाल के वर्षों में रद्द कर दिए गए हैं। अधिकारी यह बताने में भी नाकाम रहे हैं कि वकीलों के कलेक्टिव एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई करने में उन्हें तीन साल क्यों लगे।
जब तक मामले में पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक केंद्र के लिए खुद को उन आरोपों से बचाना मुश्किल होगा जिसमें वो किसी ऐसे एनजीओ को टारगेट कर रहे हैं जो कुछ बहुत शक्तिशाली लोगों के हितों को चुनौती दे रहे हैं।
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