पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने आज दोपहर को एम्स में अंतिम सांसें लीं। उनके निधन से पूरी राजनीतिक दुनिया स्तब्ध है। वह पिछले कुछ दिनों से एम्स में भर्ती थे और उनकी हालत क्रिटिकल बनी हुई थी। वे आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ थे और उन्होंने वित्त मंत्रालय में रहते हुए कई बेहतरीन निर्णय लिए। बीमारी से परेशान अरुण ने 6 अगस्त 2019 को अपना आखिरी ब्लॉग लिखा था। यह ब्लॉग उन्होंने कश्मीर से हटे अनुच्छेद 370 पर लिखा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्पष्ट दृष्टिकोण से इतिहास रचा है। अनुच्छेद 370 पर फैसले के लिए ऐसे राजनीतिक साहस की ही जरूरत थी। यह धारणा पूरी तरह गलत साबित हुई है कि भाजपा का वादा सिर्फ नारा था।
कश्मीर पर पंडित नेहरू ने हालात का आंकलन करने में भारी भूल की थी। उन्होंने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पर भरोसा करके उन्हें इस राज्य की बागडोर सौंपने का निर्णय लिया। लेकिन 1953 में उनका विश्वास शेख साहब से उठ गया और उन्हें जेल में बंद कर दिया। इंदिरा गांधी ने इसके बाद शेख साहब को रिहा करने और बाहर से कांग्रेस का समर्थन सुनिश्चित कर एक बार फिर उनकी सरकार बनाने का एक प्रयोग किया।
हालांकि, कुछ ही महीनों के भीतर शेख साहब के सुर बदल गए और गांधी को यह स्पष्ट रूप से अहसास हो गया कि उन्हें नीचा दिखाया गया है। 1987 में राजीव गांधी ने एक बार फिर से नीतियों को बदल दिया और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। चुनाव में भी धांधली हुई। कुछ उम्मीदवार जिन्हें जोड़-तोड़ करके हराया गया था, वे बाद में अलगाववादी और तो और आतंकवादी तक बन गए।
विशेष दर्जा प्रदान करने की ऐतिहासिक भूल से देश को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी। आज, जबकि इतिहास को नए सिरे से लिखा जा रहा है, उसने ये फैसला सुनाया है कि कश्मीर के बारे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दृष्टि सही थी और पंडित नेहरू जी के सपनों का समाधान विफल साबित हुआ है।
यह एक पछतावा है कि कांग्रेस पार्टी की विरासत ने पहले तो समस्या का सृजन किया और उसे बढ़ाया, अब वह कारण ढूंढने में विफल है। यह सरकार के इस फैसले के लिए लागू होता है। कांग्रेस के लोग व्यापक तौर पर विधेयक का समर्थन करते हैं। नया भारत बदला हुआ भारत है। केवल कांग्रेस इसे महसूस नहीं करती है। कांग्रेस नेतृत्व पतन की ओर अग्रसर है।
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