‘फादर ऑफ इंडियन क्रिकेट’ राजा रणजीत सिंह की 10 सितंबर को 150वीं बर्थ एनिवर्सरी है। रणजीत सिंह का जन्म वर्ष 1872 में गुजरात के नवानगर में हुआ था। उनका पूरा नाम सर रणजीत सिंहजी विभाजी जडेजा था। वह नवानगर रियासत के महाराजा थे। उन्हें ‘नवानगर के जाम साहब’, ‘कुमार रणजीत सिंहजी’, ‘रणजी’ और ‘स्मिथ’ जैसे प्रसिद्ध नामों से बुलाया जाता था। रणजीत सिंह प्रिंस होने के अलावा बहुत अच्छे क्रिकेटर भी हुआ करते थे। खेलों से उनका लगाव बचपन से ही गहरा रहा था। इस खास मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ रोचक बातें…
महाराजा रणजीत सिंह जामनगर विरासत के 10वें जाम साहब और प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी रहे। उन्होंने ब्रिटिश क्रिकेट टीम के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला था। वह एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी और पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने प्रोफेशनल टेस्ट मैच और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला था। रणजीत को क्रिकेट में कई नए शॉट ईजाद करने के लिए भी जाना जाता है। उनका स्कूल के दिनों मे क्रिकेट से परिचय हुआ था। कॉलेज शिक्षा के दौरान वे राजकुमार कॉलेज राजकोट के कप्तान रहे। इसके बाद रणजीत को आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड की प्रसिद्ध कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी भेजा गया।
इंग्लैंड में महाराजा रणजीत सिंह की क्रिकेट में रूचि बढ़ने लगी और वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाए। उन्होंने क्रिकेट में कॅरियर बनाने की सोची और अपना पूरा फोकस क्रिकेटर बनने में लगा दिया। वह पहले कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के लिए खेले। फ़िर ससेक्स क्लब से जुड़ गए। पहले ही मैच में उन्होंने 77 और 150 रन की जबरदस्त पारियां खेली। काउंटी क्रिकेट में अच्छे प्रदर्शन के आधार पर रणजीत सिंह का चयन इंग्लैंड की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में हो गया था। सन् 1896 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपना टेस्ट पदार्पण किया।
इस मैच में रणजीत ने 62 और 154 रन की नाबाद पारियां खेली। उन्होंने लगभग चार साल क्रिकेट खेला और 15 टेस्ट मैचों में 44.89 की औसत से 989 रन बनाए। इसमें दो शतक और छह अर्धशतक शामिल थे। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 307 मैच खेलते हुए 72 शतक और 109 अर्धशतक लगाए थे। रणजीत सिंह ने 56.37 की औसत से 24692 रन बनाए थे। वह उस समय के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक थे। नेविल कार्डस ने उन्हें ‘द मिडसमर नाइट्स ड्रीम ऑफ़ क्रिकेट’ भी कहा था। इंग्लैंड में खेलने के दौरान उन्हें नस्लभेद का शिकार होना पड़ा था।
बाद में वह भारत उत्तराधिकार विवाद के कारण भारत लौट आए। उन्होंने अपना आखिरी मैच सन् 1920 में 48 वर्ष की उम्र में खेला था, जिसमें रणजीत ने 39 रन बनाए थे। टेस्ट क्रिकेट में एक दिन में दो शतक लगाने का 118 साल पुराना उनका रिकॉर्ड आज तक कोई भी बल्लेबाज नहीं तोड़ पाया है।
महाराजा रणजीत सिंह का 2 अप्रैल, 1933 को 60 वर्ष की उम्र में जामनगर में निधन हो गया था। इसके करीब 2 साल बाद पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने उनके क्रिकेट में योगदान को देखते हुए उनके नाम पर सन् 1935 में रणजी ट्रॉफी की शुरुआत की। रणजीत सिंह के भतीजे दलीप सिंह ने भी इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेला था। उनके नाम पर भारत में दलीप ट्रॉफी की शुरुआत हुई थी। गौरतलब है कि महाराजा रणजीत सिंह की निशानेबाजी के दौरान एक आंख की रोशनी चली गई थी।
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