9 अप्रैल, 2017 को कश्मीर के बडगाम जिले में पत्थरबाजों से अपनी टीम को बचाने के लिए सेना की जीप के आगे एक स्थानीय युवक को बांधकर अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरने वाले भारतीय सेना के मेजर लीतुल गोगोई के लिए अच्छी ख़बर नहीं हैं। दरअसल, मेजर गोगोई को पिछले साल 23 मई को श्रीनगर स्थित एक होटल में 18 वर्षीय स्थानीय युवती के साथ मीटिंग के लिए पहुंचे थे लेकिन, होटल स्टाफ ने उन्हें स्थानीय युवती का हवाला देकर बुक किए गए रूम में रूकने से रोक दिया था जिस पर दोनों पक्षों में विवाद हो गया। मामला बढ़ने पर स्थानीय पुलिस ने मेजर गोगोई को हिरासत में लिया था।
मेजर अपनी ड्यूटी के दौरान स्थानीय महिला से मेलजोल बढ़ाते हुए होटल पहुंचे थे। इसलिए कुछ ही दिन बाद सेना ने इस घटना के संबंध में कोर्ट आफ इन्क्वायरी का आदेश दिया था। इसमें आरोप प्रमाणित होने पर गोगोई पर कोर्ट मार्शल के आदेश जारी हुए थे। हाल में मेजर लीतुल गोगोई के खिलाफ चल रहा कोर्ट मार्शल पूरा हो चुका है। अब उन्हें सज़ा सुनाई जा सकती है, जिसके तहत मेजर गोगोई की वरिष्ठता में कमी की जाने की संभावना हैं। ऐसे में आइये जानते हैं आखिर यह कोर्ट मार्शल क्या होता है…
जिस तरह एक आम आरोपी के केस की सुनवाई अदालत या कोर्ट में होती है, उसी प्रकार आर्मी या सेना के कर्मचारियों से जुड़े मामलों की सुनवाई आर्मी कोर्ट में होती है, इस अदालती मामले की सुनवाई को आर्मी की भाषा में कोर्ट मार्शल कहा जाता है। यह ख़ासतौर पर सेना के कर्मचारियों के लिए होती है। इस कोर्ट का काम आर्मी में अनुशासन तोड़ने या अन्य अपराध करने वाले आर्मी कर्मचारी और अफसर पर केस चलाना, उसकी सुनवाई करना और सजा सुनाना होता है। हालांकि यहां सब कुछ ट्रायल मिलिट्री लॉ के तहत होता है। मिलिट्री लॉ में 70 तरह के क्राइम को लेकर सजा का प्रावधान किया गया है।
सेना में कोर्ट मार्शल चार प्रकार का होता है जिसमें जनरल कोर्ट मार्शल, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल, समरी जनरल कोर्ट मार्शल और समरी कोर्ट मार्शल शामिल हैं। इनमें नियमों के अनुसार सज़ा का प्रावधान होता है।
जनरल कोर्ट मार्शल (GCM): इसमें एक सामान्य जवान से लेकर अफसर तक सभी को दंडित करने का प्रावधान होता है। जज के अलावा इसमें सेना से ही जुड़े 5 से 7 लोगों का पैनल होता है। ये कोर्ट दोषी पाए जाने पर अपराध को देखते हुए आजीवन प्रतिबंध, सैन्य सेवा से बर्खास्त या फांसी की सजा तक दे सकती है। इस कोर्ट को युद्ध के दौरान अपनी पोस्ट छोड़कर भागने वाले सैन्य कर्मियों को फांसी की सज़ा सुनाने का अधिकार है।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल (DCM): यह एक सामान्य सिपाही से लेकर जेसीओ लेवल अधिकारी के लिए होती है। सैन्य कोर्ट दो या 3 मेम्बर मिलकर मामले की सुनवाई करते हैं। इसमें अधिकतम 2 साल की सजा का प्रावधान होता है।
समरी जनरल कोर्ट मार्शल (SGCM): समरी जनरल कोर्ट मार्शल जम्मू-कश्मीर जैसे प्रमुख फील्ड इलाके में अपराध करने वाले सैन्य कर्मियों के लिए होती है। इसमें संबंधित मामले का स्पीडी ट्रायल होता है।
समरी कोर्ट मार्शल (SCM): इसे सबसे निचले तरह की सैन्य अदालत मानी जाती है। यह एक सिपाही से लेकर एनसीओ लेवल तक के जवानों के मामलों के लिए होती है। इसको अधिकतम 2 साल की सजा देने का अधिकार होता है।
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी: आर्मी में या किसी जवान के किसी भी तरह के बाहरी अपराध या अनुशासनहीनता के लिए सबसे पहले कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश जारी किए जाते हैं। इस प्राथमिक जांच में सैनिक या अफसर पर लगाए गए आरोप प्रमाणित होने और गंभीर मामला होने पर जांच अधिकारी को तुरंत ही सजा देने का अधिकार है। इसके अलावा बड़ा मामला होने पर केस समरी ऑफ एविडेंस को रिकमेंड किया जाता है।
समरी ऑफ एविडेंस: इसके अधीन प्रारंभिक जांच में दोष सिद्ध होने पर सक्षम अधिकारी मामले के और सबूत जुटाने के लिए जांच आगे बढ़ाता है। इस आधार पर तुरंत सजा देने का भी प्रावधान है। इस दौरान सभी लीगल दस्तावेज एकत्रित किए जाते हैं। जांच पीठासीन अधिकारी मामले में तुरंत सजा या कोर्ट मार्शल की रिकमेंडेशन कर सकता है।
कोर्ट मार्शल: जब किसी सैन्य कर्मचारी पर कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू होती है तो तुरंत आरोपी सैन्य अफसर या कार्मिक को आरोप की प्रति देकर उसे अपना वकील नियुक्त करने का अधिकार दिया जाता है। कोर्ट मार्शल के दौरान उस सिपाही या अफसर का वकील उसकी ओर से अपना पक्ष रख सकता है।
सैन्य कोर्ट को रेप या दुष्कर्म, मर्डर तथा गैर इरादतन हत्या, आत्महत्या जैसे मामलों की सुनवाई का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। इस तरह के मामले के सैन्य इलाके में होने पर सेना इन्हें सिविल पुलिस को सौंप देती है। हालांकि, सेना इन मामलों में अपने स्तर पर भी जांच करती है। देश के जम्मू-कश्मीर या पूर्वोत्तर राज्यों में सेना चाहे तो ऐसे मामले अपने हाथ में ले सकती है। इसमें त्वरित सुनवाई कर आरोपी को सजा देने का प्रावधान किया गया है।
किसी सिपाही या अफसर को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल में सुनाई गई सजा को लेकर वह सेशन कोर्ट में चुनौती दे सकता है। वहीं कोर्ट मार्शल में सुनाए गए फैसले को आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (एएफटी) में चुनौती दी जा सकती है। अंत में एएफटी के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती देने का अधिकार भी होता है।
सिविल कोर्ट बेंच की तरह सैन्य कोर्ट में लॉ ऑफिसर्स की एक जूरी होती है। सिविल कोर्ट की तरह यहां भी आरोपी ऑब्जेक्शन ले सकता है। उसे अपने सबूत पेश करने का पूरा मौका दिया जाता है। साथ ही वकील रखने की इजाज़त होती है। कोर्ट मार्शल का प्रोसीजर बढ़ाने के लिए इसमें एक एडवोकेट जनरल नियुक्त होता है। यह आर्मी की लीगल ब्रांच का अफसर होता है। यहां सिविल कोर्ट जैसे सभी नियमों का पालन होता है। सभी सबूत देखने के बाद जूरी विचार-विमर्श करके तय करती है कि आरोप में सत्यता है या झूठ। कोर्ट मार्शल में मिली सज़ा के बाद सैन्य आरोपी चाहे तो इसके खिलाफ सेना प्रमुख या केन्द्र सरकार के पास भी अपील कर सकता है। हालांकि सेना एक्शन तभी लेती है जब दूसरे सारे ऑप्शन खत्म हो जाते हैं। शुरुआत में काउंसलिंग के जरिए सुधार की कोशिश की जाती है। सैन्य कोर्ट इन्क्वायरी सालभर या इससे ज्यादा तक भी चल सकती है। सेना में आरोप साबित होने पर अपराधियों के लिए अलग से जेल नहीं बनाई जाती है। उस सैन्य सिपाही या अफसर को सज़ा मिलने पर एक कमरे में कैद कर दिया जाता है।
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सैन्य कोर्ट में आरोप प्रमाणित होने पर अपराधी को फांसी, उम्रकैद या एक तय समयावधि के लिए सज़ा सुनाने का प्रावधान कोर्ट को होता है। संबंधित सिपाही या अफसर को सेना की सर्विस से बर्खास्त किया जा सकता है। इसके अलावा उसकी रैंक कम करके लोअर रैंक और ग्रेड की जा सकती है। वेतन वृद्धि, पेंशन आदि को रोका जा सकता है। उसके अलाउंसेज खत्म किए जा सकते हैं। अपराध के अनुसार कम या भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। यहां तक कि अपराध साबित होने पर नौकरी भी छीनी जा सकती है। इसके अलावा भविष्य में मिलने वाले सभी तरह के फायदे जैसे पेंशन, कैंटीन सुविधा, एक्स-सर्विसमैन सुविधा लाभ आदि खत्म किए जा सकने का प्रावधान है।
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