हिंदू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए कई व्रत-त्योहारों की महत्ता बताई गई है। इन्हीं में से एक है हरतालिका तीज, जिसे सबसे कठिन व्रत कहा जाता है। हरतालिका तीज को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है और लड़कियां भी इस दिन अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि महिलाएं अगर इस दिन सच्चे मन से व्रत रखती हैं तो उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक बिना खाए-पिए रहती हैं।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हरतालिका तीज भादो माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह दो दिन चलने वाला त्योहार है। हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले आती है। इस बार तृतीया आज 30 अगस्त को है। वहीं, गणेश चतुर्थी 31 अगस्त को मनाई जाएगी। हरतालिका तीज व्रत को करने के कुछ नियम बनाए गए है, जिसके अनुरूप ही यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न होता है। इस व्रत में बहुत ही सख्त नियम हैं। हालांकि, समय के साथ इसे करने के तरीकों में लचीलापन आया है। आइए जानते है इस व्रत को करते समय किन बातों का खास ध्यान रखे…
हरतालिका तीज का व्रत यदि आपने एक बार कर लिया तो आपको इसे जिंदगीभर करना होगा। आप बीच में ही इसका त्याग नहीं कर सकते। इस व्रत का उद्यापन करके ही आप इसे छोड़ सकती हैं।
हिंदू धर्म में इस व्रत को बहुत कठिन माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे से ज्यादा समय तक बिना खाए-पिए रहती है। हालांकि, क्षेत्रों के मुताबिक इसके नियमों में विविधता पाई जा सकती है।
इस व्रत को सिर्फ और सिर्फ सुहागिन महिलाएं ही रखती है। विधवा महिलाए ये व्रत नहीं रखती।
हरियाली और कजरी तीज की तरह ही इस तीज में भी भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। नियमों के मुताबिक, इसमें महिलाओं के सोने को वर्जित माना गया है। महिलाएं रातभर जागकर भजन व आराधना करती हैं।
इस व्रत में महिलाओं को खान-पान को लेकर बहुत ऐहतियात बरतनी होती है। भूलकर भी महिलाएं इस दिन दूध नहीं पीना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दूध पीने वाली महिलाएं अगले जन्म में सर्प योनि में जन्म लेती हैं।
महिलाओं को इस दिन गुस्सा करने से बचना चाहिए। व्रत में बेहद शांत मन से भगवान की पूजा करनी चाहिए। क्रोध करने को इस व्रत में अच्छा नहीं माना जाता।
ऐसे करें पूजा:– हरतालिका तीज के दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है, जिसे इस विधि से पूर्ण की जाती है।
पूजा सामग्री- पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों में से है गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फूल और फल, तुलसी, अकांव का फूल, वस्त्र, फल-फूल, कलश, नारियल, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, बत्ती, अगरबत्ती, दही, चीनी, दूध, शहद, जल से भरा पात्र, दीपक।
सुहाग सामग्री– मां पार्वती की सुहाग सामग्री में मेहंदी, काजल, बिंदी, कुमकुम, चूड़ा, बिछिया, सिंदूर, कंघी और सुहाग पुड़ा।
यह पूजा प्रदोष काल यानि जब दिन-रात मिलते हैं, उस समय की जाती है। पूजन करने से पहले एक बार ओर स्नान करना चाहिए। इस दिन महिलाएं पूजा के समय नए कपड़ें पहन सोलह श्रृंगार करती है। इसके बाद पूजा शुरू करती हैं। सबसे पहले मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बनाती हैं। उसके बाद दूध, दही, घी, चीनी, और शहद का पंचामृत बनाएं। इसके बाद सुहाग की सभी सामग्री को मां पार्वती को अर्पित करें। शिवजी को भी वस्त्र अर्पित करें।
अब व्रत की कथा सुनें। कथा पूरी होने के बाद पहले गणेश जी और बाद में माता पार्वती-शिव की आरती उतारे और उसके बाद भगवान की परिक्रमा लगाए। पूजा की पहली रात जागरण करें। दूसरे दिन नहाकर माता पार्वती की पूजा करें और सिंदूर चढ़ाए। उसके बाद हल्वे और ककड़ी का भोग लगाए। भोग लगाने के बाद महिलाएं व्रत खोल लें। सभी सुहागिन साम्रगियों को किसी सुहागिन महिला को दान कर दें।
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