Know the intresting facts about raksha bandhan festival.
यूं तो सनातन (हिंदू) धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं, मगर रक्षाबंधन का त्योहार एक ऐसा है त्योहार जो भाई-बहन के असीम प्रेम और अटूट विश्वास को समर्पित है। यह त्योहार देशभर में श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। साथ ही अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है। वहीं, हर भाई अपनी बहन को रक्षा करने का वचन देता है।
देश और विदेश में रह रहे सनातनियों द्वारा इस त्योहार को बेहद धूमधान से मनाया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। हालांकि, समय के साथ-साथ इस त्योहार के मनाने के स्वरूप में परिवर्तन भी आए हैं। महापर्व रक्षाबंधन के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं। जो इस त्योहार को बेहद खास बनाती है। आखिर रक्षाबन्धन की शुरुआत किसने और कैसे की? चलिए जानते हैं….
कहा जाता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत का श्रेय लक्ष्मी जी को जाता है। जी हां, पौराणिक मान्यताओं पर नजर डाले तो सर्वप्रथम लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षासूत्र बांधकर इस त्योहार की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि पौराणिक काल में भगवान नारायण असुरों के राजा बलि से उनके दान धर्म को लेकर बेहद प्रभावित थे। एक दिन राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे। राजा बलि की परीक्षा लेने के लिए भगवान नारायण वामन अवतार लेकर उनके पास पहुंच गए। दान में उन्होंने महज तीन पग में ही सब कुछ ले लिया।
राजा बलि का सब लेने के बाद नारायण ने उनसे वचन मांगने को कहा। बलि ने नारायण से वचन मांगा कि मैं जब सोने जाऊँ तो जब भी उठूं, मेरी जिधर भी नजर जाये उधर मैं आपको ही देखूं। बलि की बात सुनते ही भगवान नारायण ने अपना सिर पकड़ लिया और बोले इसने तो मुझे अपना पहरेदार बना दिया हैं। ये सबकुछ हार के भी जीत गया है। भगवान नारायण राजा बलि के लिए वचनबद्ध थे।
पहरेदार के रूप में उनके कई महीने पाताल लोक में गुजर चुके थे। दूसरी ओर भगवान नारायण को लेकर पत्नी लक्ष्मी जी की चिंता बढ़ती ही जा रही थी। इस बीच एक दिन लक्ष्मी जी के पास नारद जी का आना हुआ और उन्होंने अपनी सारी व्यथा नारद जी के सामने रख दी। तब नारद जी बोले कि भगवान नारायण पाताल लोक में राजा बलि की पहरेदार बने हुए हैं। लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के अवतार में राजा बलि के पास रोते हुए पहुंची।
राजा बलि ने कहा क्यों रो रहीं हैं आप। तब लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीं हैं, इसलिए मैं दुखी हूँ। तब बलि ने कहा कि तुम मेरी धर्म की बहन बन जाओ। तब लक्ष्मी ने वचन लिया, और बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिए। अपने वचन में लक्ष्मी जी को अपने पति नारायण मिल गए और तभी से रक्षाबंधन के त्योहार की शुरुआत हुई।
रक्षाबंधन त्योहार को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हुई है। उन्हीं में से एक है असुर और देवताओं की कहानी। दरअसल, पुराणों में कहा गया है कि एक बार असुर और देवताओं के बीच धरती को लेकर युद्ध छिड़ गया। जिसमें देवताओं को जीत हासिल नहीं हुई। असुरों ने अमरावती पर हक जमा लिया। तब इस समस्या से निकलने के लिए इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर रक्षासूत्र बांधा था और उनके विजय होने की कामना की। जिसके बाद ही इंद्र ने युद्ध में असुरों को परास्त कर फिर से अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया।
रक्षाबंधन की एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है। यह उस वक्त की बात है जब भगवान कृष्ण की उंगली में घाव हो गया था। तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी का थोड़ा हिस्सा फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया था। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उसी दिन से भगवान श्रीकृष्ण भाई का संकल्प निभाते रहे और द्रौपदी की आजीवन सुरक्षा कीं।
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