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RRB Group D Result : कैसे किया जाता है अंकों का नॉर्मलाइजेशन जिसे लेकर छात्र आगबबूला हैं !

हमारे देश में सरकारी नौकरी की उम्मीद रखने वाले बेरोजगार युवाओं को महज एक परीक्षा तक पहुंचने के लिए इस सिस्टम से कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। हाल में रेलवे ग्रुप डी की परीक्षा का रिजल्ट रेलवे ने जारी किया। रिजल्ट आने के कुछ समय बाद ही इसमें घोटाले और गड़बड़ियों की बू आने लगी।

छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए आरोप लगाए कि परीक्षा के परिणामों में महाघोटाला हुआ है। छात्रों की शिकायत है कि रिजल्ट में कुछ छात्रों को 100 नम्बर से ज्यादा दिए गए हैं जबकि परीक्षा का पेपर ही कुल 100 नंबर का था। ऐसे में रेलवे की ओर से जारी इस रिजल्ट में मूल्यांकन और पारदर्शिता पर कई सवाल खड़े होते हैं।

प्रतीकात्मक फोटो

वहीं कुछ छात्रों का कहना है कि उनके 100 नंबर के पेपर में 111 नंबर आए हैं। नॉर्मलाइज़ेशन की प्रक्रिया का मनमाने ढ़ंग से इस्तेमाल करने को लेकर छात्रों में पिछले काफी समय से आक्रोश है। छात्रों ने बताया कि नॉर्मलाइज़ेशन के नाम पर 25 से 35 नंबर ऐसे ही बढ़ा दिए गए हैं। जिनके 40,50 नंबर है उनके नंबर नॉर्मलाइज़ करके 80,85, 87,90 तक आए हैं। वहीं कुछ के 60, 65,66,70 और 75 अंक नॉर्मलाइज़ कर 58,63,70,71 कर दिए गए हैं।

नॉर्मलाइज़ की प्रक्रिया के लागू होने के बाद से ही परीक्षार्थियों लगातार कहते रहे हैं कि उनके मूल नंबर दिखाए बिना ही सरकार सीधे नंबर नॉर्मलाइज़ कर देती है। नॉर्मलाइज़ेशन कैसे हुआ ये अधिकांश छात्रों की समझ से अब भी बाहर है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या होती है नॉर्मलाइज़ेशन की प्रक्रिया जिसको लेकर इतना बवाल कटा हुआ है।

प्रतीकात्मक फोटो

नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया

स्टाफ सेलेक्शन कमीशन यानि SSC ने साल 2017 में 5 अगस्त से 23 अगस्त तक SSC CGL की परीक्षा करीब 43 शिफ्टों में आयोजित की थी। परीक्षा के बाद हर शिफ्ट से विद्यार्थियों के पेपर को लेकर अलग-अलग मत थे। किसी ने अपनी शिफ्ट का पेपर कठिन बताया तो किसी ने सरल। किसी ने पेपर काफी लंबा बताया तो किसी को कोई शिकायत नहीं थी। कमीशन ने इस बात की गंभीरता समझते हुए साल 2018 में ली गई परीक्षाओं के लिए नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया (जिसे अंकों का सामान्यीकरण भी कहा जाता है) की शुरूआत की।

‘नॉर्मलाइजेशन’ में नंबरों के साथ क्या होता है ?

नॉर्मलाइजेशन सिस्टम में पेपर के कठिन या सरल होने का एक लेवल पहले ही तय कर लिया जाता है। सरल और कठिन पेपर किसे माना जाएगा इसको किसी अंक से निर्धारित कर दिया जाता है। इसको ऐसे समझिए कि परीक्षा की पहली शिफ्ट में पेपर कठिन आया तो और इसमें किसी के 70 नंबर आए तो उसे 100 नंबर माना जाएगा वहीं दूसरी शिफ्ट में पेपर का लेवल थोड़ा सरल आया तो ठीक इसके उल्टा करके 100 नंबर वालों के नंबर 70 मान लिए जाएंगे।

प्रतीकात्मक फोटो

एक उदाहरण से ऐसे समझिए-

शिफ्ट -1 में पेपर देने वालों के इतने नंबर आए- 60, 50, 45, 65 और 55

शिफ्ट -2 में पेपर देने वालों के नंबर- 100, 80, 70, 90 और 85

शिफ्ट -3 में पेपर देने वालों के नंबर- 90, 95, 60, 75 और 80

अब पहली शिफ्ट का माध्य निकालिए = 60+50+45+65+55+55/5 = 55 आएगा। इसी तरह से दूसरी शिफ्ट में पेपर देने वालों का माध्य 85 आएगा।

शिफ्ट-1 और शिफ्ट-2 के माध्य में अंतर है = 30,  अब हम अंकों का सामान्यीकरण करने के लिए पहली शिफ्ट में जितने भी लोगों ने परीक्षा दी उनके अंकों में 30 अंक जोड़ देंगे तो सभी के नॉर्मलाइजेशन अंक कुछ इस तरह से होंगे- (60+30=90), (50+30=80), (45+30=75), (65+30=95) और (55+30=85), अब ये नॉर्मलाइज अंक शिफ्ट-2 में पेपर देने वालों के लगभग बराबर हो गए। इसी तरह से हम दूसरी शिफ्ट और तीसरी शिफ्ट के अंकों का नॉर्मलाइजेशन भी कर सकते हैं।

sweta pachori

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