बच्चा मन हो या बड़ा हमारे दिल में कोई बात गहरी असर कर जाए तो आदमी कुछ भी करने की हिम्मत जुटा सकता है। ऐसी ही हिम्मत की मिसाल पेश करते हैं आगरा के खेरागढ़ के रहने वाले हसनुरामअम्बेडकरी। जी हां, हसनुराम ने वो काम किया है जो एक आम आदमी की सोच से भी परे है।
दरअसल हिम्मत वाली वो बात यह है कि बसपा के एक नेता की बात उनके घर कर गई और गुस्से में आकर उन्होंने चुनाव लड़ना चालू कर दिया, आपको यकीन नहीं होगा हसनुराम ने अब तक 86 बार चुनाव लड़ा है जिनमें वो पार्षद से लेकर राष्ट्रपति चुनाव तक में नामांकन दाखिल कर चुके हैं।
कौन है हसनुराम?
अपनी जिंदगी या फिर ऐसा कहें अपने राजनीतिक कॅरियर का 87वां चुनाव लड़ने जा रहे हसनुराम कोई राजनीतिक परिवार या अमीर इंसान नहीं है वो एक मामूली मनरेगा मजदूर है। हसनुराम की जिंदगी का यही फलसफा है कि वो 8 दिन मजदूरी करते हैं और 4 दिन लोगों की सेवा में बिताते हैं।
अब चुनाव लड़ते हैं तो जनता वोट देती भी है या नहीं? पिछले लोकसभा चुनावों में जब हसनुराम ने चुनाव लड़ा था तब बिना किसी बैनर और पर्चों के उन्हें 17 हजार वोट हासिल हुए थे।
कौनसी बात दिल पर लग गई?
राजनीतिक चुल हसनुराम में शुरू से मची थी जिसे शांत करने के लिए 34 साल पहले उन्होंने आगरा के बसपा कन्वेनर से विधायक का चुनाव लड़ने की टिकट मांगी। अब इस डिमांड पर उस समय के कन्वेनर अर्जुन सिंह बोले – ‘तुम्हें तुम्हारी बीवी तक नहीं पहचानती है, तो लोग तुम्हें क्या पहचानेंगे और क्यों वोट देंगे’।
इस बात का हसनुराम पर कुछ इस तरह असर हुआ कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी का पर्चा डाल दिया हालांकि दाखिल पर्चा खारिज हो गया।
इसके बाद से वो 1988 से खेरागढ़ विधानसभा सीट पर चुनाव में उतर रहे हैं, लेकिन जीत अभी तक नसीब नहीं हुई है। इस बार अब वो नई पारी लोकसभा से खेलना चाहते हैं जिसके लिए इस लोकसभा चुनाव में वो फतेहपुर सीकरी से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं।
हसनुराम में है देश सेवा की ललक
हसनुराम का जन्म हमारे देश की आजादी वाले दिन यानि 15 अगस्त 1947 को हुआ। अम्बेडकर और लोहिया के विचारों से प्रभावित देश की सेवा करने की ललक रखते हैं। उनकी पत्नी उन्हें इस काम में भरपूर सहयोग देती है। करीब 70 साल की उम्र में आज भी चुनावी पर्चा डालने कई किलोमीटर पैदल जाते हैं।
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