लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद अब देश के प्रधानमंत्री और सरकार के मंत्रियों की ताजपोशी हो गई है।राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में गुरुवार को प्रधानमंत्री और 57 मंत्रियों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम एस जयशंकर का रहा। जयशंकर को मंत्री बनाना ही महज चौंकाने वाला नहीं था बल्कि, पहली ही बार में वह दूसरे कई मंत्रियों पर भी भारी पड़े। उन्हें मोदी कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाया गया है। शपथ से पहले उनके मंत्री बनने को लेकर मीडिया में भी उनका नाम नहीं आया था। गौरतलब है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुषमा स्वराज के पास विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी थी। सुषमा ने राजनीति से रिटायरमेंट की कुछ समय पहले घोषणा की थी जिसके बाद अब पूर्व विदेश सचिव रहे एस जयशंकर को यह महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
सन् 2019 में पद्मश्री से सम्मानित एस जयशंकर का पूरा नाम सुब्रह्मण्यम जयशंकर है। देश के नए विदेश मंत्री बनने से पहले वह पूर्व में तीन वर्ष तक विदेश सचिव रह चुके हैं। एस जयशंकर की विदेश मामलों में अच्छी पैठ है और इन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी का करीबी माना जाता है। इसके अलावा वह भारत के चीन से संबंधों के मामलों में एक्सपर्ट भी माने जाते हैं। वर्ष 2014 में जब मोदी ने देश की कमान पहली बार संभाली थी तब खासतौर पर उन्हें विदेश सचिव बनाया गया था। नए विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका, चीन समेत आसियान के विभिन्न देशों के साथ हुई कई कूटनीतिक वार्ताओं का हिस्सा रह चुके हैं।
ऐसा माना जाता है कि पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर हमेशा से ही पीएम मोदी की पसंद रहे हैं। जहां तक इन दोनों की पहचान की बात है तो यह मोदी के सन् 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले से है। इसकी शुरुआत चीन से हुई थी। वर्ष 2012 में नरेन्द्र मोदी बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री चीन के दौरे पर गए थे। इस दौरान जयशंकर वहां पर भारतीय राजदूत के तौर पर तैनात थे। वह यहां 2009 से 2013 तक भारतीय राजदूत के पद पर रहे। जयशंकर ने विदेश सचिव के रूप में अमेरिका, चीन समेत कई अन्य देशों के साथ भी महत्वपूर्ण वार्ताओं में हिस्सा लिया। चीन के साथ 73 दिन तक चले डोकलाम विवाद को सुलझाने में भी जयशंकर ने अहम रोल निभाया था। इससे पहले वर्ष 2010 में चीन द्वारा जम्मू-कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीजा दिया जाता था। इस पॉलिसी को बदलवाने में भी जयशंकर की अहम भूमिका रही।
सन् 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की निगाह में विदेश सचिव पद के लिए दो नाम सामने आए थे। इनमें सुजाता सिंह और जयशंकर में मुकाबला था, जिसमें सुजाता ने बाजी मारी थी। लेकिन वर्ष 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्ता संभाली तब उन्होंने एस जयशंकर को विदेश सचिव की जिम्मेदारी सौंपी। विदेश सचिव के तौर पर उनका कार्यकाल वर्ष 2017 में समाप्त हो रहा था, लेकिन पीएम मोदी ने उनकी काबलियत को देखते हुए ही उनको एक वर्ष का एक्सटेंशन दिया था। इस तरह से जयशंकर साल 2015 से लेकर साल 2018 तक विदेश सचिव रहे। मोदी की साल 2018 तक की लगभग हर विदेश यात्रा के दौरान जयशंकर उनके साथ रहे। साल 2018 में रिटायर होने के बाद उन्होंने टाटा ग्रुप में बतौर वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। भारत और अमेरिका के बीच हुए सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट में जयशंकर की भूमिका काफी अहम थी।
एस जयशंकर ने सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली अमेरिका यात्रा की योजना तैयार की और इसे सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई, जब मोदी ने अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर पर प्रवासी भारतीय सम्मेलन को संबोधित किया। जनवरी 2015 से लेकर जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहते हुए उन्होंने मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति को आकार प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई, जिसके कारण खासतौर से अमेरिका और अरब देशों समेत विश्व के प्रमुख देशों के साथ भारत के संबंध को महत्वपूर्ण विकास व विस्तार मिला। विदेश सचिव बनने से पहले वह सन् 2013 से अमेरिका में भारत के राजदूत रहे। इस दौरान उन्होंने अमेरिकी प्रशासन और मोदी सरकार को करीब लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
सुब्रमण्यम जयशंकर का जन्म 15 जनवरी, 1957 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुआ। वह प्रसिद्ध इतिहासकार संजय सुब्रमण्यम और भारत के पूर्व ग्रामीण विकास सचिव एस विजय कुमार के भाई हैं। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल की है। जयशंकर की शादी क्योको जयशंकर से हुई है और उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं। सन् 1977 बैच के विदेश अधिकारी रहे एस जयशंकर चीन के अलावा वर्ष 2014-2015 तक अमेरिका में तथा वर्ष 2001-2004 तक चेक रिपब्लिक में, भारतीय राजदूत रहे। वह रूस में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसके अलावा वर्ष 2007-2009 तक वह सिंगापुर में हाई कमिश्नर भी रहे थे। भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते में एस जयशंकर की बड़ी भूमिका मानी जाती है। इनके पिता के. सुब्रह्मण्यम भी प्रशासनिक अधिकारी थे। एस जयशंकर विदेश सचिव पद से रिटायर होने के बाद टाटा समूह से भी जुड़ गए।
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आपको जानकारी के लिए बता दें कि सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था, इसलिए मुमकिन है कि उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनित किया जाए। अब छह माह के अंदर जयशंकर को लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनना जरूरी होगा। भाजपा आलाकमान यह तय करेगा कि उन्हें कब और किस सदन से भेजना है।
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