Khudiram Bose: The revolutionary whose martyrdom rekindled the flame of freedom struggle revolution.
भारत की आजादी के लिए महज 19 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने वाले खुदीराम बोस का 11 अगस्त को 115वां शहीदी दिवस है। खुदीराम सबसे कम उम्र में फांसी पर चढ़ने वाले युवा क्रांतिकारी देशभक्त थे। उनका जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बोस नराजोल स्टेट के तहसीलदार थे और उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। खुदीराम के मन में बचपन से ही देश प्रेम पल रहा था, जिसके कारण वह नौवीं कक्षा के बाद ही देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। इस अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बंगाल की एकता को खंडित करने के लिए उसका वर्ष 1905 में विभाजन करने का निश्चय किया तो उसके विरोध में पूरे देश में आंदोलन भड़क गया। इसके विरोध में खुदीराम बोस ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस आंदोलन के समय उनकी उम्र महज सोलह साल थी। स्वतंत्रता सेनानी सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था। हालांकि, खुदीराम स्कूल के समय से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे थे।
वह विभिन्न जुलूसों में अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध नारे लगाते और उसका विरोध करते थे। उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी। बाद में खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए। वह क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे। 28 फरवरी, 1906 में क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक पत्र के पर्चे खुदीराम बांट रहे थे। इस कारण उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह पुलिस से बच निकल भागे। उन्हें 16 मई, 1906 को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और यह चेतावनी देते हुए छोड़ दिया कि तुम्हारी उम्र अभी कम है। खुदीराम 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन हुए बम हमले में शामिल थे।
कलकत्ता का मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड बड़ा क्रूर अधिकारी था। उसने क्रांतिकारियों को काफी परेशान कर रखा था। इस वजह से क्रांतिकारियों ने उसकी हत्या करने का फैसला किया और युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने इसका जिम्मा खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी को सौंपा। बाद में किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर भेज दिया गया। दोनों क्रांतिकारियों ने किंग्सफर्ड की दिनचर्या और गतिविधियों पर पूरी नजर रखीं। 30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्सफोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में गए थे। रात के साढ़े आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रही थी।
खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी ने उसे किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंका, जिससे उसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई। उन दोनों ने समझा कि किंग्सफोर्ड मारा गया और दोनों भागकर एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे, लेकिन खुदीराम पर पुलिस को शक हो गया और पूसा रोड रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया गया। अपने को पुलिस से घिरा देख क्रांतिकारी प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मार ली, पर खुदीराम पकड़े गये।
गिरफ्तार करने के बाद खुदीराम बोस पर हत्या का मुकदमा चलाया गया। उन्होंने निड़र होकर यह स्वीकार किया कि किंग्सफोर्ड को मारने की कोशिश की थी। लेकिन, इस बात पर उन्हें बहुत अफसोस है कि निर्दोष मिसेज कैनेडी तथा उनकी बेटी गलती से मारे गए। खुदीराम को 13 जून, 1908 को मौत की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त, 1908 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। खुदीराम बोस महज 19 साल की छोटी उम्र में शहीद हो जाने के बाद देश के अनेक युवा क्रांतिकारियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गए थे। खुदीराम की शहादत ने देश में क्रांति की ज्वाला को एक बार फिर से भड़का दिया और इसने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया।
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