हिंदी फिल्मों के मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर ख़य्याम साहब ने अपने फिल्मी कॅरियर में बॉलीवुड को कई हिट नंबर्स दिए। उनके कई गाने एवरग्रीन है, जो आज भी लोगों के बीच खूब पसंद किए जाते हैं। ख़य्याम का जन्म 18 फरवरी, 1927 को पंजाब के नवांशहर जिले के राहों (राहोन) कस्बे में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहम्मद ज़हूर ‘ख़य्याम’ हाशमी था। संगीत के प्रति उनमें बचपन से ही ख़ास लगाव रहा। उनकी लाइफ और लव स्टोरी भी बड़ी मजेदारी रही। उन्होंने साल 2019 में इस दुनिया को अलविदा कहा। ऐसे में जयंती के मौके पर जानते हैं ख़य्याम साहब के जीवन के बारे में कुछ ख़ास बातें…
ख़य्याम साहब म्यूजिक सीखने के लिए बचपन में घर से भागकर दिल्ली आ पहुंचे थे। लेकिन पढ़ाई पूरे करने के घरवालों के दवाब के कारण वापस लौटना पड़ा। उनकी एक्टिंग में भी दिलचस्पी रही थी। दिल्ली में उनके चाचा ने उनका एक स्कूल में एडमिशन कराया। इस दौरान उन्होंने पंडित अमर नाथ से संगीत की शिक्षा ली थी। बाद में वे म्यूजिक सीखने के लिए लाहौर में प्रसिद्ध बाबा चिश्ती के पास भी गए। ख़य्याम को छोड़कर उनका पूरा परिवार, भाई और बहनें पाकिस्तान में रहती हैं। वे बहुत शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखते थे।
ख़य्याम साहब ने ‘कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’, ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ जैसे कई हिट गानों की धुनें तैयार की थी। उन्होंने ‘कभी-कभी’, ‘उमराव जान’, ‘बाजार’, ‘नूरी’, ‘फुटपाथ’, ‘गुल बहार’, ‘त्रिशूल’, ‘फिर सुबह होगी’, ‘शोला और शबनम’, ‘शगुन’, ‘आखिरी खत’, ‘खानदान’, ‘थोड़ी सी बेवफाई’, ‘चंबल की कसम’, ‘रजिया सुल्तान’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के लिए काम किया था।
ख़य्याम को वर्ष 1982 में फिल्म ‘उमराव जान’ के लिए बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्शन श्रेणी में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया। साल 2011 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ सम्मान से सम्मानित किया था। वर्ष 1977 में फिल्म ‘कभी कभी’ के लिए उन्हें बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया था।
ख़य्याम साहब की लव स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। वे उनकी पत्नी जगजीत कौर से पहली बार दादर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज पर मिले थे। जगजीत कौर चंडीगढ़ के रसूखदार परिवार में जन्मी थीं। जगजीत बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगर बनने का सपना लेकर मुंबई आई थीं। एक शाम जब वो दादर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज से गुजर रही थीं तो उन्हें महसूस हुआ कि कोई उनका पीछा किए जा रहा है। जगजीत कौर थोड़ी सतर्क होकर अलार्म बजाने वाली थीं कि वह शख्स उनके बेहद करीब पहुंच गया, उन्होंने अपना परिचय म्यूजिक कंपोजर ख़य्याम के रूप में दिया। साल 1954 में हुई इसी मुलाक़ात के बाद दोनों में दोस्ती हो गई थी। जल्द दोस्ती प्यार में बदल गई।
कहा जाता है कि जगजीत कौर के पिता मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी यानि ख़य्याम साहब से उनकी शादी के लिए तैयार नहीं थे। जगजीत ने अपने पिता के ख़िलाफ़ जाकर ख़य्याम को अपना हमसफ़र चुना। जगजीत कौर के मुताबिक़, शादी के बाद ख़य्याम साहब को आर्थिक सहायता के लिए गाने भी गाते थीं। उन्होंने ‘उमराव जान’ में ‘काहे को ब्याही विदेश’ गाने को आवाज़ दी।
ख़य्याम साहब अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कई बीमारियों से जूझ रहे थे। दुनिया को अलविदा कहने से पहले वे करीब एक हफ़्ते तक आईसीयू में वेंटिलेटर पर रहे। वे सांस की बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। उन्होंने 92 वर्ष की उम्र में मुंबई के जुहू स्थित सुजॉय अस्पताल में अपनी आख़िरी सांस ली। 19 अगस्त, 2019 को रात करीब साढ़े नौ बजे ख़य्याम साहब इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
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