ब्रिटिश सरकार से भारत की आज़ादी के समय राजस्थान में क्रांति की अलख जगाने व अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर करने वालों में बारहठ परिवार का योगदान कभी भुलाया नहीं जाएगा। इस परिवार में जन्मे कवि व स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ की आज 21 नवंबर को 151वीं जयंती है। उनके भाई जोरावर सिंह और पुत्र प्रताप सिंह भी देश को आज़ादी दिलाने के खातिर शहीद हो गए थे। ठाकुर केसरी सिंह बारहठ एक क्रांतिकारी नेता होने के साथ ही एक लेखक, कवि, शिक्षाविद् व कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
ठाकुर केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर, 1872 को राजस्थान के भीलवाड़ा की शाहपुरा रियासत के देवपुरा गांव में हुआ था। उनके पिता कृष्ण सिंह बारहठ जागीरदार थे। केसरी सिंह जब एक महीने के थे तब ही उनकी मां का निधन हो गया, अत: उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उनकी शिक्षा उदयपुर में संपन्न हुईं। केसरी सिंह ने बंगाली, मराठी, गुजराती, संस्कृत आदि भाषाओं के अलावा इतिहास, दर्शन (भारतीय और यूरोपीय), खगोलशास्त्र व ज्योतिष में शिक्षा प्राप्त की थी।
उन्हें डिंगल-पिंगल भाषा में काव्य लेखन की कला विरासत में मिली थी, क्योंकि चारणों को इतिहास लेखन का कार्य करना होता था। केसरी सिंह के अध्ययन के लिए उनके पिता ने अपना प्रसिद्ध पुस्तकालय ‘कृष्ण-वाणी-विलास’ उनके लिए उपलब्ध करवा दिया था। वह राजनीति में अपना गुरु इटली की क्रांति के जनक मैजिनी को मानते थे। वीर सावरकर द्वारा मैजिनी की जीवनी मराठी में लिखकर लोकमान्य तिलक को गुप्त रूप से भेजी, तो केसरी सिंह ने उसका हिंदी अनुवाद किया था।
केसरी सिंह ने सन् 1903 में मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से रोका। वायसराय लार्ड कर्जन ने ब्रिटेन के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के उपलक्ष्य में दिल्ली में भारतीय राजाओं का एक बहुत बड़ा दरबार आयोजित किया। इसमें राजस्थान के समस्त राजाओं ने अपने भाग लेने की स्वीकृति दे दी। परन्तु स्वाभिमानी मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह ने अनिच्छा प्रकट की। किंतु लार्ड कर्जन के अत्यंत विनम्र एवं चाटुकार दरबारियों के दबाव में उन्होंने भी उस दरबार में उपस्थित होना स्वीकार कर लिया।
तब मेवाड़ के महाराणा को दिल्ली दरबार में जाने से रोकने के लिए केसरी सिंह बारहठ ने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देते हुए, उसी समय महाराणा के नाम ‘चेतावणी रा चूंग्ट्या’ नामक तेरह सोरठों की रचना कीं। उन्हें पढ़कर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और ‘दिल्ली दरबार’ में नहीं जाने का निश्चय किया। वह दिल्ली पहुंचे पर समारोह में शामिल नहीं हुए।
ठाकुर केसरी सिंह बारहठ का मानना था कि देश को आज़ादी दिलाने का माध्यम सिर्फ और सिर्फ सशस्त्र क्रांति ही हो सकती है। वर्ष 1910 में उन्होंने ‘वीर भारत सभा’ की स्थापना कीं। क्रांतिकारी वर्ष 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय ही सशस्त्र क्रांति की तैयारी में जुट गए थे। इसे सफल बनाने के लिए केसरी सिंह ने अपनी दो रिवाल्वर क्रांतिकारियों को दे दी और कारतूसों का एक पार्सल बनारस के क्रांतिकारियों को भेजा। उन्होंने रियासती और ब्रिटिश सेना के सैनिकों से भी संपर्क किया।
क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ की महर्षि श्री अरविन्द से वर्ष 1903 में मुलाकात हो चुकी थी। बारहठ के प्रमुख क्रांतिकारी रास बिहारी बोस व शचीन्द्र नाथ सान्याल, ग़दर पार्टी के लाला हरदयाल और दिल्ली के क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद व अवध बिहारी बोस से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। केसरी और अर्जुन लाल सेठी को ब्रिटिश सरकार की गुप्तचर रिपोर्टों में राजपूताना में सशस्त्र क्रांति को फैलाने के लिए जिम्मेदार माना गया था। वर्ष 1912 में राजपूताना में ब्रिटिश सी.आई.डी. द्वारा जिन व्यक्तियों की निगरानी रखी जानी थी, उनमें केसरी सिंह बारहठ का नाम राष्ट्रीय-अभिलेखागार की सूची में सबसे ऊपर था।
केसरी सिंह को शाहपुरा में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिल्ली-लाहौर षड्यन्त्र केस में राजद्रोह, षड्यन्त्र व कत्ल आदि के जुर्म लगा कर 21 मार्च, 1914 को गिरफ्तार किया गया। इसके लिए उन्हें राजस्थान से बाहर बिहार की हजारीबाग केन्द्रीय जेल में भेज दिया गया। वर्ष 1920 में उन्हें रिहा कर दिया गया।
इसके बाद सेठ जमनालाल बजाज के बुलाने पर ठाकुर केसरी सिंह बारहठ सपरिवार महाराष्ट्र के वर्धा चले गए। उन्होंने वर्धा में ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया और इसका सम्पादक क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक को बनाया। यहीं पर केसरी सिंह बारहठ की मुलाकात महात्मा गांधी से हुईं।
देश की स्वतंत्रता के लिए राजस्थान के इस क्रांतिकारी ने न केवल अपना सब कुछ न्योछावर किया, बल्कि उनका पूरा परिवार ही ‘मां भारती’ को आजाद कराने में शहीद हो गया। राजस्थान के महान क्रान्तिकारी व कवि केसरी सिंह बारहठ ने ‘हरिओम तत् सत्’ के उच्चारण के साथ 14 अगस्त, 1941 को आखिरी सांस लीं।
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