एक ऐसा नेता जिसने आजीवन दलित और पिछड़े वर्ग के हकों की लड़ाई लड़ीं, जो लोगों की आवाज बनकर खड़ा हुआ। जी हां, हम बात कर रहे हैं कांशीराम की। इनके जैसा भारत में कोई दूसरा दलित नेता नहीं हुआ है। बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) की नींव रखने वाले बहुजन नायक कांशीराम ने आजीवन अविवाहित रहकर दलित समाज को एकजुट करने का काम किया। आज 9 अक्टूबर को कांशीराम की 17वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए प्रसिद्ध दलित नेता कांशी राम के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
दलित नेता कांशीराम का जन्म 15 मार्च, 1934 को पंजाब के रोपड़ (रूपनगर) में हुआ था। रैदासी दलित सिख परिवार में पैदा हुए कांशीराम के पिता खुद ज्यादा नहीं पढ़े, पर अपने बच्चों को कॉलेज तक पढ़ाया। कॉलेज पूरा करने के बाद कांशीराम ने भाई-बहनों में सबसे बड़े होने की जिम्मेदारी निभाई व डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) पुणे में काम करने लग गए।
समाज के लिए कुछ करने की ललक कांशीराम में शुरू से ही थी इसलिए कुछ समय नौकरी करने के बाद 1971 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। नौकरी छोड़ने के बाद कांशीराम ने अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की नींव रखी। इस दिन के साथ ही उन्होंने पीड़ितों और शोषितों के हक के लिए लड़ाई लड़ने की ठान ली।
कांशीराम आंबेडकर के विचारों से काफी प्रभावित थे। अंबेडकर के संपूर्ण जातिवादी प्रथा और दलितों उद्धार के कामों को कांशीराम ने गहराई से पढ़ा। कांशीराम की संस्था के बारे में धीरे-धीरे लोग जानने लगे और अधिक लोग जुड़ते चले गए। 1973 में कांशीराम ने एड्यूकेट ऑर्गनाइज एंड एजिटेट के मकसद से अपने सहयोगियों की मदद से बीएएमसीईएफ (बैकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉई फेडरेशन) की नींव डाली। संस्था ने अंम्बेडकर के विचारों को आम जनता तक पहुंचाया और लोगों को जाति प्रथा के बारे में जागरूक किया। अम्बेडकर के विचारों के बारे में जागरूक किया। कांशीराम को लोगों का बड़ी संख्या में समर्थन मिलने लगा।
1980 में कांशीराम ने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा की शुरुआत की, जिसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को लोगों तक कहानियों और कविताओं के जरिए पहुंचाया गया। कांशीराम की संस्था बीएएमसीईएफ लोगों को जागरूक करने के लिए काम कर रही थी, लेकिन यह संस्था पंजीकृत नहीं थी। इसलिए वर्ष 1984 में कांशीराम ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ का गठन किया, जो एक राजनीतिक संगठन था।
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) बनते ही कांशीराम एक सामाजिक कार्यकर्ता से एक राजनेता बन गए थे। बीएसपी से फिर उन्होंने चुनाव लड़ा व वर्ष 1991 में वो पहली बार यूपी के इटावा से जीतकर आए। लंबे समय तक राजनीति करने के बाद आखिरकार 2001 में कांशीराम ने कुमारी मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया, लेकिन कांशीराम ने यह प्रस्ताव लेने से मना कर दिया। कांशीराम बोले वो राष्ट्रपति नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। कांशीराम का हमेशा से मानना था कि सत्ता को दलित की चौखट तक लाने के लिए राष्ट्रपति नहीं, प्रधानमंत्री बनना जरूरी है।
वर्ष 2004 के बाद से कांशीराम बीमार रहने लगे व उन्होंने सार्वजनिक जीवन को अलविदा कह दिया। 9 अक्टूबर, 2006 को दिल का दौरा पड़ने से कांशीराम की राजधानी नई दिल्ली में निधन हो गया। उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक, उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाज से किया गया।
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