राजस्थान के प्रसिद्ध कवि और स्वतंत्रता सेनानी कन्हैयालाल सेठिया की आज 104वीं जयंती है। सेठिया राजस्थानी और हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य रचना ‘पाथल-पीथल’ है। इन्होंने राजस्थान में सामंतवाद के खिलाफ आंदोलन किया था। सेठिया का पिछड़े वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वो राजस्थानी भाषा को राजस्थान की मातृभाषा बनाने के समर्थक थे। कन्हैयालाल सेठिया एक स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, सुधारक, परोपकारी और पर्यावरणविद् भी थे। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर, 1919 को राजस्थान के चुरू जिले के सुजानगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम छगनमल था और माता मनोहरी देवी थी। कन्हैयालाल की आरंभिक शिक्षा कलकत्ता में हुई। उनमें बचपन से ही देशप्रेम कूट-कूट कर भरा होने के कारण पढ़ाई के दौरान ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया जिससे उनकी शिक्षा बाधित भी हुई। बाद में उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र, राजनीति और साहित्य में स्नातक की उपाधि हासिल की। वर्ष 1937 में कन्हैयालाल सेठिया की शादी धापू देवी से हुई। इनके दो बेटे-जयप्रकाश तथा विनयप्रकाश और एक बेटी सम्पत देवी दूगड़ हैं।
वर्ष 1941 में उनका छायावादी भावनाओं पर आधारित एक काव्य संग्रह ‘वनफूल’ प्रकाशित हुआ। लेकिन देश की आजादी की छटपटाहट की झलक सेठिया के काव्य संग्रह ‘अग्निवीणा’ के गीतों में दिखाई देती है। इसका एक-एक पद शौर्य भावनाएं जगाने वाला था। यह वर्ष 1942 में प्रकाशित हुआ। इस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही उन पर बीकानेर राज्य ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया था। वह प्रजा परिषद के सदस्य बने, जो राजस्थान में सामंतशाही शासन का विरोध कर रही थी, वहीं दूसरी ओर वह आजादी की लड़ाई भी लड़ रही थी।
उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जा रहे अत्याचारों का भी विरोध किया। उन्होंने सुजानगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उनके प्रयासों से अनेक युवा क्रांतिकारी बन गए। वर्ष 1934 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई और सेठिया हरिजन सेवा एवं उत्थान के लिए कार्य करने लग गए। उन्होंने हरिजन बालकों की शिक्षा के लिए एक स्कूल की स्थापना की।
इस पर लोगों ने विरोध किया पर वह अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने आजादी के दौरान महसूस किया कि आमजन को मातृभाषा में ही भाषण देकर प्रेरित किया जा सकता है। यही कारण था कि जागीरदारों के खिलाफ ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता की रचना की और वह लोगों में बहुत लोकप्रिय हुई।
कन्हैयालाल सेठिया ने हिंदी, उर्दू और राजस्थानी भाषा में अनेक पुस्तकें लिखी। उनकी पहली साहित्यिक रचना राजस्थानी भाषा में ‘रमणियां रा सोरठां’ मानी जाती है। इसके बाद ‘नीमड़ो’ राजस्थानी की लघु पुस्तिका है। उनकी सबसे लोकप्रिय कविता ‘धरती धोरां री’ है।
रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूंकंऊ, लीलटांस, धर कूंचा धर मंजळां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क क्को कोड रो, लीकलकोळिया एवं हेमाणी।
वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निर्ग्रन्थ, स्वागत, देह-विदेह, आकाश गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति एवं त्रयी।
ताजमहल एवं गुलचीं।
कन्हैयालाल सेठिया को स्वतन्त्रता सेनानी, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि एवं लेखक के रूप में अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं—
राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी और कवि कन्हैयालाल सेठिया का निधन 11 नवंबर, 2008 को हुआ।
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