Kamleshwar's career started with the editing of 'Vihaan' magazine, later he became the first scriptwriter of Doordarshan.
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार कमलेश्वर की 6 जनवरी को 91वीं जयंती है। वह हिंदी लेखक के साथ ही हिंदी सिनेमा और टेलीविजन के स्क्रिप्ट राइटर भी थे। उन्हें उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ के लिए वर्ष 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने वर्ष 2005 देश का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ पुरस्कार प्रदान किया।
वह मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव और भीष्म साहनी जैसे ‘नई कहानी’ के साहित्यकारों की पंक्ति के लेखक हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता से पहले के साहित्यिक पूर्वाग्रहों को छोड़ दिया और नई संवेदनाओं को प्रस्तुत किया, जो आजादी के बाद के नए भारत को चित्रित करते हैं। इस मौके पर जानिए उनकेबारे में कुछ अनसुनी बातें…
कमलेश्वर का जन्म 6 जनवरी, 1932 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। उनका वास्तविक नाम कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना था। उन्होंने वर्ष 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल की।
कमलेश्वर ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1954 में ‘विहान’ जैसी पत्रिका के संपादन से शुरु किया। बाद में उन्होंने कई पत्रिकाओं का सफल संपादन किया, उनमें ‘नई कहानियाँ'(1963-66), ‘सारिका’, ‘कथायात्रा’, ‘गंगा’ (1984-88) आदि प्रमुख हैं। वह दैनिक भास्कर के राजस्थान अलंकरण के प्रधान संपादक भी रहे। इस दौरान उन्होंने जैन टीवी के समाचार प्रभाग में अपनी सेवाएं दी। कमलेश्वर वर्ष 1980-82 तक दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे।
कमलेश्वर का नाम नई कहानी आंदोलन के प्रमुख कथाकारों में शुमार होता था। उनकी पहली कहानी ‘कॉमरेड’ वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई थी, परंतु ‘राजा निरबंसिया’ (1957) से वह रातों-रात एक बड़े कथाकार बन गए। कमलेश्वर ने अपने साहित्यिक सफर में तीन सौ से ऊपर कहानियां लिखी हैं। उनकी कहानियों में ‘मांस का दरिया,’ ‘नीली झील’, ‘तलाश’, ‘बयान’, ‘नागमणि’, ‘अपना एकांत’, ‘आसक्ति’, ‘ज़िंदा मुर्दे’, ‘जॉर्ज पंचम की नाक’, ‘मुर्दों की दुनिया’, ‘क़सबे का आदमी’ एवं ‘स्मारक’ आदि उल्लेखनीय हैं।
कमलेश्वर ने कई प्रसद्धि उपन्यास लिखे हैं, जिनमें ‘एक सड़क सत्तावन गलियां’, ‘डाक बंगला’, ‘तीसरा आदमी’, ‘समुद्र में खोया आदमी’ और ‘काली आँधी’ आदि प्रमुख हैं। उनके अन्य उपन्यासों में ‘लौटे हुए मुसाफ़िर’, ‘वही बात’, ‘आगामी अतीत’, ‘सुबह-दोपहर शाम’, ‘रेगिस्तान’, ‘एक और चंद्रकांता’ तथा ‘कितने पाकिस्तान’ हैं। उन्होंने नाटक विधा पर भी अपनी लेखनी चलाई। उनके अधूरी आवाज, रेत पर लिखे नाम, हिंदोस्ताँ हमारा प्रमुख नाटक हैं।
आलोचना के क्षेत्र में उनकी ‘नई कहानी की भूमिका’ तथा ‘मेरा पन्ना: समानांतर सोच'(दो खंड) महत्वपूर्ण पुस्तकें समझी जाती है। उनके यात्रा विवरण ‘खंडित यात्राएँ’ और ‘कश्मीर: रात के बाद’ तथा के संस्मरण ‘जो मैंने जिया’, ‘यादों के चिराग़’ तथा ‘जलती हुई नदी’ (1997) शीर्षक से प्रकाशित हुए हैं।
कमलेश्वर 1970 के दशक में मुंबई चले गए। वहां उन्होंने फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन कार्य में हाथ आजमाया। वह इसमें कामयाब भी रहे। उन्होंने सारा आकाश, आंधी, अमानुष और मौसम जैसी फ़िल्मों के अलावा ‘मि. नटवरलाल’, ‘द बर्निंग ट्रेन’, ‘राम बलराम’ जैसी फ़िल्मों सहित 99 बॉलीवुड फिल्मों के लिए पटकथा लिखी। उनके उपन्यास ‘काली आंधी’ पर गुलज़ार द्वारा ‘आंधी’ नामक फिल्म बनाई जिसने कई पुरस्कार जीते।
कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल ‘दर्पण’ उन्होंने ही लिखा। वह आजादी के बाद भारत के सर्वाधिक सक्रिय, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक थे। उनको पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया।
हिंदी की नई कहानी के लेखक कमलेश्वर का 27 जनवरी, 2007 को दिल्ली में निधन हो गया।
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