भारतीय समाज सुधारक व ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता कैलाश सत्यार्थी आज 11 जनवरी को अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। उन्होंने भारत में बाल शोषण के खिलाफ अभियान चलाकर हजारों बच्चों की ज़िंदगियां संभारी हैं। सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को ‘बच्चों और युवाओं के शोषण के खिलाफ संघर्ष और सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए’ किए प्रयासों के लिए वर्ष 2014 में संयुक्त रूप से ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनके इस मिशन में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’, ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’, ‘ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन’, ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन’ और ‘गुडवाइव इंटरनेशनल’ आदि संस्थाएं शामिल हैं। इस मौके पर जानिए कैलाश सत्यार्थी के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी, 1954 को मध्य प्रदेश के विदिशा में हुआ था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं। उनके पिता पुलिस कॉन्स्टेबल थे और बाद में हेड कांस्टेबल पद से रिटायर हुए थे। उनकी मां अशिक्षित थी। उन पर माता के आदर्शवादी स्वभाव का प्रभाव पड़ा। सत्यार्थी एक हिंदू और मुसलमान मौहल्ले में पले बढ़े, जिसमें दोनों धर्मों लोग आपसी सौहार्दपूर्वक रह रहते थे। उन्होंने मस्जिद में मौलवी से उर्दू पढ़ना सीखा।
बाद में वह विदिशा के गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़े। यहीं से सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। यह कॉलेज पहले भोपाल विश्वविद्यालय से संबद्ध थी। बाद में वर्ष 1988 में इस बरकतुल्ला विश्वविद्यालय नाम दिया गया। उन्होंने हाई वोल्टेज इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की है। इसके बाद उन्होंने कुछ साल भोपाल के एक कॉलेज में व्याख्याता के रूप में भी कार्य किया।
कैलाश सत्यार्थी ने 26 साल की उम्र में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में कॅरियर न बनाकर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने वर्ष 1980 में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की, जोकि गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) है। यह संगठन बाल श्रम यानी बच्चों को बंधुआ मजदूरी और तस्करी से बचाने का काम करती है। इस अभियान से उन्होंने हजारों बच्चों की ज़िंदगियां बचाईं। इस संस्था के माध्यम से वह उन बच्चों की मदद करते हैं, जो अपने परिवार के कर्ज़ उतारने के लिए बेच दिए जाते हैं। इन बच्चों को छुड़ाकर उन्हें रोजगार परक ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वो अपने समुदाय में जाकर ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए काम करें।
कैलाश सत्यार्थी ने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की, जिसमें उन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिली है। उन्होंने बाल मजदूरी कराने वाली फैक्ट्रियों में छापेमारी की तो फैक्ट्री मालिकों ने उनका कड़ा विरोध किया और कई बार पुलिस ने भी उनका साथ नहीं दिया। परंतु उन्हें धीरे-धीरे सफलता मिलने लगीं। सत्यार्थी ने बच्चों के लिए आवश्यक शिक्षा को लेकर शिक्षा के अधिकार का आंदोलन चलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। वह ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ (बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। 17 मार्च, 2011 में दिल्ली की एक कपड़ा फ़ैक्ट्री पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया। इससे पहले वर्ष 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान कैलाश सत्यार्थी पर हमला हुआ था।
सोशल एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी को बाल शोषण के विरूद्ध काम के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया। उनमें ‘डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड'(2009 अमेरिका), ‘मेडल ऑफ द इटालियन सीनेट'(2007 इटली), ‘रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड'(अमेरिका) और ‘फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड'(जर्मनी) आदि शामिल हैं। सत्यार्थी को वर्ष 2014 में प्रतिष्ठित अवॉर्ड ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
उन्होंने ‘ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर’ मुहिम चलाई जो कई देशों में कार्य कर रही है। उन्हें रूगमार्क के गठन का श्रेय है, जिसे गुड वेब भी कहा जाता है। यह एक तरह का सामाजिक प्रमाण-पत्र है जिसे दक्षिण एशिया में बाल मजदूर मुक्त कालीनों के निर्माण के लिए दिया जाता है।
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