अपने समय के मशहूर बॉलीवुड अभिनेता कादर खान एक बेहतरीन एक्टर होने के साथ ही कॉमेडियन, स्क्रीन राइटर, डायरेक्टर व लेखक भी थे। कादर खान अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके अमिताभ बच्चन, गोविंदा और जॉनी लीवर के साथ अनगिनत फिल्मों में निभाए किरदार हमेशा के लिए जीवंत हैं। सत्तर के दशक में एक्टिंग में डेब्यू करने वाले कादर ने अपने फिल्मी करियर में 300 से ज्यादा फिल्में कीं। इन्होंने राजेश खन्ना स्टारर फिल्म ‘दाग’ से अपनी अभिनय पारी शुरू की थी। इस फिल्म में प्रॉसिक्यूटिंग अटॉर्नी का किरदार निभाया था। अभिनेता कादर खान की 22 अक्टूबर को 85वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर जानिए इनके बारे में कुछ रोचक बातें…
कादर खान ने हर तरह के किरदार अपनी फिल्मों में किए। फिल्म ‘परवरिश’ (1977) में उन्होंने एक गुंडे का रोल किया। इसके बाद एक बार फिर फिल्म ‘नसीब’ (1981) में नेगेटिव किरदार निभाया। अमिताभ बच्चन इस फिल्म में लीड रोल में थे। दोनों फिल्मों का निर्देशन मनमोहन देसाई द्वारा किया गया था, जिन्हें अक्सर ‘शोमैन’ कहा जाता था। बच्चन के अलावा ऋषि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, अमजद खान, हेमा मालिनी, परवीन बाबी, अमरीश पुरी, प्रेम चोपड़ा, शक्ति कपूर और प्राण उस वक्त के बड़े कलाकार होते थे। 1970 के दशक में खान ने इनमें से कई सितारों के साथ मिलकर हिंदी सिनेमा के कुछ बेहतरीन फिल्मों में काम किया।
700 से अधिक लोकप्रिय हिंदी फिल्मों के लिए उन्होंने अभिनय किया और लिखने में मदद की। अमिताभ बच्चन हमेशा से ही कादर खान के अच्छे दोस्त रहे। उनके निधन पर एक ट्वीट में अमिताभ बच्चन ने उन्हें ‘शानदार मंच कलाकार’ और ‘मेरी बहुत सफल फिल्मों में से एक महान लेखक’ बताया था।
वहीं, केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट किया था कि अगर आप 80 या 90 के दशक के बच्चे थे, जो हिंदी फिल्में देखते थे, तो आपको कादर खान के जादू के बारे में जरूर पता होगा। 1980 और 90 के दशक में आमतौर पर गोविंदा, अनुपम खेर, जॉनी लीवर, रवीना टंडन और करिश्मा कपूर की फिल्मों में वे कॉमेडी रोल में नजर आते थे। उनकी कॉमिक टाइमिंग की लोग हमेशा से ही तारीफ करते आए हैं।
अफगानिस्तान के काबुल में जन्मे कादर खान का परिवार उस समय भारत आया जब वह केवल छह महीने के थे। उन्हें बॉम्बे में लाया गया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद मुंबई के एम एच साबू सिद्दीक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बने। हालाँकि, उनका असली जुनून स्टेज था। उन्होंने कम उम्र से ही रंगमंच में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी।
कादर खान कॅरियर की शुरुआत में यहूदी कब्रिस्तान में जाते थे ताकि अपनी डायलॉग लाइनों की प्रैक्टिस कर सके, जहां उन्हें सुनने वाला कोई ना था। एक दिन खान ने पाया कि कोई उसे कब्रिस्तान में देख रहा है। यह अशरफ खान थे, जिन्होंने कादर खान को उसी समय एक रोल ऑफर किया। कादर खान को बड़ा बॉलीवुड ब्रेक 1973 में यश चोपड़ा की फिल्म ‘दाग’ के साथ मिला, लेकिन उनकी सबसे अच्छी जोड़ी मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा के साथ बनीं।
‘अमर अकबर एंथनी’ और ‘मुकद्दर का सिकंदर’ में उनके डायलॉग आज भी याद किए जाते हैं। 1970 के दशक में खान ने ‘परवरिश, सुहाग, शराबी, लावारिस, अमर अकबर एंथनी’ और ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी हिट फिल्में दीं। 1980 के दशक में उन्होंने ‘हम’ और ‘अग्निपथ’ में अमिताभ बच्चन के लिए डायलॉग लिखे।
1990 के दशक में वे एक मजाकिया किरदार के रूप में उभरे। डेविड धवन की ‘कुली नं. 1’ में उनका किरदार याद रहता है। 1998 के ‘दुल्हे राजा’ एक अमीर होटल व्यवसायी (खान) के बारे में थी जो खुद को एक सड़क-स्मार्ट ढाबा मालिक (गोविंदा) से अलग पाता है। इस तरह के दर्जनों मसाला बर्तनों में कादर खान हमेशा फिट बैठते थे।
फिल्मों को छोड़ने के बाद, कादर खान ने इस्लामी शिक्षा में रुचि विकसित की। घुटने की सर्जरी के बाद उनकी लंबी बीमारी ने उन्हें आध्यात्मिकता की राह पर ला खड़ा किया। बहुचर्चित चरित्र अभिनेता जनता की नजरों से गायब हो गए लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वे गायब हुए हैं।
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