देश में लोकपाल संस्था के लिए लंबे संघर्ष के बाद लोकपाल और लोकायुक्त बिल 2014 में बना, तब से ही यह पद रिक्त चल रहा था। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल नियुक्त हो सकते हैं। जल्द ही सरकार की ओर से औपचारिक घोषणा होने की उम्मीद है। जस्टिस घोष वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य है।
भारत में लोकपाल
हमारे देश में 5 जनवरी, 1966 को श्री मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पहले भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन के विरूद्ध नागरिकों की शिकायतों को सुनने एवं प्रशासकीय भ्रष्टाचार रोकने के लिए सर्वप्रथम लोकपाल संस्था की स्थापना की सिफारिश की थी। जिसे उस समय स्वीकार नहीं किया गया।
भारत में सन 1971 ई. में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया जो पांचवी लोकसभा के भंग हो जाने से पारित न हो सका।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकपाल विधेयक 26 अगस्त, 1985 को संसद में प्रस्तुत किया गया और 30 अगस्त, 1985 को संसद में इस विधेयक के प्रारूप को पुनर्विचार के लिए संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया, जो पारित न हो सका।
आखिरकार भारत में केन्द्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्थाओं की स्थापना के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) संसद द्वारा 2014 में पारित हुआ, जिसे 1 जनवरी, 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
अधिकार क्षेत्र
लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में सेना को छोड़कर देश के प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य और केंद्र सरकार के समूह ए, बी, सी और डी के अधिकारी और कर्मचारी आते हैं। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार लोकपाल को होगा। साथ ही वह इन सभी की संपत्ति को कुर्क भी कर सकता है।
तलाशी और जब्तीकरण
लोकपाल पद के लिए योग्यता
लोकपाल में अध्यक्ष पद पर वह व्यक्ति पदासीन होगा जो या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हो या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायधीश या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति।
इस संस्था में अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए।
इसके अलावा कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।
लोकपाल का कार्यकाल
लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने जो भी पहले हो तक के लिए पद पर बने रहेंगे।
चयन प्रक्रिया के सदस्य
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 4(1) के अनुसार, अध्यक्ष एवं सदस्य, राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाएंगे। जिसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे-
लोकपाल की शुरूआत कब व कहां से हुई
भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए समय-समय पर विभिन्न देशों में अनेक कदम उठाये गये हैं। इन ही प्रयासों के चलते स्वीडन में 1809 ई. में संविधान के अंतर्गत ‘ओम्बुड्समैन’ नामक संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था द्वारा पहली बार ऐसी व्यवस्था की गई जो लोकसेवकों कानूनों तथा विनियमों का उल्लंघन करता है उनके खिलाफ जांच करेगा।
‘ओम्बुड्समैन’ एक स्वीडिश भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य लोगों का प्रतिनिधि (रिप्रेन्जटेटिव) या एजेन्ट होता है। इसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जिसे कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, विलम्ब, अकुशलता, अपारदर्शिता एवं पद के दुरूपयोग से नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है।
इसके बाद फिनलैण्ड में 1918 में, डेनमार्क में 1954 में, नॉर्वे में 1961 ई. में, और ब्रिटेन में 1967 ई. में ओम्बुड्समैन की स्थापना भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उद्देश्य से की गई। अब तक 135 से अधिक देशों में इस संस्था की नियुक्ति की जा चुकी है।
इसे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इंग्लैण्ड में इसे संसदीय आयुक्त, रूस में ‘वक्ता’ या ‘प्रोसिक्युटर’, डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड में इंग्लैण्ड की तरह संसदीय आयुक्त के नाम से जाना जाता है। इसे भारत में लोकपाल के नाम से जाना जाता है।
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