भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व सुप्रसिद्ध राजनेता जयप्रकाश नारायण की आज 121वीं जयंती है। नारायण को ‘जेपी’ या ‘लोकनायक’ के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जय प्रकाश एक सिद्धांतवादी, समाजवादी और राजनीतिक नेता थे। उन्होंने वर्ष 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व किया और उनको पद से हटाने के लिए ‘संपूर्ण क्रांति’ नामक आंदोलन चलाया था। जेपी को उनके सामाजिक कार्यों के लिए वर्ष 1999 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। इससे पहले वर्ष 1965 में उन्हें समाज सेवा के लिए प्रतिष्ठित ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ से भी नवाजा गया था। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के (ब्रिटिश काल में यह बिहार के सारण जिले में था) सिताबदियारा गांव में हुआ था। वह एक कायस्थ परिवार से आते थे। उनके पिता का नाम हरसू दयाल और माता फूल रानी देवी थी। जेपी के पिता नहर विभाग में एक जूनियर अधिकारी थे। 9 वर्ष की उम्र में उन्हें गांव के स्कूल में पढ़ने भेजा। बाद में 7वीं क्लास में जयप्रकाश का एडमिशन पटना के कॉलेजिएट स्कूल में करवा दिया गया।
जेपी की वर्ष 1920 में प्रभावती देवी के साथ शादी हुईं। शादी के समय उनकी उम्र 18 साल और पत्नी की उम्र 14 साल थी। जयप्रकाश शादी के दो साल बाद ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया। उन्होंने समाजशास्त्र से मास्टर डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1929 में वह मार्क्सवादी बनकर भारत लौटे। उस समय देश में आजादी का संघर्ष अपने चरम पर था। वह जवाहर लाल नेहरू के कहने पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। गांधीजी के प्रिय लोगों में जेपी भी शामिल थे।
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सविनय अवज्ञा में भाग लेने के कारण जयप्रकाश नारयण को वर्ष 1932 में गिरफ्तार कर नासिक जेल में कैद किया गया था। यहां पर उनकी मुलाकात राम मनोहर लोहिया, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, बसावन सिंह (सिन्हा), यूसुफ देसाई, सीके नारायणस्वामी और अन्य राष्ट्रीय नेताओं से हुईं। जेपी ने यहां से छूटने के बाद कांग्रेस के भीतर वामपंथी लोगों के साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) की स्थापना की। इसके अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र देव और जेपी नारायण महासचिव बने।
जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में अगस्त, 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हुआ तो जयप्रकाश को भी गिरफ्तार करके हजारीबाग सेंट्रल जेल में कैद कर दिया गया था। वह जेल की दीवार कूद कर भाग निकले और आंदोलन में सहयोग देने के लिए भूमिगत हो गए। उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया, छोटूभाई पौराणिक, अरुणा आसफ अली जैसे कई युवा समाजवादी नेताओं के साथ भूमिगत रह कर आंदोलन को जारी रखा।
सामाजिक कार्यकर्ता व राजनेता जयप्रकाश नारायण को खासकर वर्ष 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष को एकजुट करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पदच्युत करने के लिए ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन चलाया। इस क्रांति में सात क्रांतियों को शामिल किया गया था- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन्हें ही संपूर्ण क्रांति कहा गया। इस क्रांति की वजह से कांग्रेस को केंद्रीय सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
संपूर्ण क्रांति के आह्वान में जेपी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं, जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, ‘संपूर्ण क्रांति’ आवश्यक है।’ इसलिए आज एक नई संपूर्ण क्रांति की जरूरत है। यह क्रांति व्यक्ति सुधार से प्रारंभ होकर व्यवस्था सुधार पर केन्द्रित हो। कुर्सी पर कोई भी बैठे, लेकिन मूल्य प्रतिष्ठापित होने जरूरी है।
जेपी का संघर्ष देश की आजादी की लड़ाई से शुरू होकर अंतिम समय तक रहा। जयप्रकाश नारायण हृदय संबंधी बीमारी और मधुमेह जैसी बीमारियों से पीड़ित थे। उनका निधन 8 अक्टूबर, 1979 को पटना निवास पर हुआ।
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