ये हुआ था

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर चुना था स्वतंत्रता आंदोलन का रास्ता

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व महान क्रांति​कारी जतीन्द्रनाथ मुखर्जी की आज 144वीं जयंती है। वो ‘बाघा जतीन’ के नाम से प्रसिद्ध थे। जतींद्रनाथ एक ऐसे वीर क्रांतिकारी थे, जिनके नाम से सभी ब्रिटिश अधिकारी थर-थर कांपते थे। उनकी सांसों में आखिरी समय तक क्रांतिकारी अंदाज झलकता रहा। वो बंगाल के क्रांतिकारी संगठन ‘युगांतर’ के एक प्रमुख नेता भी थे। जतीन ने देश की आज़ादी के लिए अपनी सरकारी छोड़ दी थी। उनकी बहादुरी के किस्से आज भी चर्चा का विषय है। इस खास अवसर पर जानिए भारतीय क्रांतिवीर जतीन्द्रनाथ मुखर्जी के जीवन के बारे में कुछ अनसुने किस्से…

बचपन में ही छिन गया था सिर से पिता का साया

भारतीय क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म 7 दिसम्बर, 1879 को बंगाल के नदिया जिले के कुश्तिया उपखंड के कायाग्राम गांव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही माता-पिता का प्यार नसीब नहीं हुआ। महज 5 साल की कम उम्र में जतीन के पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनकी माता ने ही उनका पालन-पोषण किया। जतीन का असली नाम ‘जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय’ था।

अंग्रेजों की हर योजना का खुलकर विरोध किया

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ने अंग्रेजों की हर योजना का खुलकर विरोध किया। उन्होंने अंग्रेजों की चलाई गई बंग-भंग योजना के खिलाफ मुखर होकर अभियान चलाया। जतीन ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर सक्रिय रूप से आंदोलन का रास्ता चुना। इसके बाद उन्हें ‘हावड़ा षडयंत्र केस’ में सालभर के लिए जेल की हवा खानी पड़ीं।

हंसिये से बाघ को मारकर बने ‘बाघा जतीन’

जतींद्रनाथ मुखर्जी का पूरा जीवन बहादुरी के काम करने में बीता। उनके बारे में 27 साल की उम्र का एक किस्सा काफी चर्चित है। जब वो एक बार जंगल से गुजर रहे थे, तभी जंगल में एक बाघ ने उन पर हमला कर दिया था। उन्होंने उस बाघ से जवाबी मुठभेड़ जारी रखी और हाथ में पकड़े हंसिये से बाघ को वहीं पर मार गिराया। इस दिन के बाद से लोग उन्हें ‘बाघा जतीन’ कहने लगे थे।

महान क्रांतिकारी जतीन की जयंती पर ये भी जानिए..

– जतीन कॉलेज के दिनों में स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आए थे, जिसके बाद स्वामी विवेकानंद ने जतीन की प्रतिभा को पहचाना और उनमें एक भविष्य का क्रांतिकारी देखा।

– अप्रैल 1908 में एक बार वो सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन पर थे तभी तीन अंग्रेजी अधिकारियों की उनसे कहासुनी हो गई, जिसके बाद उन तीनों को जतीन ने अकेले वहीं पीट दिया जिसके बाद अंग्रेज अधिकारियों में उनके नाम का खौफ बैठ गया था।

– जतीन्द्रनाथ मुखर्जी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन ‘युगान्तर पार्टी’ के वो मुख्य नेता थे।

– बाघा जतीन अंग्रेजों द्वारा किए गए एक हमले में बुरी तरह से घायल हो गए। आखिरकार 10 सितंबर, 1915 को उन्होंने हमले के बाद अस्पताल में आखिरी सांस लीं।

– उनके निधन के बाद एक मशहूर अमेरिकी प्रचारक ने कहा था अगर ‘बाघा जतीन कुछ और सालों तक जीवित रहते तो आने वाले समय में कोई भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में नहीं जान पाता।’

दलितों को अधिकार दिलाने के लिए डॉ. भीमराव आंबेडकर ने समर्पित कर दिया था अपना पूरा जीवन

Raj Kumar

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